पलामू में मामूली खराबी के कारण दो वर्ष से हार्वेस्टर मशीन ठप, मरम्मत नहीं होने के पीछे ये है बड़ा कारण
कंपनी की गाइड लाइन के अनुसार ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं होने से यह परेशानी बढ़ी है. हार्वेस्टर मशीन खराब होने के कारण पलामू के किसानों को नुकसान हो रहा है.
मेदिनीनगर : पलामू के चियांकी स्थित बिरसा एग्रीकल्चर विवि के जोनल रिसर्च सेंटर में करीब 50 लाख की लागत से खरीदी गयी हार्वेस्टर मशीन दो वर्षों से खराब पड़ी है. इस मशीन की उपयोगिता कई मामलों में बेहतर है. लेकिन मामूली खराबी के कारण ठप पड़ी है. सूत्रों के अनुसार हार्वेस्टर मशीन का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं होने के कारण इसकी मरम्मत नहीं हो पा रही है. कंपनी के लोग भी इसकी मरम्मत करने को तैयार नहीं हैं. बताया जाता है कि मशीन खरीदने के तीन साल तक कंंपनी इसकी देखरेख करती है.
लेकिन कंपनी की गाइड लाइन के अनुसार ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं होने से यह परेशानी बढ़ी है. हार्वेस्टर मशीन खराब होने के कारण पलामू के किसानों को नुकसान हो रहा है. इसकी खरीदारी पंजाब से की गयी है. लेकिन खराब रहने के कारण खुले आसमान के नीचे पड़ी है. जिसे कोई देखने वाला नहीं है. बाहर पड़ी रहने के कारण मशीन में जंग लगने लगा है.
2019 में लायी गयी थी हार्वेस्टर मशीन
हार्वेस्टर मशीन चियांकी बिरसा कृषि विवि से वर्ष 2019 में लायी गयी थी. उस समय राज्य के चार जिले रांची, दुमका, पलामू के चियांकी व पश्चिम सिंहभूम में इसकी आपूर्ति की गयी थी. इस मशीन द्वारा एक घंटे में करीब दो से तीन एकड़ में लगी धान की फसल को काटकर चावल निकालकर भूसी को अलग कर दिया जाता है. इसके अंदर 10 क्विंटल चावल रखने का एक टैंक बना हुआ है. मशीन फसल काटने के साथ-साथ चावल को अलग करने का भी काम करती है. चावल टैंक में जाकर जमा हो जाता है. जिसे बाद में निकाला जा सकता है. इस मशीन से धान व गेहूं दोनों की कटाई की जा सकती है. इसे चलाने में एक घंटे में छह लीटर डीजल की खपत होती है. जिस समय खरीदारी की गयी थी. पंजाब के मैकेनिक ने चियांकी के सिकंदर महतो को ट्रेंड किया था. जिसके बाद सिकंदर महतो द्वारा मशीन संचालित की जाती थी. लेकिन जब से यह मशीन खराब पड़ी है, तब से कोई इसकी सुधि लेने वाला नहीं है.
विवि के माध्यम से ही बन सकती है मशीन
जोनल रिसर्च सेंटर के मुख्य वैज्ञानिक प्रमोद कुमार ने बताया कि इस मशीन का छह सीजन में इस्तेमाल किया गया था. लेकिन ड्रम की सेटिंग में खराबी आने के कारण इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है. यह मशीन बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा दी गयी है. इसे कंपनी के इंजीनियर द्वारा ही बनाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि मशीन का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं होने के कारण मरम्मत नहीं हो पा रहा है.