ओके… शहर के जलस्रोत के संरक्षण के प्रति प्रशासन गंभीर नहीं

अोके… शहर के जलस्रोत के संरक्षण के प्रति प्रशासन गंभीर नहीं फोटो-3 डालपीएच- 2, 3, 4 ,5 व 6हेडलाइ…न तालाब की हिफाजत, न नदी की परवाह प्रतिनिधि, मेदिनीनगर.शहर के जलस्रोत आखिर कैसे बचेंगे? हालात यही रहें, तो मुश्किल है. क्योंकि जो शहर के जलस्रोत हैं, उसे देखने के बाद यह नहीं लगता कि शासन-प्रशासन इसके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 3, 2015 7:25 PM

अोके… शहर के जलस्रोत के संरक्षण के प्रति प्रशासन गंभीर नहीं फोटो-3 डालपीएच- 2, 3, 4 ,5 व 6हेडलाइ…न तालाब की हिफाजत, न नदी की परवाह प्रतिनिधि, मेदिनीनगर.शहर के जलस्रोत आखिर कैसे बचेंगे? हालात यही रहें, तो मुश्किल है. क्योंकि जो शहर के जलस्रोत हैं, उसे देखने के बाद यह नहीं लगता कि शासन-प्रशासन इसके संरक्षण, सुंदरीकरण व गहरीकरण के प्रति गंभीर है. क्योंकि पिछले 15 वर्षों से शहर के जो तालाब हैं, उसे अतिक्रमणमुक्त बनाने की कवायद हो रही है, इसके नाम पर समय-समय पर अतिक्रमण हटाओ अभियान भी चला. उस दौरान प्रशासनिक सक्रियता दिखी, तो उम्मीद जगी कि इसके बाद अगला कदम इन तालाबों के सुंदरीकरण व गहरीकरण का होगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. कहा जाता है कि कार्य होंगे, इस दिशा में कदम उठाया जायेगा. लेकिन सुलगता सवाल यह है कि आखिर वह वक्त कब आयेगा. क्योंकि एक तरफ तो सुधार की बात कही जा रही है, तो दूसरी तरफ के दृश्य देखने के बाद कुछ दूसरी तसवीर ही उभर रही है. शहर के साहित्य समाज चौक के पास के तालाब, नावाटोली के पास के तालाब की स्थिति पर नजर डाली जाये, तो साहित्य समाज चौक से शताब्दी मार्केट की परिधि में जो तालाब है, उसमें पूर्व में ही बीच में सड़क बन गयी है. सब्जी मार्केट बन रहा था, तो न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद उस पर रोक लगी. हटाने का आदेश हुआ, तो उसके नाम पर सिर्फ कोरम पूरा किया गया. मलबा वहीं छोड़ दिया गया. रही सही कसर मेदिनीनगर नगर पर्षद ने पूरी कर दी. शहर से निकलने वाले कचरे को नगर पर्षद द्वारा तालाब व कोयल नदी में डाला जा रहा है. इससे नदी व तालाब दोनों प्रभावित हो रहे हैं. इससे पर्यावरण पर भी असर पड़ रहा है. अभी हाल में भी तालाब को अतिक्रमणमुक्त करने का अभियान चला. अतिक्रमण हटा, लेकिन इसके बाद भी सरकारी स्तर पर इसके गहरीकरण या सुंदरीकरण की दिशा में अपेक्षित पहल अब तक नहीं हुई है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि स्थिति ऐसी रही, तो कैसे बचेंगे जलस्रोत?

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