अनीति से कमाया धन न सुख देता है न शांति

प्रवचन में जीयर स्वामी ने कहा

By Prabhat Khabar Print | July 1, 2024 10:28 PM

मेदिनीनगर. निगम क्षेत्र के सिंगरा अमानत नदी तट पर चातुर्मास यज्ञ स्थल पर लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने कथा में कहा कि अनीति और गलत तरीके से कमाया गया धन मनुष्य का नैतिक पतन कर देता है. ऐसा अर्जित धन मन को अशांत और बेचैन रखता है. ऐसा धन परिवार में गलत संस्कार लाता है. अनीति से अर्जित पैसा से सुंदर महल बना सकते हैं, आराम के संसाधन जुटा सकते हैं. लेकिन फिर भी शांति नहीं मिलेगी. जब सुख भोगने का समय आयेगा, तब पता चलेगा कि किडनी, लीवर फेल हो गया. कई गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गये. ऐसे अर्जित धन का आप भोग ही नहीं कर पायेंगे. इसीलिए हमेशा सही रास्ते और सदाचार के रास्ते ही पैसा और धन अर्जित करना चाहिए. जब दोनों की सम बुद्धि हो, वही समधी स्वामी जी ने समधी की चर्चा करते हुए कहा कि जब दोनों की सम बुद्धि हो, वही समधी है. जिसमें दोनों का अचार, व्यवहार एक समान हो, वही समधी है. वर्तमान में लोग दहेज के चक्कर में किसी को भी समधी बना ले रहे हैं. जात, संस्कार, धर्म-संस्कृति कुछ नहीं देख रहे. शादी से पूर्व वर और वधू पक्ष को संस्कार, सभ्यता, संस्कृति, मर्यादा देख कर ही शादी करनी चाहिए. दहेज रूपी पैसा पैर की धूल के समान होता है, जैसे पैर धोते ही धूल निकल जाता है. वैसे ही दहेज चला जायेगा. जिसे करने के बाद चित्त शांत हो जाये, वह समाधि समाधि के ऊपर कथा में स्वामी जी ने कहा कि जिसे करने के बाद बुद्धि, चित्त, विचार शांत हो जाये, वही समाधि है. भजन भाव करना, उसमें परमात्मा की छवि का दर्शन करना भक्ति समाधि है. कर्म करते हुए मन को परमात्मा और सत्य में लगाना कर्म समाधि है. काम करते हुए नारायण का नाम जपना भी समाधि है. ब्रह्मचर्य की चर्चा करते हुए बताया कि परमात्मा के लिए परमात्मा से जुड़े रहना ही ब्रह्मचर्य है. वेद की आज्ञा के अनुसार चलना व वेद का अनुपालन करना भी ब्रह्मचर्य है. जन्म से मरण तक आजीवन अविवाहित रहकर सदाचार से जीवन जीना भी ब्रह्मचर्य है. सत्य, दया, परोपकार दुनिया में जितने भी अच्छे कर्म हैं, उसे आचरण में उतारना भी ब्रह्मचर्य है. इससे पूर्व झारखंड पीठाधीश्वर गोविंदाचार्य जी ने रामचरित मानस कथा कही.

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