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कबराकलां की जमीन उगल रही ऐतिहासिक धरोहर

हल चलाने, नींव खोदने पर निकल रहे हजारों साल पुराने अवशेष कबराकलां से लौट कर जीवेश jivesh.singh@prabhatkhabar.in कबराकलां की जिस जमीन से पहले धान-गेहूं की पैदावार होती थी, उससे अब हजारों वर्ष पुराने बेशकीमती अवशेष व अन्य चीजें निकल रहे हैं. खेत की जुताई से लेकर घर की नींव या फिर कुएं की खुदाई के […]

हल चलाने, नींव खोदने पर निकल रहे हजारों साल पुराने अवशेष
कबराकलां से लौट कर जीवेश
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
कबराकलां की जिस जमीन से पहले धान-गेहूं की पैदावार होती थी, उससे अब हजारों वर्ष पुराने बेशकीमती अवशेष व अन्य चीजें निकल रहे हैं. खेत की जुताई से लेकर घर की नींव या फिर कुएं की खुदाई के दौरान लगातार अनमोल पौराणिक चीजें निकल रही हैं. अब तक कई प्रतिमाएं, सिक्के, कीमती पत्थर और अन्य सामान निकल चुके हैं. 1997 तक तो लोगों ने जमीन से निकले सामान (प्रतिमा आदि को छोड़ कर) को फेंक दिया या फिर ध्यान नहीं दिया.
खुदाई में निकली कई गाड़ी ईटें नाली अौर गली बनाने में लगा दी गयीं, पर 1998 के बाद कुछ स्थानीय लोगों ने इसके महत्व को समझा. अब लोग इन्हें सहेज कर रखते हैं. गांव में लगभग हर घर में जमीन से निकला हुआ कोई न कोई सामान है. कुछ सामान रांची स्थित राजकीय संग्रहालय में भी हैं. यह मामला लोकसभा व विधानसभा में भी उठा, इसके बाद पुरातत्व विभाग के कई अधिकारी आये, पर हुआ कुछ नहीं.
अब सबको किसी ऐसे तारणहार का इंतजार है, जो वहां के रहस्य से दुनिया को अवगत कराये. गांव के लोग इसके लिए अपनी पूरी जमीन देने को तैयार हैं. अौर तो अौर, अब गांव के लोग बड़ा घर भी नहीं बनवा रहे, ताकि सरकार को मुआवजा भी कम देना पड़े. पर पुरातत्व विभाग की उदासीनता से उनमें नाराजगी है.
कैसे हुई पहचान बचाने की पहल: 1997 में हुसैनाबाद इमामबाड़ा में जपला के इतिहास पर चर्चा का आयोजन किया गया था. इसी में कबराकलां की चर्चा हुई और फिर पत्रकारों की टीम ने गांव का दौरा किया. गांव के लोगों को सामान के ऐतिहासिक महत्व की जानकारी दी गयी. पुरातत्व पर शोध कर रहे अंगद किशोर के अनुसार इस अभियान में सबसे ज्यादा प्रभावशाली साबित हुए हुसैनाबाद के तत्कालीन एसडीअो (प्रशिक्षु आइएएस, वर्तमान में चतरा डीसी) अमित कुमार. उन्होंने लोगों को समझाया कि वे जमीन से निकल रहे सामान को सुरक्षित रखें अौर किसी को न दें. इसके बाद लोगों ने सामान (अवशेष) सुरक्षित रखना शुरू कर दिया. गांव के लोग बताते हैं कि वहां जमीन से बुद्ध व शिव की कई प्रतिमा निकली थीं, जिसे लोग ले गये.
लोकसभा व विधानसभा में भी उठा मामला : कबराकलां के रहस्य का पता लगाने के लिए लोकसभा व विधानसभा में भी मामला उठ चुका है. इलाके के तापस डे के प्रयास से कटिहार के सांसद निखिल कुमार चौधरी (ध्यान रहे पलामू के किसी सांसद ने इस मामले को नहीं उठाया) ने 2000 में इस मामले को लेकर लोकसभा में सवालकिया, पर पुरातत्व विभाग की ओर से सिर्फ इलाके का दौरा किया गया.
पुन: इस वर्ष विधानसभा में इलाके के विधायक कुशवाहा शिवपूजन मेहता ने सवाल उठाया था, पर हुआ कुछ नहीं. गांववालों के अनुसार स्थानीय बीडीअो ने उनसे थोड़ी जमीन मांगी, ताकि वहां पर कोई कमरा बना कर उसमें जमीन से निकलनेवाले अवशेषों व अन्य सामान को रखा जा सके. इस प्रस्ताव पर गांववाले तैयार हैं, जमीन देने को, पर कोई आगे नहीं आया.
पुरातत्व विभाग से जो आये : अंगद किशोर के अनुसार, अभी तक कई लोगों ने गांव का दौरा किया, पर हुआ कुछ नहीं. उनके अनुसार पुरातत्व विभाग के जिन लोगों ने दौरा किया, उनमें पटना के नीरज कुमार सिन्हा (16 सितंबर 1999), टीजे अलोने व डीके अंबष्ट (6 अप्रैल 2000), नयी दिल्ली के डॉ अमरेंद्र नाथ (20 अक्तूबर 2003), रांची से टीजे बैद्य (2005), आरके वर्मा (2010), एनजी निकोसन व अब्दुल आरिफ (2011) व डॉ एनपी वर्मा (2012) शामिल हैं.
