संतोष कुमार, बेतला
International Tiger Day: झारखंड के पलामू प्रमंडल में कभी बाघों का राज हुआ करता था. जंगल के किनारे बसे गांवों में अक्सर बाघ घुस जाते थे और मवेशी को मार डालते थे. लोग भय के साये में जीवन व्यतीत करते थे. यही कारण था कि अंग्रेजों ने बाघ के शिकार करनेवाले को इनाम देने की घोषणा की थी. वर्ष 1932 में दुनिया में जब बाघों की गिनती हो रही थी, तब पूरे एशिया महादेश में सबसे पहले बाघों की गिनती पलामू में ही हुई थी.
देश की आजादी के बाद भी बाघों का जम कर शिकार हुआ. इसके बाद 1974 में बाघों की सुरक्षा के लिए पलामू टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट लांच किया गया. उस समय भी बाघों की संख्या कुछ कम नहीं थी, लेकिन कालांतर में यह संख्या शून्य तक पहुंच गयी. वर्तमान स्थिति ऐसी है कि बाघ होने के प्रमाण खोजने पर भी नहीं मिल रहे हैं. हालांकि अभी जंगलों में मिले बाघों के मल ( स्केट) के आधार पर वर्ल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा दो बाघ की पुष्टि की गयी है. इसके आधार पर पीटीआर प्रबंधन द्वारा दो बाघ होने का दावा किया जा रहा है. लेकिन बाघों के पग मार्क, प्रत्यक्ष दर्शन अथवा फोटोग्राफी अभी तक नहीं हो सकी है.
Also Read: JRD Tata Birthday Special: फ्रांसीसी सेना छोड़ जेआरडी ने 34 वर्ष की आयु में संभाली थी टाटा संस की कमान
पीटीआर के फील्ड डायरेक्टर कुमार आशुतोष ने बताया कि दो बाघ होने की पुष्टि हो चुकी है. अभी और सैंपलों की जांच बाकी है. इनकी संख्या बढ़ भी सकती है. इस बार बाघों की गिनती के क्रम में कैमरा ट्रैपिंग व बाघों के मल (स्केट) की खोज पर नजर रखी जा रही थी. 800 से अधिक कैमरा ट्रैप लगाया गया था. इनमें 38 लेपर्ड की तस्वीर ली जा चुकी है. वहीं कई दुर्लभ जंतुओं की तस्वीर खींची गयी है, बाघ की तस्वीर आनी बाकी है. इधर, वन्य प्राणी विशेषज्ञ डाॅ डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि पीटीआर में बाघों की संख्या दो से अधिक है. डिप्टी डायरेक्टर मुकेश कुमार व कुमार आशीष ने बताया कि पीटीआर प्रबंधन द्वारा मॉनिटरिंग में कोई कमी नहीं की जा रही है. बाघों का स्थायी प्रवास पीटीआर में हो, इसके लिए हर संभावना तलाशी जा रही है.