हजारीबाग : सड़क सुरक्षा पर सालाना 6.5 लाख खर्च, फिर भी दुर्घटनाओं में कमी नहीं

जिले में सड़क सुरक्षा पर प्रतिवर्ष 6.5 लाख खर्च है. इसके बाद भी चौपारण की दनुआ घाटी में सड़क दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है. हाल के दिनों में दनुआ घाटी हजारीबाग की एक्सीडेंटल जोन बनी है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 28, 2021 1:52 PM

जिले में सड़क सुरक्षा पर प्रतिवर्ष 6.5 लाख खर्च है. इसके बाद भी चौपारण की दनुआ घाटी में सड़क दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है. हाल के दिनों में दनुआ घाटी हजारीबाग की एक्सीडेंटल जोन बनी है. इस सड़क की देखरेख एनएचएआइ के जिम्मे है. यह सड़क कोलकाता-दिल्ली को जोड़ती है. इसमें चौपारण के चौरदहा से गोरहर (धनबाद सीमा) कुल 71 किमी एनएचएआइ को देख-रेख करने की जवाबदेही है.

सड़क ढलान से दुर्घटनाएं :

दनुआ घाटी लगभग 11 किलोमीटर सड़क बिहार जाने की ओर पूरी तरह ढलान है. वर्ष 2002 में ढलान की गहराई लगभग 17 मीटर था. इसे 2008 में फोरलेन सड़क बनाते समय एनएचआइ ने गहराई को भरने का काम किया है. ढलान के कारण अधिकांश चालक अपनी स्पीड पर कंट्रोल नहीं रखते हैं और दुर्घटनाएं हो जाती हैं. अब-तक अधिकांश दुर्घटनाएं जाने के क्रम (बिहार की ओर) में हुई है.

सुरक्षा मानक नहीं :

11 किलोमीटर सड़क एरिया में एनएचआइ की ओर से सुरक्षा मानक पर ध्यान नहीं दिया गया है. मसलन सड़क के दोनों किनारे 100 मीटर की दूरी पर सुरक्षा साइन बोर्ड नहीं लगा है. रात में लाइट पड़ने पर सड़क एवं तीखी मोड़ पर चमकदार (रिफ्लेक्टिव) यंत्र की कमी है. घाटी में जगह-जगह लोहे का गार्डवाल या तो नहीं लगे हैं और कहीं लगाये गये हैं, तो वह जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है.

अग्निशामक वाहन उपलब्ध नहीं :

इस सड़क पर प्रतिदिन 10 हजार से अधिक मालवाहक, यात्री व अन्य छोटी बड़ी गाड़ियां चलती हैं. 11 किलोमीटर की परिधि में ना तो एंबुलेंस की सुविधा है और न ही अग्निशामक वाहन उपलब्ध कराया गया है. सड़क सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार की ओर से हजारीबाग में प्रतिवर्ष छह लाख 50 हजार खर्च किया जा रहा है. इसमें समय-समय पर लोगों को सड़क पर चलने के लिए जागरूकता के अलावा साइन बोर्ड,

सड़कों की रंगाई, रिफ्लेक्टिव टेप एवं अन्य सुरक्षा मानकों पर खर्च हो रहा है. हजारीबाग में सड़क सुरक्षा कमेटी बनी है. कमेटी में परिवहन, पथ निर्माण विभाग, एनएचएआइ एवं अन्य विभाग से पदाधिकारी जुड़े हैं. प्रतिमाह बैठक कर सड़कों की मॉनीटरिंग की जाती है. बावजूद सड़क दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं.

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