मलवरिया ने दिखायी नयी राह, जीने की जिद ने कायम की भाइचारगी

– मलवरिया से लौट कर जीवेश – jivesh.singh@prabhatkhabar.in 25 साल पहले पलामू का जाे मलवरिया गांव नरसंहार के लिए बदनाम हाे गया था, जहां लाेग शादी करने से हिचकने लगे थे, सनलाइट सेना आैर पार्टी यूनिटी के लोगों के बीच के संघर्ष से तबाही मच रही थी, अब वही मलवरिया गांव बदल गया. एक-दूसरे के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 28, 2016 6:00 AM
– मलवरिया से लौट कर जीवेश –
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
25 साल पहले पलामू का जाे मलवरिया गांव नरसंहार के लिए बदनाम हाे गया था, जहां लाेग शादी करने से हिचकने लगे थे, सनलाइट सेना आैर पार्टी यूनिटी के लोगों के बीच के संघर्ष से तबाही मच रही थी, अब वही मलवरिया गांव बदल गया. एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलनेवाले अब साथ बैठ कर गांव के विकास की बात करते हैं. दाेनाें गुट वर्षाें तक काेर्ट-कचहरी का चक्कर लगाते रहे. फिर आपसी समझ से इस मामले से खुद को अलग कर लिया. मलवरिया के लाेगाें ने महसूस किया कि हिंसा-प्रतिहिंसा से फायदा नहीं हाेता. यह होते ही दुश्मनी का दाैर खत्म हाे गया. यह एक बड़ा बदलाव, जाे समाज काे नयी दिशा दे सकता है.
रुकमणी देवी के घर वर्षों बाद खुशियां आयीं थी. बड़े बेटे की शादी की थी. बहू घर आयी थी. वह चौठारी में लगी थी. घर आये मेहमानों के साथ नयी दुल्हन के स्वागत में वह इधर-से-उधर दौड़ रही थी. हर ओर खुशियां थीं. उसने हाड़तोड़ मेहनत से कमाये पैसों में से कुछ इसी समय के लिए बचा रखे थे.
उनसे वह सबके स्वागत की हरसंभव कोशिश कर रही थी कि अचानक चीख-पुकार से वह दहल गयी. इससे पहले वह कुछ समझ पाती, भारी संख्या में हर उम्र के लोगों की टोली चारों-दिशा से उसकी बस्ती पर टूट पड़ी. फूस के घरों में लुकारी (मशाल) से आग लगाते हुए जो सामने आया, उसे तलवार से काटने और गोली मारने लगे. हर ओर भगदड़ और चीख-पुकार के बीच जान
बचाने की होड़ थी.
जिसे जिधर रास्ता दिखा, भाग निकला. उसे कुछ भी होश नहीं रहा. बाद में जब पुलिस आयी तो वह खेत, जहां छुपी थी, से निकल कर आयी, तो देखा कि सब कुछ खत्म हो चुका था. उसके पति सहित परिवार के तीन सदस्यों की हत्या हो चुकी थी. टोले के 10 लोग मारे जा चुके थे. कई पशु जल मरे थे. दर्जनों घर के साथ अनाज जल चुका था. पता चला कि सनलाइट सेना के लोगों ने हमला किया था. पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार हुआ.
घायलों का इलाज हुआ. कई लापता थे, जो बाद में लौटे. जिला प्रशासन की ओर से कुछ सुविधाएं दी गयीं. सभी पीड़ितों को अधिकारी इधर-उधर घुमाते रहे. घटना के बाद बस्ती के लोगों को पता चला कि उसी दिन गांव के ही रामविनय सिंह की हत्या पार्टी यूनिटी के लोगों ने कर दी थी. रामविनय ऊंटारी प्रखंड के ढयोढर गांव में दुकान चलाते थे. वो घर लौट रहे थे, इसी दौरान उनकी हत्या हो गयी.
