ओके….चुनाव की हवा बही, सुखाड़ का दर्द छुपा

अोके….चुनाव की हवा बही, सुखाड़ का दर्द छुपाफोटो-26 डालपीएच-4 व 5कैप्सन- धान के सूखे खेतप्रतिनिधि, मेदिनीनगर.पलामू में सुखाड़ है. पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण फसल सूख गयी. जो फसल बची है, उसे बचाने के लिए किसान रात भर जाग रहे हैं. पंप या बिजली पंप के सहारे खेतों का पटवन कर रहे हैं. फिर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2015 7:49 PM

अोके….चुनाव की हवा बही, सुखाड़ का दर्द छुपाफोटो-26 डालपीएच-4 व 5कैप्सन- धान के सूखे खेतप्रतिनिधि, मेदिनीनगर.पलामू में सुखाड़ है. पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण फसल सूख गयी. जो फसल बची है, उसे बचाने के लिए किसान रात भर जाग रहे हैं. पंप या बिजली पंप के सहारे खेतों का पटवन कर रहे हैं. फिर भी अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आ रहा है. किसान यह कह रहे हैं कि रात में पटवन कर रहे हैं, दोपहर तक खेत सूख जा रहे हैं. पुरानी कहावत है धान, पान, नित्य स्नान. जिस तरह पान की पत्ती पर प्रतिदिन पानी दिया जाता है, ताकि उसकी ताजगी बरकरार रहे , उसी तरह धान की फसल को भी प्रतिदिन प्रकृति का पानी चाहिए. लेकिन यहां स्थिति यह है कि पिछले दो माह से पानी ही नहीं हुआ. ऐसे में आखिर धान की फसल बचे, तो बचे कैसे. किसान परेशान हैं. उन्हें राहत कैसे मिलेगी, इसके बारे में शासन-प्रशासन की प्रक्रिया चल रही है. राहत कब मिलेगी, पता नहीं. न सिर्फ धान की फसल मारी गयी है, बल्कि पलामू की मुख्य फसल मकई की खेती भी पूरी तरह से प्रभावित हो गयी है. कृषि के दृष्टिकोण से मकई की खेती भी काफी महत्वपूर्ण है. स्थिति इस बार भयावह है, लेकिन अब इसकी अपेक्षित चर्चा नहीं. क्योंकि आम जनमानस अब चुनावी पर्व में शामिल हो गया है. चुनावी चर्चा के बीच सुखाड़ का दर्द गुम हो रहा है. गांव के चौपालों में अब चुनावी चर्चा है. खेती मारी गयी है, यह विषय तो है. लेकिन इस पर चर्चा अब लोग चुनाव के बाद ही करेंगे. बहरहाल सभी चुनाव में लगे हैं. किसान श्रीकांत मिश्रा का कहना है कि यही तो विडंबना है. पिछले साल भी यही हुआ था. चुनावी चर्चा में किसानों की आवाज दब गयी. कोई राहत नहीं मिली. इस बार की स्थिति विकट है. सरकार को सोचना चाहिए, पर स्थिति देखने से तो ऐसा नहीं लग रहा है. मालूम हो कि पलामू में पिछले तीन साल से सुखाड की स्थिति है. इस बार के जो सरकारी रिपोर्ट हैं, उसके मुताबिक 44 प्रतिशत धान की खेती का नुकसान हुआ है. लेकिन आमलोग इस सरकारी रिपोर्ट से भी इत्तेफाक नहीं रखते. उनका कहना है यह आंकड़े भी सच्चाई से मेल नहीं खाते.

Next Article

Exit mobile version