पलामू, सैकत चटर्जी : पलामू के प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर में फुटपाथी फूड स्टॉल में फुटपाथी व्यंजनों का काफी प्रचलन है. इनमें जहां एक तरफ चाइनीज, पंजाबी, साउथ इंडियन, कॉन्टिनेटल फूड का चलन है तो दूसरी तरफ लिट्टी चोखा, मुर्गा भात, हांडी बिरियानी जैसी चीजों की भी मांग है. कुछ खास चौराहों पर लगने वाले फुचका, झालमुड़ी, समोसा, पकौड़े की भी अलग डिमांड है. इन सबके बीच गर्मी के दस्तक के साथ पूरे पलामू में जिस चीज की डिमांड सबसे अधिक होती है वो है सत्तू शरबत. यूं तो कुछ खास – खास जगहों पर सालों भर सत्तू शरबत मिलता है पर गर्मी शुरू होते ही हर चौक, चौराहा, गली, मोहल्ला में सत्तू शरबत के ठेलों की भरमार हो जाती है पर अब इनपर भी महंगाई का असर दिखने लगा है.
प्रभात खबर ने जब मेदिनीनगर के कुछ सत्तू शरबत बेचने वालों से बात की तो उन्होंने अपना दर्द बयां किया. हमीदगंज निवासी पवन पासवान करीब 20 वर्षो से ठेला पर घूम-घूम कर सत्तू शरबत बेचने काम करते है. उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षो से तुलना किया जाए तो सत्तू से लेकर शरबत में इस्तेमाल किया जाने वाला जीरा मशाला, नमक, प्याज, मिर्च हर चीज महंगा हो गया है, पर सत्तू शरबत की कीमत वही है. छोटा गिलास 10 और बड़ा गिलास 20 रुपये पर पिछले कई सालों से लटका हुआ है. ग्राहक इससे अधिक देने को तैयार नहीं है, इसलिए सत्तू शरबत बेचने वालो के सामने कीमत और क्वालिटी में समाजस्य बैठाने में कठिनाई हो रही है.
सत्तू बेचने वालो के बीच भी जबरदस्त कंपीटिशन है. पूरे मेदिनीनगर शहर की बात करें तो तकरीबन 800 से 900 ठेला ऐसा है जो गर्मी के दिनो मे घूम-घूम कर या किसी चौक पर ठेला लगाकर सत्तू बेचते है. करीब 100 ऐसे दुकान है जहां सालो भर सत्तू बेचा जाता है. इन सबके बीच खुद को टिकाऊ व बिकाऊ बनाए रखने के लिए कंपीटिशन चलता रहता है. ऐसे में कोई भी कीमत बढ़ाकर ग्राहक भड़काने का रिस्क नहीं लेना चाहता है.
पुराने कीमत पर शरबत बेचने के चैलेंज के बीच दुकानदारों ने नया रास्ता तलाश लिया है. अमूमन सत्तू शरबत वजन पर बनाया जाता है, 10 और 20 रुपये का सत्तू तौलकर उसका शरबत बनता है, अब महंगे हुए सामानों से कीमत का तालमेल बैठाने के लिए कुछ लोग सत्तू कम तौल रहे है तो अधिकतर लोग स्टील गिलास के स्थान पर प्लास्टिक का गिलास इस्तेमाल करने लगे है, जो स्टील गिलास से छोटा होता है.
कुछ पुराने व सालों भर शरबत बेचने वाले दुकानदार वजन में कमी करने के वजाय स्वाद के लिए शरबत में दिया जाने वाला जीरा मशाला, प्याज और पुदीना के चटनी के मात्रा में कटौती कर दिया है. उनका कहना है की इससे स्वाद में थोड़ा अंतर तो आयेगा पर पुरानी कीमत पर शरबत बेचने को मजबूरी के बीच यह करना ही पड़ रहा है. हालांकि वे ये भी मानते है कि इससे लागत में बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है.
Also Read: संकट में झारखंड के धरोहर : मलबे में बदल रहा 113 साल पुराना टैगोर हिल का ब्रह्म मंदिर
कंपीटिशन के बीच कुछ ऐसे भी सत्तू शरबत बेचने वाले है जो ग्राहकों के साथ चालबाजी करने से भी नहीं चूक रहे है. नाम नहीं बताने के शर्त पर एक पुराना सत्तू शरबत दुकानदार ने अपनी पीढ़ा बताते हुए प्रभात खबर को बताया कि सत्तू शरबत को गाढ़ा करने के लिए कुछ दुकानदार मिलावटी सत्तू का इस्तेमाल करते है. शरबत बनाने के लिए चना सत्तू सबसे बेहतर माना जाता है, 200 ग्राम असली चना सत्तू को एक बड़े गिलास में घोलने से भी वो अधिक गाढ़ा नहीं होता है, स्वाद भी ठीक रहता है और सुपाच्य भी होता है, पर इसके विपरित चना के साथ मरुवा, गेहूं मिला हुआ सत्तू को बड़ा गिलास में 150 ग्राम घोलने से भी वो गाढ़ा हो जाता है, पेट भी भर जाता है, ग्राहक को लगता है की यही सही है, तो वे असलियत समझे बिना मिलवाती सत्तू शरबत के तरफ ही रुख करते है. पलामू में बनारस से आने वाले सत्तू में मिलावट की शिकायत अधिक है जबकि लोकल चना सत्तू ज्यादा बढ़िया माना जाता है.
बढ़ते कीमत के साथ शरबत का सामंजस्य बैठाने में कुछ लोग बेइमानी का सहज रास्ता अख्तियार कर लिया है. कुछ लोग पत्थर या अन्य चीजों का बटखारा बनाकर सत्तू वजन करते है. ग्राहकों को इससे कुछ खास मतलब होता नही है, तो दुकानदार आसानी से कम वजन वाला पत्थर चढ़ाकर आधी वजन बता देते है. ऐसे में सदियों से पलामू का स्वाद बना सत्तू शरबत का व्यवसाय संकट के दौर से गुजर रहा है.