Azadi Ka Amrit Mahotsav: बापू से प्रेरणा ली और आंदोलनकारी बन गये पलामू के बनवारी सिंह
हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया. झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है.
Azadi Ka Amrit Mahotsav: पलामू की मिट्टी शुरुआत से ही आंदोलन और शहादत की गवाह रही है. देश के लिए कर गुजरनेवाले यहां के लोगों की लंबी फेहरिस्त है. इनकी कुर्बानियों और संघर्ष के किस्से सुनकर लोग आज भी प्रेरित होते हैं. इन्हीं चंद लोगों में शुमार हैं बांसडीह खुर्द गांव के स्वतंत्रता सेनानी बनवारी सिंह. यह गांव पलामू जिला मुख्यालय से 23 किमी दूर चैनपुर प्रखंड में जंगलों के बीच स्थित है. बनवारी सिंह के कारण स्वाधीनता संग्राम के दौर में यह गांव जाग्रत केंद्र बन गया था. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बनवारी सिंह सक्रिय रूप से शामिल हुए. उनका जन्म 1922 में हुआ था.
गांधी जी से प्रभावित होकर संघर्ष में कूद पड़े
1927 में गांधी जी डालटनगंज आये थे. उनसे प्रभावित होकर 20 साल की उम्र में बनवारी सिंह अंग्रेजों के खिलाफ उग्र आंदोलन में शामिल हो गये. इसके बाद धीरे-धीरे परिवार से कटते गये. उन पर सक्रियता के कारण सामजिक दायित्व का बोझ बढ़ता गया. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में डाल दिया. हजारीबाग में करीब डेढ़ वर्ष तक बनवारी सिंह कैद में रहे थे. स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान के लिए उन्हें ताम्र पत्र भी मिला था. इसे परिजनों ने संजो कर रखा है.
आजादी के बाद भी मुखर रहे
बनवारी सिंह के पौत्र अमृत राज सिंह उर्फ ब्रजेश सिंह ने बताया कि वह अपने बाबा के संघर्ष के बारे में अपनी दादी निभा देवी से बहुत कुछ सुना करते थे. बनवारी सिंह आजादी के बाद भी मुखर रहे. 1969 में जमीन विवाद में उनकी हत्या कर दी गयी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पलामू आगमन पर भी वह सक्रिय रहे थे. नेताजी के विचार ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया था. बनवारी सिंह की गतिविधियों पर महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण आदि का प्रभाव दिखता था. 80 वर्षीय बुजुर्ग और वर्तमान में बरवाडीह जंक्शन (लातेहार) में रहनेवाले विश्वनाथ प्रसाद ने बताया कि बनवारी सिंह भारत सेवक समाज के अध्यक्ष रहे थे. आजादी के बाद भी वह सामाजिक क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे.
भूदान आंदोलन में भी रही अहम भूमिका
स्वतंत्रता सेनानी बनवारी सिंह जमींदारी प्रथा का विरोध करते थे. इसी मुद्दे पर चैनपुर राज परिवार का भी विरोध किया था. उनकी विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में अहम भूमिका रही थी. वह बरवाडीह एवं लेस्लीगंज (अब नीलांबर-पीतांबरपुर) प्रखंड में विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय रहकर जमींदारों से जमीन दान प्राप्त करने में मददगार बने थे. संबंधित जमीन भूमिहीनों को उपलब्ध कराने में भी सक्रिय रहे थे.
समाजहित में हमेशा सक्रिय रहे
बनवारी सिंह का परिवार के प्रति कम लगाव रहा, लेकिन वह समाज हित में हमेशा सक्रिय रहे. इस कारण उनके पुत्र बसंत कुमार सिंह की शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश के रीवा में बुआ के घर पर हुई थी. बसंत सिंह की मृत्यु 2020 में हो गयी. बनवारी सिंह की पत्नी निभा देवी का निधन 2022 के जनवरी महीने में हो गया. परिजनों ने बताया कि घर में चोरी हो जाने से उनकी लिखी डायरी व अन्य कागजात भी गुम हो गये. इसके कारण कोई भी दस्तावेज अब परिजनों के पास शेष नहीं हैं.