Palamu News: खुद की बनाई हुई राह से चल कर मंजिल तक पहुंचना भले ही संघर्ष की कथा लिखती है, पर इसका मजा भी कुछ और है. खास कर स्टार्टअप की अनेकों सफलता के किस्से इनदिनों युवाओं को कुछ अलग करने के लिए प्रेरित किया है. कुछ ने जीवन में सफल होने के लिए पारम्परिक रोजगार स्रोतों की ओर न जाकर खुद के लिए नए विकल्प तैयार किया तो कुछ ने अपनी मजबूरियों से कुछ अलग कर अपनी तकदीर को मुकम्मल बनाया. ऐसे ही एक युवा है अनूप खलखो. अनूप वैसे तो पुश्तैनी तौर पर लातेहार के महुआडांड़ के रहने वाले है लेकिन पिछले कई वर्षो से पलामू के पोखराहा में अपने परिवार के साथ रह रहे है. अनूप खलखो ने अपनी बातें साझा की जो बेहद रोचक है और प्रेरणादायक भी.
बीएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद अनूप को उत्तराखंड के गढ़वाल में एक मिशन स्कूल में शिक्षक की नौकरी लगी. वहां बच्चों के साथ वे काफी घुल मिल गए. इसी बीच उनके बच्चे भी बड़े हो गए. अनूप की पत्नी नर्स का काम करती है, उन्हें भी काफी समय घर के बाहर बिताना पड़ता था. ऐसे में बच्चों की परवरिश ठीक से नहीं हो पा रहा था. बच्चों को ठीक से पढ़ाने की ललक ने अनूप को शिक्षक की नौकरी छोड़ नया कुछ करने के विवश किया.
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नौकरी छोड़ अनूप घर तो आ गए अब सामने सवाल था की आगे क्या करें. कोई भी नौकरी करने में वहां समय देना पड़ता, ऐसे में उन्होंने खुद की कुछ करने को सोचा और खेती को अपनाया. अनूप बताते हैं कि खेती की प्रेरणा उनको अपने पिता से मिला जो महुआडांड़ में खेती का काम करते हैं. अनूप अपने पोखराहा के जमीन पर सब्जी व अन्य खेती शुरू किया. सब्जी उत्पादन बढ़िया होने लगा. इसमें उन्होंने कई प्रयोग भी किये जो सफल रहा. अनूप अपने साथ दूसरों को भी सब्जी व अन्य वैकल्पिक खेती के लिए प्रेरित किया. आज अनूप एक सफल किसान है.
जब अनूप के बच्चे बड़े हो गए तो उनके पास कुछ खाली समय बचने लगा. उस खाली समय को उन्होंने पौधा बेचने में लगाया. धीरे-धीरे अनूप को लगा कि पौधा लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करना भी जरूरी है. उन्होंने साइकिल पर खलको एग्रीकल्चर का बोर्ड लगाया और निकल पड़े घूम-घुम कर फूल, फल व सब्जी के पौधे बेचने. साथ में पौधा खरीदने वालों को अनूप खेती के फायदे और तरीके भी बताने लगा. लोग जुड़ते गए और काम का दायरा बढ़ता गया. आज अनूप का घुमन्तु पौधशाला एक पहचान बनाने में कामयाब हो गया है.
प्रारंभिक दौर में जो जरुरत था वो काम जब जूनून में बदला तो अनूप खलको को एक नयी पहचान मिली. साथ में सुकून भी. अनूप बताते है साइकिल से घूम-घूम कर पौधा बेचना बहुत ज्यादा मुनाफे का काम नहीं है. जितना समय इसमें लगता है उस हिसाब से मुनाफा बहुत कम ही रहता है, लेकिन इस काम में जो सुकून मिलता है. उसका मुकाबला पैसा नहीं कर सकता. अनूप की मानें तो जब उनके दिए हुए पौधे लोगों के बगीचे में फल या फूल देने लगता है तो उन्हें बहुत खुशी मिलती है. जिन्हें वे पौधे बेचते है आने-जाने के क्रम में अनूप उन पौधो पर नजर भी रखते हैं की वो कितना बढ़ा.
अनूप खलखो अपनी पत्नी की कार्यक्षेत्र में भी उनके बाहर रहने पर घर का काम संभाला. अपने दोनों बेटों को अच्छी तालीम दी. अपनी सभी जिम्मेदारी पूरी की. अनूप बताते हैं कि आगे चलकर बच्चे कोई बड़ा पदाधिकारी या डॉक्टर, इंजिनियर बन जाये तो भी खेती और पौधा बेचने का काम नहीं छोड़ेंगे.
रिपोर्ट : सैकत चटर्जी, पलामू