लॉकडाउन से प्रकृति को मिली संजीवनी, खरसावां के जंगलों में दिखीं दुर्लभ पक्षियां

जंगल के आसपास गांव व कस्बों में सुबह से शाम तक पक्षियों की चहचहाहट लोगों को मुग्ध कर रही है. इन्हें निहारने के लिये लोग पहुंच रहे हैं

By Prabhat Khabar News Desk | June 4, 2020 3:32 AM

खरसावां : कोविड-19 को लेकर हुए लॉकडाउन का पर्यावरण पर पॉजिटिव असर पड़ा है. लॉकडाउन ने प्रकृति को नया जीवन दे दिया है. प्रदूषण कम होने का असर साफ दिखने लगा है. आसमान साफ व स्वच्छ हवा चलने के साथ खरसावां-कुचाई के जंगलों में कई दुर्लभ पक्षी दिखने लगे हैं. जंगल के आसपास गांव व कस्बों में सुबह से शाम तक पक्षियों की चहचहाहट लोगों को मुग्ध कर रही है. इन्हें निहारने के लिये लोग पहुंच रहे हैं. जानकार बताते हैं कि इन दिनों खरसावां-कुचाई के जंगलों में पक्षियों की करीब 50 प्रजातियां मंडरा रहीं हैं.

कई पक्षी पेड़ों पर मनमोहक घोंसला बनाकर रह रहीं हैं, जो लोगों को आकर्षित कर रहा है. बताया जाता है कि देश में पक्षियों की 1200 से अधिक प्रजातियां पायी जाती हैं. बुजुर्ग बताते हैं कि पहले खरसावां-कुचाई की रायसिंदरी पहाड़ियों पर विभिन्न प्रजाति की पक्षियां दिखती थीं. पिछले कुछ वर्षों में पक्षी कम दिखने लगे थे. हाल के दिनों में लीफ बर्ड, फ्लाई कैचर, फायरी, ब्राम्हिणी स्टारलिंग, कॉर स्मिथ बारबेट, ओरिएंट ह्वाइट आई बर्ड आदि दिखी हैं. जिस तरह से यहां दुर्लभ पक्षियों का आगमन हो रहा है, ऐसे में इन्हें संरक्षण देना जरूरी है.

खरसावां-कुचाई के जंगलों में दिख रही मनमोहक पक्षी…ओरिएंट व्हाइट आई बर्ड (फोटो संख्या 3केएसएन 6 )यह सफेद आंख वाले परिवार का एक छोटा सा पाषाण पक्षी है. यह भारतीय उपमहाद्वीप पर खुले वुडलैंड निवासी है. ये छोटे समूहों में भोजन करते हैं. अमृत और छोटे कीड़े पर आश्रित हैं. ये आसानी से सफेद आंख की अंगूठी और समग्र पीले ऊपरी हिस्से द्वारा पहचाने जाते हैं.रूफस ट्रीपी (3केएसएन 10)रूफस ट्रीपी भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया के आसपास के हिस्सों की पक्षी है.

यह कौवा परिवार का सदस्य है. इसमें संगीत की पुकार है, जो इसे बहुत विशिष्ट बनाती है. यह आमतौर पर खुले झाड़, कृषि क्षेत्रों, जंगलों और शहरी उद्यानों में पायी जाती है.शहद बर्ड (3केएसएन 11)यूरोपीय शहद बर्ड, जिसे पर्न या कॉमन पर्न के रूप में भी जाना जाता है. इसे शिकारी पक्षी के तौर पर भी जाना जाता है.—नहीं हुआ है पक्षियों का सर्वेजानकार बताते हैं देश की आजादी के बाद से क्षेत्र में पक्षियों का सर्वे नहीं हुआ है. जानकार बताते हैं कि ब्रिटिश जमाने में पक्षियों का सर्वे हुआ था.

अलग झारखंड बनने के बाद वन विभाग से कई बार हाथी समेत अन्य पशुओं की गणना की गयी थी. लॉकडाउन के दौरान खरसावां-कुचाई में कई नयी प्रजाति की पक्षी देखने को मिल रही है. जंगलों के साथ साथ गांव कस्बों में पक्षी दिख रही हैं. नदियां भी साफ हुई हैं. कई दुर्लभ पक्षी देखी जा रही है. पर्यावरण को संरक्षित करना हम सबका दायित्व है.- अपर्णा चंद्रा, वन क्षेत्र पदाधिकारी, खरसावां वन प्रक्षेत्र…एक्सपर्ट व्यू…पक्षी विज्ञान को प्रेरित करती हैं.

वहीं कीटों को भी नियंत्रित करती हैं. पक्षी बीज फैलाने के साथ पौधों को परागण करती हैं. प्रकृति व मानव जीवन में पक्षियों का महत्वपूर्ण स्थान है. पक्षियों को संरक्षित करने की आवश्यकता है. हर मामले में यह हमारे लिये लाभदायक है. लॉकडाउन में नयी प्रजाति की पक्षियों का दिखना यह संदेश देता है कि हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सचेत रहने की आवश्यकता है.- डॉ तिरुपम रेड्डी, विज्ञानिक बी, बीएसएमटीसी, खरसावां

Next Article

Exit mobile version