हत्या का आरोप श्याम बिहारी कांदू पर लगा. उस बस्ती में श्याम बिहारी का भाई बचन साव रहता था. इसी के प्रतिशोध में घटना को अंजाम दिया गया. बचन साव के परिवार के तीन लोगों को मार डाला गया. बचन साव ने किसी तरह जान बचायी.
रुकमणी के अनुसार घटना के बाद तत्कालीन राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उदय नारायण चौधरी (उन दिनों लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे) आये थे. कई घोषणाएं हुईं. पीड़ित लालू प्रसाद से भी मिले. पीड़ितों के अनुसार प्रत्येक पीड़ित परिवार एक लाख रुपये और एक सदस्य को नौकरी के अलावा घर और अन्य सुविधाओं का आश्वासन मिला.
फिर शुरू हुआ केस-मुकदमे को लेकर भाग-दौड़. घर का कमानेवाला नरसंहार की भेंट चढ़ गया, घर में खाने को दाना नहीं, ऊपर से छोटे-छोटे बच्चों को लेकर डालटनगंज तक का सफर. कुछ ही दिनों में सबके सामने फाकाकशी की नौबत आने लगी. कुछ यही स्थिति थी आरोपियों के घर की भी. उनके घर के भी छह सदस्यों को पार्टी यूनिटी के लोगों ने मार डाला था.
किसी को कुछ नहीं मिला. कुछ ही साल बाद वर्ष 1996 में गांव में स्थापित पुलिस पिकेट पर भी उग्रवादियों ने हमला कर सात जवानों को मार डाला. पिकेट के जवानों पर आरोप लगा कि वो सवर्णों को समर्थन देते हैं. फिर पिकेट भी हटा लिया गया. एक तरफ पार्टी यूनिटी का कहर, तो दूसरी ओर सनलाइट सेना का दमन, गांव के लोग हर ओर से पिसने लगे थे. हालत यह थी कि घर में खाने के लाले पड़ने लगे. इसी बीच 1998 में रामा सिंह की हत्या कर दी गयी.
इस मामले में नरसंहार के पीड़ितों का नाम आया. रामा सिंह के परिजनों ने भी केस किया. अब दोनों ही वर्ग के लोग कोर्ट-कचहरी के चक्कर में तबाह होने लगे. हालत गंभीर हो चुकी थी. इस मामले में बाहर के लोग राजनीति करते थे, मदद नहीं. ऐसे में दोनों ही वर्ग के लोग आगे आये और तय हुआ नये सिरे से जिंदगी की तलाश की बात. गांव के ही कुछ बुजुर्ग, जिनमें बजू सिंह, भोला सिंह, ललन सिंह आदि मुख्य थे आगे आये. कई दौर की बात के बाद आपसी सहमति से केस से सबने खुद को वापस कर लिया.
रुकमणी बताती हैं कि आज हम उनके घर और वो हमारे घर खाना खाने आते हैं. दूसरी ओर वर्तमान में वहां के मुखिया राजमणि सिंह कहते हैं कि हम सबने अपनों को खोया है, अब जो बचा है, उसे तो बचा लें. राजमणि सिंह कहते हैं कि विधवाओं का गांव कहलाना कम शर्मनाक नहीं था. कभी किसी ने मदद नहीं की, पर हंसते सब थे.
मदद के नाम पर राजनीति भी खूब हुई. पार्टी यूनिटी व सनलाइट के बीच गांव के लोग फंसे, हम मेहनत करनेवाले लोग हैं. अपना जीवन खुद बना रहे हैं. नरसंहार के दौरान किसी तरह जान बचा कर भाग निकले बचन साव के अनुसार उपद्रवी उसे खोज रहे थे.
साव के अनुसार श्याम बिहारी कांदू का भाई होने के कारण सब उसे मददगार मानते थे, पर ऐसा नहीं था. किसी तरह वह बच सके, पर कोई मलाल नहीं. इस बात की खुशी है कि गांव में शांति है.
