पलामू, सैकत चटर्जी: इंसान अपना शौक पूरा करने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाता है. इसके लिए न तो वो आर्थिक नुकसान को देखता है, न ही अन्य बातों की परवाह करता है. इंसान के लाखों शौक में से एक है विंटेज चीजों का कलेक्शन. इस दुनिया में एक से एक लोग हैं, जो अपने विंटेज कलेक्शन के लिए जाने जाते हैं. पलामू के मेदिनीनगर के रहने वाले डॉ एसके राय ( स्वपन दा) विंटेज कार के शौक के लिए जाने जाते हैं. स्वपन दा बताते हैं कि मॉरिस 10 गाड़ी से उन्होंने 1976 में रांची टू जमशेदपुर विंटेज कार रैली में प्रथम पुरस्कार हासिल किया था. वे उस समय अंडर एज थे. तत्कालीन रांची डीएसपी मैकू राम के सौजन्य से उन्हें कार रैली में हिस्सा लेने के लिए अंडर एज होने के बावजूद विशेष अनुमति दी गई थी. उन्होंने कई दिगज्जों को पछाड़कर इस रैली में प्रथम पुरस्कार जीता था. जब स्वपन दा इन विंटेज कारों को लेकर मेदिनीनगर के सड़कों पर निकलते हैं तो सभी रुककर देखने लगते हैं. कुछ वीडियो बनाने लगते हैं तो कुछ दादा को रोककर सेल्फी भी लेते हैं. दादा भी फोटो खींचने से किसी को नहीं रोकते. उनका कहना है कि बहुत मजा आता है जब नयी जेनरेशन के बच्चे गाड़ी रुकवा कर सेल्फी लेते हैं और गाड़ी के विषय में उत्सुकता से पूछते हैं.
पुरुलिया की जमींदार खानदान से है ताल्लुक
मेदिनीनगर के रहने वाले डॉ स्वपन राय का ताल्लुक पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से है, जहां के पांच गांवों के वे आज भी जमींदार हैं. उनके पिता मेदिनीनगर (तत्कालीन डाल्टनगंज) आकर बस गए थे. तब से वे यही रहते हैं. राय परिवार मेदिनीनगर के खानदानी बंगाली परिवारों में से एक है. फिलहाल स्वपन दा समय गुजारने के लिए अपने रेसिडेंसियल कंपाउंड के एक हिस्से में अपना एक्सरे सेंटर चलाते हैं. उनके परिवार के बाकी सदस्य में से अधिकतर विदेशों में हैं, जबकि रांची में भी इनका घर है. इकलौती बेटी सिंगापुर में नौकरी करती है. स्वपन दा को उनके परिवार के लोगों ने कई बार पलामू छोड़ कर रांची या अन्य बड़े शहरों में जा बसने की सलाह दी पर यहां की मिट्टी से जुड़ाव ऐसा है कि उन्होंने उन तमाम सलाहों को खारिज कर दिया और यही रह रहे हैं.
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आइए जानते हैं उनकी विंटेज कारों के बारे में
कारों के जबरदस्त शौकीन स्वपन दा के पास मेदिनीनगर में फिलहाल एक नई व तीन पुरानी गाड़ियां हैं. नई गाड़ी में उन्होंने टाटा की हैरियर रखी हुई है और विंटेज गाड़ियों में उनके पास एक अंबेसेडर की सबसे पुरानी मॉडल के साथ साथ एक मॉरिस 10 और एक बेबी अस्टिन सेवेन है, जो पलामू की सबसे पुरानी गाड़ियों में से है. इसके अलावा स्वपन दा के रांची स्थित घर में एक अस्टिन का 1949 मॉडल गाड़ी भी है. उनके पुरुलिया स्थित पुश्तैनी घर में अभी भी दो घोड़ा खींचने वाली फिटन गाड़ी रखी हुई है. एक फिटन गाड़ी हुड के साथ है जिसमें महिलाएं सफर करती थीं और दूसरा ओपन हुड है, जिसमें घर के पुरुष सफर करते थे. अब घोड़े तो नहीं हैं, पर दोनों फिटन गाड़ियों को सहेज कर रखा गया है.
बेबी अस्टिन सेवेन को दादा जी ने अपनी मां के लिए खरीदा था
स्वपन दा बताते हैं कि उनके संग्रह की सबसे पुरानी गाड़ी बेबी अस्टिन सेवेन को उनके दादा पद्मभूषण डॉ बिमलानंद राय ने 1931 में अपनी मां (यानी स्वपन दा के पर दादी) के लिए खरीदी थी. उस समय इस गाड़ी की कीमत 1200 रुपए थी. इसमें ब्रिटिश इंडिया का नंबर था. जब यह गाड़ी स्वपन दा के पिताजी को अपने पिताजी से गिफ्ट में मिला तो इसे डाल्टनगंज लेकर आए. आजादी के बाद इसे बिहार का नंबर अलॉट किया गया. इस गाड़ी को अभी भी रनिंग कंडीशन में रखना बहुत मुश्किल भरा काम है, क्योंकि अब इसका पार्ट्स मिलना मुश्किल हो गया है. कुछ भी खराब होने पर मुंबई या कोलकाता के चोर बाजार के पुराने लोगों के पास ही इसका पार्ट्स मिलता है और उसकी कीमत भी काफी है. इसके बावजूद स्वपन दा इस गाड़ी को अभी तक मेंटेन रखे हैं. बाइक के चक्के जैसे चक्के वाले इस गाड़ी को लेकर वे अभी भी शहर में घूमने निकलते हैं. 2000 तक वे इसे लेकर रांची आना-जाना करते थे, पर सड़कों पर बढ़ती तेज रफ्तार के कारण अब इसे लेकर सिर्फ मेदिनीनगर की सड़कों पर ही निकलते हैं.
