हेमंत सरकार ने भी तैयार किया था ड्राफ्ट, पर नीति नहीं बन पायी

हेमंत सरकार ने भी तैयार किया था ड्राफ्ट, पर नीति नहीं बन पायी मूलवासी-झारखंडवासी के रूप में स्थानीय नीति को परिभाषित करने का किया था प्रयासहेमंत सरकार का प्लॉट ही स्थानीय नीति के मुद्दे पर हुआ था तैयार ब्यूरेा प्रमुख4रांची हेमंत सोरेन सरकार का गठन स्थानीय नीति के प्लॉट पर ही हुआ था़ झामुमो ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 7, 2016 6:45 PM

हेमंत सरकार ने भी तैयार किया था ड्राफ्ट, पर नीति नहीं बन पायी मूलवासी-झारखंडवासी के रूप में स्थानीय नीति को परिभाषित करने का किया था प्रयासहेमंत सरकार का प्लॉट ही स्थानीय नीति के मुद्दे पर हुआ था तैयार ब्यूरेा प्रमुख4रांची हेमंत सोरेन सरकार का गठन स्थानीय नीति के प्लॉट पर ही हुआ था़ झामुमो ने इसी मसले पर उस समय पूर्ववर्ती अर्जुन मुंडा की सरकार गिरायी थी़ हेमंत सोरेन सरकार ने स्थानीय नीति को परिभाषित करने के लिए कमेटी भी बनायी थी़ कमेटी की ओर से ड्राफ्ट भी तैयार किया गया था, लेकिन इस पर सर्वसम्मति से राय नहीं बन पाने के कारण नीति नहीं बन पायी थी़ 21 जनवरी 2014 को कमेटी का गठन किया गया था़ तत्कालीन मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह इसके संयोजक बनाये गये थे़ वहीं तत्कालीन मंत्री चंपई सोरेन, गीता श्री उरांव, सुरेश पासवान, बंधु तिर्की, लोबिन हेंब्रम, डॉ सरफराज अहमद, विद्युत वरण महतो व संजय सिंह यादव को सदस्य बनाया गया था. कमेटी की कई बैठकें हुईं. कमेटी ने ड्राफ्ट भी तैयार किया. इसमें मूलवासी व झारखंड निवासी के रूप में स्थानीयता को परिभाषित करने का प्रयास किया गया था़ इसमें नियुक्तियों के लिए भी प्रावधान किया गया था़ कमेटी की अनुशंसा थी कि तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को जिलावार किया जाये़ कमेटी ने झारखंडवासी के लिए कट ऑफ डेट तय करने की भी कोशिश की थी, लेकिन इस पर एक राय नहीं बन पायी थी़ झारखंड निवासी के लिए कमेटी ने कई गाइड लाइन बनायी थी़ राज्य में लगातार 30 वर्ष से रहनेवालों के अलावा केंद्र सरकार की नौकरी व यहां पढ़ाई करनेवालों को भी झारखंड निवासी के रूप में चिह्नित करने की कोशिश की गयी थी़ हेमंत सरकार ने एक खाका जरूर खींचा था, लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहना सकी़ मुंडा ने भी बनायी थी कमेटी, पर नहीं निकला निष्कर्षअर्जुन मुंडा की सरकार ने भी वर्ष 2011 में एक समिति का गठन किया था. कमेटी ने दूसरे राज्यों की स्थानीय नीति का अध्ययन भी किया था. उस समय कमेटी में तत्कालीन उप मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व सुदेश कुमार महतो भी शामिल थे. कमेटी की तीन-तीन बैठकें हुईं, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची. तत्कालीन शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम भी कमेटी के सदस्य थे. होती रही सर्वदलीय बैठक, सबका रहा अपना रागस्थानीयता के मसले पर पिछली सरकारों ने कई बार सर्वदलीय बैठक बुलायी. हर सरकार ने सभी दलों की राय जानने की कोशिश की़ अर्जुन मुंडा की सरकार ने दो बार सर्वदलीय बैठक बुलायी़ मधु कोड़ की सरकार में भी सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी़ हेमंत सोरेन सरकार ने भी कमेटी द्वारा तैयार ड्राफ्ट पर सर्वदलीय बैठक बुलायी थी, लेकिन पार्टियों के बीच इस पर कोई सहमति नहीं बनी. सर्वदलीय बैठक में राजनीतिक पार्टियों के बीच कट ऑफ डेट तय करने को लेकर मतभेद रहा. स्थानीयता के सवाल पर राजनीतिक दल अपने-अपने वोट बैंक के हिसाब से बातें करते रहे़ किसी एक बिंदु पर सहमति नहीं बन पायी. कुछ राजनीतिक दल 1932 को कट ऑफ डेट तय करने का दबाव बनाते रहे, तो कुछ दल दूसरे राज्यों की तरह राज्य गठन से कट ऑफ डेट तक करने की मांग करते रहे़ खतियान के आधार पर अंतिम सर्वे ऑफ सेटलमेंट को लेकर विवाद रहा़ खतियान के आधार पर स्थानीयता तय करने का कुछ राजनीतिक दलों ने विरोध भी किया था़

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