कहते हैं कि गांव में कोई सुविधा नहीं है, ऐसे में मेहनत करने की जगह लड़ाई और केस-मुकदमा में समय बिताने से क्या होगा. गांव के दोनों वर्ग के लोगों को इस बात का फख्र है कि उनके गांव पर न तो माओवादियों का कब्जा है और न ही किसी अन्य नक्सली संगठन का. वो कहते हैं कि अब हम सब अपने बाजुओं के बल पर अपनी किस्मत लिख रहे. (सहयोग मेदिनीनगर से अविनाश व पांडू से मुकेश)
चार जून 1991 की घटना, 2005 में हुआ समझौता
श्याम बिहारी कांदू पर पार्टी यूनिटी का सदस्य होने का आरोप था. पार्टी की कोशिश थी कि मलवरिया गांव पर भी उनका कब्जा हो. उनकी इस कोशिश में गांव के सवर्ण आड़े आ रहे थे.
सवर्णों के समर्थन के लिए सनलाइट सेना का गठन कुछ लोगों ने किया था. इसके बाद इलाके में वर्ग संघर्ष शुरू हो गया. दोनों ही जाति के लोग पीड़ित होने लगे. इसी क्रम में पार्टी यूनिटी ने चार जून 1991 को दिन में राम विनय सिंह को मार डाला. आरोप श्याम बिहारी कांदू पर लगा. मलवरिया में श्याम बिहारी का भाई वचन साव रहता था. इसके विरोध में सनलाइट सेना के नेतृत्व में खास कर कांदू बिरादरी के लोगों के घर पर हमला कर 10 लोगों की हत्या कर दी गयी. दूसरी ओर पार्टी यूनिटी ने अलग-अलग पांच सवर्णों की हत्या कर दी.
नतीजतन इलाके में दहशत का माहौल बन गया. गांव को विधवाओं का गांव कहा जाने लगा. सगे संबंधी नहीं आने लगे. बेटे-बेटियों की शादी भी रुक गयी थी. नरसंहार के बाद गांव के लगभग (91 पर) सभी सवर्णों पर केस था, इसी दौरान 1998 में रामा सिंह की हत्या हो गयी. इसके बाद दलितों (8 पर) पर मामला दर्ज हो गया. अब गांव की स्थिति और खराब हो गयी थी.
वर्ग संघर्ष की जो भेंट चढ़े थे : 1. रामप्रीत साव, 2. झुबली देवी, 3. दुलारी देवी, 4. कलहट राम, 5. सनोज राम, 6. छठनी देवी, 7. हसकली देवी, 8. गणेश राम, 9. रामाधार रजवार, 10. जगदीश राम, 11. रामविनय सिंह, 12. शेषमणि सिंह,13. शैलेंद्र सिंह, 14. सत्यनारायण सिंह, 15. सुरेंद्र सिंह, 16. रामा सिंह
कहती हैं सुनीता कुंवर
नरसंहार की पृष्ठभूमि बने रामविनय सिंह की विधवा सुनीता कुंवर का कहना है कि उन्होंने जो भोगा है उसे कौन मानेगा. उनके पति दुकान से जो कमाते थे, उसी से घर चलता था. घटना के बाद किसी तरह घर चला सकीं, पर, उन्हें भी इस घटना से दुख है. वो हमेशा चाहती हैं कि गांव में शांति रहे.
क्यों आगे आये गांववाले
लगातार घटना के बाद गांव चर्चा में आ गया. कोई भी गांव के साथ संबंध नहीं रखना चाहता था. गांव के लड़के-लड़कियों की शादी रुकने लगी. पुराने संबंधी भी नहीं आने लगे. इससे गांव के बुजुर्ग चिंतित हुए और उन लोगों ने एका की राह निकाली.
रुकमणी देवी : पति समेत तीन परिजन की हुई थी हत्या.
बचन साव : इनके परिवार के तीन लोगों की जान गयी थी.
सुनीता कुंवर : पति रामविनय िसंह की हत्या के बाद हुई थी घटना.

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