गांव में जो दिखता है : गांव का शिव मंदिर कब का है, इसकी किसी को जानकारी नहीं. एक ही पत्थर का बना शिवलिंग स्थापित है. मंदिर की दीवार की चित्रकारी भी अद्भुत है. मंदिर का चक्र भी उत्कृष्ट कलाकृति का नमूना है.
मंदिर पर कई रिंग बेल बने हुए हैं. स्व रामेश्वर सिंह के परिजन घर की चहारदीवारी नहीं बना पाये, कारण उनके घर के सामने जमीन के नीचे भी एक चहारदीवारी है, जिसके ईंट ऊपर से दिखते हैं. उनके परिजनों के अनुसार शुरू से ही उक्त चहारदीवारी है. खोदने पर नीचे तक दीवार दिखती है, इस कारण उन लोगों ने छोड़ दिया है. इसी तरह गांव के अगल-बगल घेराबंदी की आकृति दिखती है. गांव के ही कृतनारायण साव खुदाई करा रहे थे, तो 12 फीट नीचे एक मकान की छत अौर उसके नीचे श्रृंगार के सामान मिले. इसके अलावा कई तरह के चिह्न दिखते हैं.
बलिया से आये थे लोग : पंचायत समिति सदस्य रामप्रवेश सिंह के अनुसार, वर्षों पहले उनके पूर्वज लक्ष्मण सिंह (नारावणी राजपूत) के नेतृत्व में बलिया के बांसडीह तहसील (वर्तमान में) से आये थे. आनेवालों में सभी जाति के लोग थे. पहले वे गढ़वा के सोनपुरा स्टेट गये, पर वहां मन नहीं लगा, तो कबराकलां आकर बस गये.
चुकी सभी जाति के लोग साथ आये थे, इस कारण गांव में सब लोग प्रेमभाव से रहते हैं. उनके अनुसार अब कबराकलां के लोग खेत में ट्रैक्टर लेकर जाने की बात सोच कर परेशान हो जाते हैं. कारण है कि ट्रैक्टर का फाल लग कर कभी कोई घड़ा निकलता है, तो कभी कोई मूर्ति, वो भी हजारों साल पुराना. फिर सारा काम रोक कर उसे ठीक से रखने या फिर उसकी जानकारी अधिकारियों को देने की बात होती है. इस कारण काम प्रभावित होता है.
घर के लिए नींव खोदने या कुआं की खुदाई में भी परेशानी है. कुछ न कुछ मिलना शुरू हो जाता है. 2013 में सुरेंद्र सिंह के घर में शौचालय का चेंबर बन रहा था. अभी थोड़ी ही खुदाई हुई थी कि मजदूर नीचे धंसने लगे. उन्हें ऊपर खींच कर निकाला गया. फिर देखने के बाद पता चला कि वहां सुरंग है. इसकी सूचना तत्कालीन बीडीओ को दी गयी, पर कुछ नहीं हुआ. बाद में उसे भर कर उसी पर चेंबर बना दिया गया. ऐसी घटनाएं आम हैं. इस कारण उन लोगों ने निर्णय किया है कि सरकार मांगे, तो गांव छोड़ कर दूसरी जगह जाकर बस जायेंगे.
कहते हैं अंगद : पुरातत्व शोध परिषद के सह संयोजक अंगद किशोर कबराकलां को उसकी पहचान दिलाने के लिए लगे हुए हैं. वह बताते हैं कि इसके लिए वह तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी से भी मिले थे, पर कुछ नहीं हुआ. उनके अनुसार यहां पर नवपाषाण काल, ताम्र पाषाण काल, मौर्य, गुप्त व मुगलकाल के अवशेष हैं. उनके अनुसार अगर खुदाई हुई, तो यहां भी हड़प्पा, मोहनजोदड़ो की तरह एक नयी संस्कृति का पता चलेगा. पर अंगद व्यवस्था से दुखी हैं. उनके अनुसार इसकी गंभीरता कोई नहीं समझ रहा.
(साथ में मेिदनीनगर से अविनाश व हैदरनगर से जफर)
अब तक जो मिला है : अब तक जो मिला है, उनमें नव पाषाणकालीन कुल्हाड़ी, मौर्यकाल के टेराकोटा के खिलौने, तांबे व चांदी के सिक्के, चमकीला पत्थर व टोंटीदार बरतन, गुप्त काल की सुंदर केशवाली अौरत की प्रतिमा, पत्थर के मोहरें व अन्य प्रतिमा, बुद्धकाल से लेकर गुप्त काल तक की काली पॉलिस युक्त मृदभांड के टुकड़े, पत्थर की वितरणी, मनके व पत्थलौटी, मुगलकाल के धातु का घड़ा व सुराही, विभिन्न कालों के पत्थर के नक्कासीदार पीढ़े, एमफोरा, शिवलिंग, धातु के बरतन, लहसिंगन, दुर्लभ पत्थर की गेंद, सोने की अंगूठी, चावल शामिल है.
एक नजर गांव पर : सोन नदी व उत्तर कोयल के संगम स्थल पर लगभग 10 एकड़ में बसे इस गांव में 350 घर हैं. गांव के ठीक सामने सोन के पार रोहतास गढ़ है. 1100 वोटरोंवाले हैदरनगर प्रखंड स्थित इस गांव की दूरी मेदिनीनगर से 110 किलोमीटर है. सड़क की स्थित जर्जर है अौर रेल से आने के लिए हैदरनगर रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ता है, जहां से 09 किलोमीटर दूर है गांव.

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