खेतों को ही नहीं मिला पानी

खेतों में हरियाली लाने के लिए पैसे खर्च हुए, योजना भी ली गयी, लेिकन मेदिनीनगर : पलामू में सूखा है. किसान परेशान हैं. जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है. ऐसा नहीं है कि पलामू में खेतों में हरियाली लाने व जलस्तर बनाये रखने के लिए सरकारी योजनाओं पर पैसे खर्च नहीं हुए. पैसे खर्च हुए. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 5, 2016 1:44 AM
खेतों में हरियाली लाने के लिए पैसे खर्च हुए, योजना भी ली गयी, लेिकन
मेदिनीनगर : पलामू में सूखा है. किसान परेशान हैं. जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है. ऐसा नहीं है कि पलामू में खेतों में हरियाली लाने व जलस्तर बनाये रखने के लिए सरकारी योजनाओं पर पैसे खर्च नहीं हुए. पैसे खर्च हुए. योजना भी ली गयी, लेकिन योजना किस हाल में है.
यदि इसे जानना है, तो अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं है. एनएच-75 के बगल में बसे कुछ गांवों में जाने पर ही इन योजनाओं की हकीकत का पता चलता है. पड़वा प्रखंड के लोहड़ा, गाड़ीखास व पड़वा में कई चेकडैम बने थे. कुछ चेकडैम क्यारी में ही बने थे, तो कुछ नदी में. ताकि पानी रुक जाये.
लेकिन नदी में बने चेकडैम में भी आज पानी नहीं है. अन्य चेकडैम के बगल में सूखा है. जबकि इस बार भी पलामू में जुलाई माह में औसत से अधिक बारिश हुई. अगस्त में भी बारिश हुई.
यदि यह चेकडैम पानी रोकने में सफल होते, तो संभव था कि उनकी परिधि में आनेवाले खेतों में हरियाली होती. लेकिन ऐसा नहीं है. खेत सूखे हैं. चेकडैम अपनी कहानी खुद बयां कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह है कि ऐसे हालात रहे, तो बात कैसे बनेगी?
गाड़ीखास व पड़वा में चेकडैम प्यासे
लोहड़ा में 18 लाख की लागत से दुर्गावती नदी व गाड़ीखास में चेकडैम बना था. पड़वा में भी एक चेकडैम था, जो क्यारी में बना है. उसमें एक बूंद पानी नहीं है. समझा जा सकता है कि इस मामले में कितनी ईमानदारी दिखायी गयी है.
सही तरीके से होता निर्माण, तो बदल सकते थे हालात
लोगों का कहना है कि यदि सही तरीके से निर्माण होता, तो हालात बदल सकते थे. क्योंकि पलामू के चियांकी कृषि अनुसंधान केंद्र में इसी वर्ष सूखा के बाद भी चेकडैम व एक तालाब के पानी से लगभग 24 एकड़ में खेती हुई है. यहां 350 क्विंटल धान हुआ है. इसके अलावा अरहर, मकई, ज्वार-बाजरा की खेती हुई है. खेतों का पटवन उसी चेकडैम से किया जा रहा है.
इससे न सिर्फ कृषि अनुसंधान केंद्र बल्कि आसपास के किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब एक चेकडैम से इतना बदलाव आ सकता है, तो पूर्व में बनाये गये चेकडैम की उपयोगिता पर ध्यान देने से पलामू को सूखा से भी निजात मिल सकती थी. लेकिन इस पर किसी का अपेक्षित ध्यान नहीं रहा. इस कारण यह स्थिति बनी.

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