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मॉरिस 10 से जीता था कार रैली में प्रथम पुरस्कार
स्वपन दा बताते हैं कि मॉरिस 10 गाड़ी से उन्होंने 1976 में रांची टू जमशेदपुर विंटेज कार रैली में प्रथम पुरस्कार हासिल किया था. वे उस समय अंडर एज थे. तत्कालीन रांची डीएसपी मैकू राम के सौजन्य से उन्हें कार रैली में हिस्सा लेने के लिए अंडर एज होने के बावजूद विशेष अनुमति दी गई थी. उन्होंने कई दिगज्जों को पछाड़कर इस रैली में प्रथम पुरस्कार जीता. यह एक रनिंग शील्ड थी पर इतने कम उम्र में प्रथम पुरस्कार जीतने के कारण आयोजकों ने यह शील्ड उनको हमेशा के लिए दे दिया, जिसे अभी तक उन्होंने सम्हाल कर रखा है. इस गाड़ी को भी स्वपन दा के दादाजी ने खरीदा था. इसकी कीमत 3600 रुपए थी. इस गाड़ी से स्वपन दा बनारस, पटना, रांची, पुरुलिया का सैर कर चुके हैं.
अंबेसडर अभी भी दौड़ती है सरपट
जब देश में अंबेसडर की पहली मॉडल आई तो वो भी राय फैमली की गराज की शोभा बनकर आई. तब से अब तक वो स्वपन दा के निगरानी में है और अभी सड़कों पर सरपट दौड़ती है. स्वपन दा बताते हैं कि अभी भी इस गाड़ी से रांची तक का आरामदायक सफर होता है. पार्ट्स मिलने में दिक्कत होने के कारण अब ज्यादा लंबी दूरी जाने का जोखिम नहीं लेते.
स्वपन दा करते हैं साफ-सफाई, यासीन करता है मरम्मत
इन तीनों विंटेज कारों की साफ-सफाई स्वपन दा खुद करते हैं, जबकि मरम्मत का काम यासीन सम्हालता है. स्वपन दा कहते हैं कि ये महज एक गाड़ी नहीं परिवार की धरोहर है. इससे कई ऐतिहासिक यादें जुड़ी हैं. इसलिए इसकी साफ सफाई परिवार के एक सदस्य की तरह खुद ही करते हैं. यासीन कहता है कि इस गाड़ी का कोई पार्ट खोल के बनाने में जितनी देर लगती है उतनी देर में आज की चार गाड़ी मरम्मत हो जाए. पर इस काम को वो पैसा कमाने के लिए नहीं करता. इस धरोहर को सहेजने के लिए करता है. इस तीनों विंटेज कारों को स्वपन दा और यासीन के अलावा कोई नहीं चलाता है. हालांकि कई लोग आकर अनुरोध करते हैं कि उन्हें थोड़ी देर चलाने दिया जाये पर चूंकि इसे चलाना सब की बस की बात नहीं और कुछ खराब होने पर पार्ट्स मिलने में कठिनाई होती है. इसलिए इसे चलाने को इजाजत किसी को नहीं मिलती.
सड़कों पर चलते हैं तो लोग रुककर देखने लगते हैं
जब स्वपन दा इन विंटेज कारों को लेकर मेदिनीनगर के सड़कों पर निकलते हैं तो सभी रुककर देखने लगते हैं. कुछ वीडियो बनाने लगते हैं तो कुछ दादा को रोककर सेल्फी भी लेते हैं. दादा भी फोटो खींचने से किसी को नहीं रोकते. उनका कहना है कि बहुत मजा आता है जब नयी जेनरेशन के बच्चे गाड़ी रुकवा कर सेल्फी लेते हैं और गाड़ी के विषय में उत्सुकता से पूछते हैं. साथ ही वे युवाओं से पुरानी चीजों को सहेजने की बात भी करते हैं. उनके मुताबिक अपनी पुरानी विरासत को हर हाल में सम्हाल कर रखना चाहिए.
इसे सिर्फ अपना ही नहीं पलामू की धरोहर मानते हैं
इन तीन विंटेज गाड़ियों के बारे में स्वपन दा कहते हैं कि इनको बचाकर रखना सिर्फ उनका शौक नहीं नशा भी है. इनकी देखरेख करना अब आदत में शुमार हो गई है. इन्हें वे अपनी खानदानी विरासत के साथ साथ पलामू के लिए भी धरोहर मानते हैं.
लाखों रुपये मिलते हैं कीमत पर बेचते नहीं हैं
जब लोगों को इन विंटेज कारों के बारे में पता चलता है तो बड़े-बड़े शहर से आकर लोग इनके लाखों रुपए कीमत देने को तैयार हो जाते हैं पर स्वपन दा उन्हें मुस्कुराकर टाल देते हैं. उनका कहना है कि सिर्फ कार ही नहीं अपने परिवार की किसी भी वैसी चीज जिनसे उनके दादा, परदादा, पिता की यादें जुड़ी हुई हों, जिनके साथ उनके परिवार के कई किस्से जुड़े हों, उन चीजों को वे कभी नहीं बेच सकते. जिसे लोग आज के समय के लायक नहीं मानते. बेकार समझते हैं, उसकी कीमत लाख या करोडों में नहीं आंकी जा सकती क्योंकि इनके सेंटीमेंटल वैल्यू को पैसे से नहीं तौला जा सकता.
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