झारखंड: 18 साल से स्कूल से गायब रहनेवाले टीचर विनोद प्रजापति सेवामुक्त, पलामू डीसी ने दिया आदेश
सहायक शिक्षक विनोद प्रजापति मेदिनीनगर के बंगाली कन्या मध्य विद्यालय में पदस्थापित थे. वे पिछले 18 वर्ष से विद्यालय में अनुपस्थित थे. वे रांची में रहकर वकालत करते थे. इस दौरान बंगाली कन्या विद्यालय में जो भी प्रधानाध्यापक बनकर आते, उन्हें वकील बताकर धौंस जमाते रहे.
पलामू, सैकत चटर्जी. पलामू में जालसाजी का एक अद्भुत मामला प्रकाश में आया है. पलामू डीसी ने सोमवार को जिला शिक्षा स्थापना समिति की बैठक की और सहायक शिक्षक विनोद प्रजापति को 18 साल से शिक्षण कार्य से गायब रहने के आरोप में सेवामुक्त करने का आदेश दिया.
क्या है पूरा मामला
सहायक शिक्षक विनोद प्रजापति मेदिनीनगर के बंगाली कन्या मध्य विद्यालय में पदस्थापित थे. वे पिछले 18 वर्ष से विद्यालय में अनुपस्थित थे. वे रांची में रहकर वकालत करते थे. इस दौरान बंगाली कन्या विद्यालय में जो भी प्रधानाध्यापक बनकर आते, उन्हें विनोद प्रजापति खुद को रांची हाईकोर्ट का वकील बताकर धौंस जमाते रहे और अपने खिलाफ रिपोर्ट करने से रोकते रहे. इसीलिए यह मामला इतने लंबे समय सामने नहीं आ सका.
आखिरकार मामला पहुंचा उपायुक्त तक
आखिरकार इस संबंध में उपायुक्त को विभिन्न माध्यमों से लगातार शिकायत मिल रही थी, जिसके बाद उपायुक्त ने पूरे मामले की जांच करवाई. जांच में पाया गया कि विनोद प्रजापति 2005 से विद्यालय आये ही नहीं हैं. साथ ही उनके द्वारा रांची में वकालत का कार्य किये जाने की पुष्टि भी हुई. इसके बाद उपायुक्त श्री दोड्डे ने सहायक शिक्षक विनोद प्रजापति को सेवामुक्त करने का आदेश दिया.
बैठक में लिया गया निर्णय
उपायुक्त सह अध्यक्ष शिक्षा स्थापना समिति आंजनेयुलु दोड्डे ने सोमवार को जिला शिक्षा स्थापना समिति की बैठक की. बैठक में मेदनीनगर के बंगाली कन्या मध्य विद्यालय में पदस्थापित सहायक शिक्षक विनोद प्रजापति को बर्खास्त करने का निर्णय लिया गया. इस संबंध में उन्होंने जिला शिक्षा अधीक्षक सह सचिव शिक्षा स्थापना समिति को सारी कागजी प्रक्रियाओं को त्वरित गति से निष्पादन करने की बात कही.
एक भी बंगाली स्टूडेंट नहीं है बंगाली विद्यालय में
कभी जिले भर के बंगालियों के घर के बच्चों को शिक्षा इसी विद्यालय में दी जाती थी. वो इसका स्वर्णयुग था, जब शहर के कई नामचीन बंगाली समुदाय के लोग इसी विद्यालय में पढ़े. लंबे समय तक यह विद्यालय बंगाली समिति की देखरेख में चला. बाद में शिक्षकों के मानदेय संबधी मामलों के कारण देखरेख का हस्तांतरण सरकार को कर दिया गया. सरकारीकरण होने से शिक्षकों के मानदेय संबधी समस्या तो दूर हुई पर इसका पठन-पाठन का स्तर गिर गया. बंगालियों का इस स्कूल से मोहभंग हुआ और अब स्थिति यह है कि इसमें एक भी बंगाली स्टूडेंट नहीं है.