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Jharkhand News: पलामू के राजहरा कोलियरी में कोयले का भंडार, पर 14 साल से नहीं हो रहा खनन, जानें कारण

पलामू के राजहरा कोलियरी स्थित पड़वा के इलाके में कोयले का अकूत भंडार है. पिछले 14 साल से यहां उत्खनन कार्य रूका पड़ा है. इससे हजारों लोग प्रभावित हो रहे हैं. माइंस शुरू होती, तो पड़वा का यह इलाका व्यावसायिक दृष्टिकोण से झारखंड का मिनी कोयलांचल बन सकता है.

By Samir Ranjan | November 15, 2022 5:37 PM

Jharkhand News: पलामू की धरती में कोयले की अकूत भंडार है. पर, उत्खनन कार्य नहीं होने से यूं ही जमीन के नीचे दबा है. CCL का राजहरा कोलियरी में पिछले 14 साल से उत्खनन कार्य ठप है. जिसके कारण प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोग प्रभावित हैं. पडवा, नावाबाजार और पाटन प्रखंड क्षेत्र में कोयला का अकूत भंडार है.

बन सकता है झारखंड का मिनी कोयलांचल

सबसे अधिक और अच्छा कोयला का क्षेत्र पड़वा प्रखंड का क्षेत्र बताया जाता है. वर्ष 2015 में मेराल कोल ब्लॉक, लोहाडी कोल ब्लॉक, कठौतिया कोल ब्लॉक आवंटित किया गया है. लेकिन, कठौतिया माइंस को छोड़कर किसी में उत्पादन शुरू नहीं हुआ. संबंधित माइंस शुरू हो जाने से आसपास के लोग लाभान्वित होते. साथ ही रोजगार का अवसर प्रदान होता. केंद्र और राज्य सरकार तीव्र गति से कार्य करे, तो पड़वा का यह इलाका व्यावसायिक दृष्टिकोण से
झारखंड का मिनी कोयलांचल बन सकता है.

खदान में पानी भरने से उत्पादन पड़ा ठप

लोगों का कहना है कि सरकार की उदासीन रवैया के कारण शिथिल पड़ा हुआ है. सीसीएल राजहारा कोलियरी की पहचान है. भारत ही नहीं, बल्कि एशिया स्तर पर रहा है. यहां का कोयला विदेशों में जाता था. लेकिन, वर्ष 2008 में खदान में पानी प्रवेश करने के बाद उत्पादन कार्य ठप पड़ा है. पलामू सांसद बीडी राम के अथक प्रयास से पर्यावरण स्वीकृति मिली. सेक्शन 22 हटा दिया गया. फरवरी 2019 को सीएमडी गोपाल सिंह ने उद्घाटन भी किया. लेकिन, आज तक कोयले का उत्पादन शुरू नहीं हो सका.

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सिर्फ चुनावी मुद्दा बना सीसीएल का राजहारा कोलियरी

लोगों का कहना है कि राजहारा में पहली बार 1842 में बंगाल कॉल कंपनी ने उत्खनन कार्य शुरू किया था. 1973 में राष्ट्रीयकरण हो गया, तब से 2008 तक लगातार उत्पादन होता रहा. सीसीएल का राजहारा कोलियरी सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है.

जेजे लैंड का जिक्र नहीं

मालूम हो कि वर्ष 2015 में केंद्र सरकार द्वारा टेंडर निकाला गया था. जिसमें हिंडालको कंपनी को कठौतिया कॉल ब्लॉक आवंटित हुआ. हिंडालको ने काम शुरू किया, लेकिन कुछ ही समय के बाद स्थानीय लोगों ने कई तरह की अड़चनें पैदा कर दी. कंपनी के लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार ने जो दस्तावेज दिये थे, उसमें जेजे लैंड नहीं था. लेकिन, जब कंपनी द्वारा उत्पादन शुरू किया गया, तो जेजे (जंगल-झाड़) भूमि का जिक्र निकल गया.

सिंगल विंडो सिस्टम कार्य नहीं कर रही

दूसरी तरफ, रैयतों का सहयोग और प्रशासन की उदासीनता के कारण लक्ष्य के अनुरूप उत्पादन नहीं हो रहा. कठौतिया का कुल रिजर्व 20 मीट्रिक टन है. इसमें लगभग 10 मीट्रिक टन का उत्पादन हो चुका है. देश में कोयले की बढ़ती मांग को लेकर केंद्र सरकार ने विभिन्न कंपनियों को कॉल ब्लॉक आवंटित किया था, ताकि उत्पादन की गति निरंतर तेज हो सके. इसके लिए केंद्र सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन सिंगल विंडो सिस्टम कार्य नहीं कर रही.

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रैयत कर रहे अड़चन पैदा

तंत्र सही रूप से कार्य नहीं कर रही है. जिसका परिणाम है कि माइंस सुचारू ढंग से शुरू नहीं हो पा रहा है. कंपनी के कर्मियों कि माने, तो रैयतों और कंपनी के बीच के विवाद को सुलझाने के लिए स्थानीय प्रशासन भी सक्रिय नहीं है. उत्पादन के लिए कोयला कंपनियों के समक्ष मूल समस्या भूमि है. रैयतों द्वारा जमीन का मुआवजा लेने के बाद भी अड़चन पैदा कर रहे हैं

किस कंपनी को कॉल ब्लॉक आवंटित

– राजहारा से सटे लोहाडी में 13 मीट्रिक टन का रिजर्व है. साल 2015 में इसे भी अरण्या कंपनी ने केंद्र के माध्यम से दिया है. जिसमें अभी तक कोई भी खनन कार्य शुरू नहीं हुआ है. कंपनी के लोगों की माने, तो खनन पट्टा, फॉरेस्ट क्लियरेंस आदि अनापत्ति मिल गया है, लेकिन आज तक उत्पादन शुरू नहीं हो सका.

– फेयर माइन कॉर्बन को 2022 में कॉल ब्लॉक आवंटित हुआ है. इसे भी प्रदूषण अनापत्ति मिल चुका है. बहुत सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है. कुछ कार्य बाकी है. इस कंपनी को 22 मीट्रिक टन रिजर्व है. उम्मीद है कि 2023 में उत्पादन शुरू होगा.

– मेराल कॉल ब्लॉक त्रिमुला कंपनी को पाटन के मेराल में 2015 में आवंटित हुआ था. इसमें 17 मीट्रिक टन भंडार रिजर्व है. सात साल बीत जाने के बाद भी कोई खनन कार्य शुरू नहीं हो सका है.

किस कंपनी को कितना हेक्टेयर जमीन आवंटित

कॉल ब्लॉक : जमीन आवंटित
मेराल : 1050 हेक्टेयर
लोहाडी : 450 हेक्टेयर
कठौतिया : 938 हेक्टेयर
राजहारा नार्थ फेयर माइंस कार्बन प्राइवेट लिमिटेड : 117 हेक्टेयर
सीसीएल राजहारा : 149 हेक्टेयर

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रिपोर्ट : चंद्रशेखर सिंह, मेदिनीनगर.

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