पलामू में खुला एक्सक्लूसिव हैंडीक्राफ्ट आउटलेट ‘पथिक’, जानें क्यों खिंचे चले आ रहे हैं लोग
झारखंड में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए केंद्र, राज्य सरकारें कई काम कर रहीं हैं. स्वयंसेवी संस्थाएं भी इसमें योगदान दे रही हैं. पलामू जिला का एक्सक्लूसिव हैंडीक्राफ्ट आउटलेट ‘पथिक’ एक ऐसी ही पहल है, जो स्थानीय महिलाओं एवं हैंडीक्राफ्ट बनाने वाले कलाकारों को रोजगार से जोड़ रहा है.
बिहार की सीमा से सटे झारखंड के पलामू जिला (Palamu District) में इन दिनों ‘पथिक’ (Pathik) की चर्चा जोरों पर है. मेदिनीनगर-बेतला-नेतरहाट पथ पर स्थित ‘पथिक’ में हर कोई खिंचा चला आ रहा है. झारखंड के अन्य जिलों से आने वाले सैलानियों के साथ-साथ अन्य राज्यों से आने वाले लोगों को भी यह आउटलेट आकर्षित कर रहा है.
पलामू का पहला हैंडीक्राफ्ट आउटलेट है ‘पथिक’
‘पथिक’ पलामू का पहला एक्सक्लूसिव हैंडीक्राफ्ट आउटलेट है. नाबार्ड की ओर से वित्त संपोषित इस आउटलेट की शुरुआत स्वयंसेवी संस्था सेसा ने की है. मेदिनीनगर-बेतला-नेतरहाट पथ पर दुबियाखाड़ मोड़ से कुछ ही दूरी पर भुसरिया में स्थित है.
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स्वयं सहायता समूह की महिलाएं करती हैं उत्पाद का निर्माण व व्यापार
सेसा के व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र में ‘पथिक’ की शुरुआत हुई है. मेदिनीनगर से सड़क मार्ग से महज 15-20 मिनट में यहां पहुंच सकते हैं. सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक यह खुला रहता है. स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं हस्तशिल्प का निर्माण करती हैं. ‘पथिक’ में उन हस्तशिल्पों की बिक्री की जाती है.
‘पथिक’ के संचालन में सहयोग कर रहीं महिलाएं
‘पथिक’ के संचालन में भी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं योगदान दे रहीं हैं. ये सभी महिलाएं स्थानीय हैं. इससे उन्हें रोजगार का एक नया अवसर मिला है. पर्यटकों को को खाना-पीना मिल जाये, उसके लिए कई लोगों ने ठेला लगाना शुरू कर दिया है. इसकी वजह से स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलने लगा है.
बच्चे बना रहे पांवदान, बैग और अन्य सामान
पथिक’ सिर्फ वे चीजें ही नहीं मिलतीं, जो महिलाएं बनाती हैं. बच्चों के द्वारा निर्मित हस्तशिल्प की भी काफी चर्चा है. खासकर बच्चों के द्वारा निर्मित पांवदान, बैग आदि डिमांड में है. बच्चों ने ‘पत्थर के गहने’ भी बनाये हैं, जो बेहद आकर्षक हैं.
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डिमांड में बिरसा मुंडा और नीलाम्बर-पीताम्बर
धरती आबा बिरसा मुंडा और पलामू के दो वीर शहीद नीलाम्बर-पीताम्बर की प्रतिमाओं की यहां खूब डिमांड है. मिट्टी से बनी इन मूर्तियों को बंगाल के कारीगरों ने बनाया है. हल्की और सस्ती इन मूर्तियों को लोग स्मृतिचिह्न के रूप में भेंट करने के लिए इसकी खरीदारी कर रहे हैं. ‘पथिक’ में स्थानीय लोग तो आ ही रहे हैं, पर्यटक भी हस्तशिल्प की खरीदारी कर रहे हैं.
हस्तशिल्प का नया ठिकाना ‘पथिक’
सेसा के महासचिव डॉ कौशिक मल्लिक ने प्रभात खबर को बताया कि ‘पथिक’ के जरिये स्थानीय हस्तशिप को एक नया ठिकाना मिलेगा. बाजार उपलब्ध नहीं होने के कारण ग्रामीण महिलाएं हस्तशिल्प से दूर जा रहीं थीं. अब उन्हें बाजार मिला है, तो हस्तशिल्प के प्रति उनके मन में फिर से रुझान पैदा होगा. डॉ मल्लिक ने बताया की यहां महिलाओं को अन्य राज्य के हस्तशिल्प के निर्माण की भी ट्रेनिंग दी जायेगी.
मिनी टुडू को भाया झुमका, तो संगीता हुईं कंगन की मुरीद
योध सिंह नामधारी महिला महाविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ मिनी टुडू यहां आकर काफी प्रभावित हुईं. बच्चों के द्वारा बनाया गया झुमका उन्हें खूब भाया. डॉ संगीता कुजूर भी ‘पथिक’ में उपलब्ध सामान देखकर काफी प्रभावित हुईं.
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खुला कैम्पस और खूबसूरत झरना बना सेल्फी प्वाइंट
सिर्फ हस्तशिप की खरीदारी ही नहीं, ‘पथिक’ का बड़ा और सजा कैम्पस और उसमें लगा झरना लोगों के लिए सेल्फी प्वाइंट बन गया है. सड़क से आने-जाने वाले लोग भी इसके खूबसूरत कैम्पस से आकर्षित हो रहे हैं. यहां की तस्वीरें सोसल मीडिया में वायरल हो रहा है.
पलामू से सैकत चटर्जी की रिपोर्ट