Loading election data...

मनुष्य को भाग्यवादी नहीं, कर्मवादी होना चाहिए

लक्ष्मी नारायण महायज्ञ चातुर्मास व्रत कथा में जीयर स्वामी ने कहा

By Prabhat Khabar News Desk | July 2, 2024 9:38 PM

मेदिनीनगर. पलामू जिले के सिंगरा स्थित अमानत नदी तट पर आयोजित लक्ष्मी नारायण महायज्ञ चातुर्मास व्रत कथा में लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने श्रीमद्भागवत कथा में कहा कि मनुष्य को भाग्यवादी नहीं, कर्मवादी होना चाहिए. मनुष्य अपने कर्मों का ही फल भोगता है. कर्मों के कारण ही दुख या सुख भोगता है. लेकिन जब जीवन में दुख आता है, तो भगवान को दोष देता है. भगवान कभी किसी को दुख नहीं देते व अहित नहीं चाहते. अगर ऐसा होता, तो मंगल भवन अमंगल हारी चौपाई शास्त्रों में वर्णित नहीं होती. जीयर स्वामी ने कहा कि पापाचार, व्यभिचार नहीं करना चाहिए. पाप देखना, पाप करने वालों की सहायता करना पाप करने के समान है. उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा द्वारा भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है. अपने पास में बुलाया जा सकता है. लेकिन उनके प्रति निष्ठा व समर्पण होना चाहिए. वैदिक परंपरा और सनातन परंपरा के जितने भी देवी-देवता हैं, उनका अनादर न करें. पूजा-पाठ करें, लेकिन समर्पण-निष्ठा किसी एक से करें. ठीक इसी प्रकार पतिव्रता नारी वही है, जो पति के परिवार, सगे-संबंधी की सेवा करे. लेकिन निष्ठा, समर्पण पति के साथ हो. जीयर स्वामी ने कथा के दौरान बताया कि राजा परीक्षित अपना राजकाज, धन-जन सब कुछ छोड़कर गंगा के तट पर बैठ गये कि अब उन्हें इस संसार में रहने का कोई मतलब नहीं है. अपने इस शरीर द्वारा ऋषि-मुनियों का अपराध किया है. अब शरीर को समाप्त हो जाना चाहिए. यह जानकर सभी ऋषि-मुनि, संत-महात्मा गंगा तट पर पहुंच गये. सभी से राजा परीक्षित ने एक ही प्रश्न पूछा कि जिसने मृत्यु की तैयारी नहीं की हो और उसकी मृत्यु निश्चित है. तब उसे क्या करना चाहिए. स्वामी जी ने कहा कि धन्य हैं राजा परीक्षित. दुनिया के लोग जीने की तैयारी करते हैं, लेकिन राजा परीक्षित मृत्यु की तैयारी कर रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version