केवल मनुष्य का कर्म ही परलोक में साथ जाता है

सिंगरा अमानत नदी तट पर श्रीमद्भागवत कथा के दौरान जीयर स्वामी ने कहा

By Prabhat Khabar News Desk | July 13, 2024 9:24 PM

मेदिनीनगर.

निगम क्षेत्र के सिंगरा अमानत नदी तट पर श्री लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कहा कि भगवान श्रीहरि विष्णु जी के सत्यकाम, सत्संकल्प द्वारा नाभि से कमल और कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई. ब्रह्मा की उत्पत्ति के बाद ब्रह्मा जी ने उनके जन्म का कारण जानना चाहा. उसके बाद ब्रह्मा जी ने सृष्टि के विस्तार के लिए अपने मन द्वारा सनक, सनातन, सनन्दन और सनत्कुमार को प्रकट किया. चारों सनकादि ऋषियों ने भगवान की भक्ति को अपना मार्ग चुना और इसके लिए चल पड़े. भगवान श्रीमन्नारायण के आशीर्वाद से चारों ने आजीवन बालक रहने का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया. स्वामी जी ने कहा कि आज भी पांच-छह वर्ष के बालक के समान ही हैं सनक, सनन्दन, सनातन व सनत्कुमार. इसीलिए उन्हें पूर्वजों का पूर्वज और बुजुर्गों का बुजुर्ग कहा जाता है. स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य मात्र को अपने जन्म का कारण व अपने स्वरूप को जानना चाहिए. मनुष्य जन्म के बाद स्वार्थ में सत्य कर्म से भटक जाता है. लेकिन जब मृत्यु का क्षण आता है, तो कुछ लेकर नहीं जाता. धन भूमि पर, पत्नी घर के द्वार तक, सगे-संबंधी श्मशान में और शरीर चिता पर रह जाता है. केवल कर्म ही है, जो परलोक के मार्ग पर साथ जाता है.

जीवन और मृत्यु एक चक्र :

मानव जीवन में तीर्थ यात्रा के साथ ही साथ अंतिम यात्रा (शवयात्रा) भी करनी चाहिए. यही अंतिम यात्रा सत्य है. सारे यात्रा रुक सकते हैं, लेकिन अंतिम यात्रा को रोका नहीं जा सकता है. जिसे टालने और जन्म देने का अधिकार मनुष्य के पास नहीं है. इसे संचालित कौन कर रहा है. मतलब है कि कोई शक्ति है, जो इसे संचालित कर रही है. जिसे आज तक विज्ञान भी नहीं जान सका. वह शक्ति नारायण, भगवान, परमात्मा हैं. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है और जिसकी मृत्यु हो गयी है, उसका जन्म भी निश्चित है. भगवान श्रीकृष्ण के इस कथन से हमें ज्ञात होता है कि जीवन और मृत्यु एक चक्र है. स्वामी जी ने कहा कि प्रभु कथा में वो सामर्थ्य है, जो हमारे जीवन को भवसागर से भाव सागर में प्रवेश कराने का सामर्थ्य रखता है. भवसागर का मतलब सांसारिक जीवन का सागर, भावनाओं का समुद्र. जन्म-मरण चक्र से मुक्ति अर्थात मोक्ष की प्राप्ति को ही भवसागर से पार उतरना कहा गया है.

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