प्रतिनिधि (मेदिनीनगर) : वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिए सरकार द्वारा किये गये लॉकडाउन के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में पलामू के मजदूर फंसे हुए हैं. सरकार के प्रयास से श्रमिकों को झारखंड में लाया जा रहा है. इसी कड़ी में गुरुवार को पंजाब के लुधियाना से 1161 श्रमिक विशेष ट्रेन से पलामू पहुंचे. स्थानीय डालटनगंज स्टेशन पर पलामू के उपायुक्त डॉ शांतनु कुमार अग्रहरि एवं अन्य प्रशासनिक पदाधिकारियों ने श्रमिकों का स्वागत किया.
सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करते हुए क्रमवार श्रमिकों को रेलवे की बोगी से प्लेटफार्म पर उतारा गया. सभी श्रमिकों की मेडिकल स्क्रीनिंग व स्वास्थ्य जांच की गयी. सभी श्रमिक को मास्क व सेनिटाईजर देकर सम्मान के साथ चियांकी हवाई अड्डा में बने विशेष सहायता केंद्र में भेजा गया.
मालूम हो कि स्पेशल ट्रेन के 22 डब्बों में सवार होकर झारखंड के 6 जिले के 1161 श्रमिक पलामू पहुंचे थे. इसमें पलामू जिला के 739, हजारीबाग के 99, गिरिडीह के 58, रांची के 73, चतरा जिला के 151 एवं बोकारो के 41 श्रमिक शामिल थे. अपने बच्चों व परिवार के सदस्यों के साथ पलामू पहुंचे श्रमिकों में खुशी व उत्साह देखा गया.
रेलवे स्टेशन पर श्रमिकों के स्वागत व आवश्यक स्वास्थ्य जांच करने के बाद उन्हें विशेष सहायता केंद्र में पहुंचाया गया. वहां पर श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन हुआ और कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए आवश्यक सुझाव दिया गया. स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक व कर्मियों ने श्रमिकों को बताया कि सरकार के गाईडलाइन का अनुपालन करना आवश्यक है. कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सजगता व स्वच्छता जरूरी है. श्रमिकों को भोजन का पैकेट और पानी उपलब्ध कराया गया.
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इसके बाद पलामू जिले के श्रमिकों को बस से संबंधित प्रखंड के क्वारेंटाईन सेंटर में भेजा गया. जबकि दूसरे जिले के श्रमिकों को बस के द्वारा उनके गृह जिला में पहुंचाया गया. सभी श्रमिकों के चेहरे पर खुशी, सुकुन व सुरक्षा का भाव झलक रहा था. रेलवे स्टेशन पर पुलिस अधीक्षक अजय लिंडा की देखरेख में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गयी थी. जबकि चियांकी हवाई अड्डा परिसर में बने विशेष सहायता केंद्र की व्यवस्था का जायजा डीडीसी बिंदु माधव प्रसाद सिंह एवं डीएसपी ने लिया. सिविल सर्जन डॉ जॉन एफ कनेडी के देखरेख में चिकित्सा टीम सक्रिय थी.
पलामू के पाटन प्रखंड के किसैनी गांव बिगन पाल जालंधर से लौटा है. बिगन का कहना है लाकडाउन का अनुभव काफी कड़वा है. इसमें यह पता चल गया कि शहर के लोग सिर्फ काम के लिए पूछते है, जबकि गांव के लोग हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं. चाहे लोग अपने हो या पराये. विपरीत परिस्थिति में यह अनुभव हुआ कि शहरी एवं ग्रामीण में काफी अंतर रहता है.
लुधियाना से अपने गांव लौटे पाटन के पंचकेडिया निवासी अरूण राम का कहना है जो परिस्थिति देखकर वे लोग आये है, उसमें अब फिर से काम के लिए गांव छोड़कर बड़े शहरों की ओर रुख करना मुनासीब नहीं है. सपने में भी अब दूसरे शहरों में जाने की बात सोच नहीं सकते. जैसे भी हो अपने गांव में ही रहकर गुजारा कर लेंगे.
जालंधर से लौटे रामदेव राम का कहना है कि उन्हें यह यकीन नहीं हो रहा था कि अब वे लोग अपने गांव लौट पायेंगे. लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद से ही अपना गांव याद आने लगा था. लेकिन कोरोना के बढ़ते संक्रमण को लेकर सरकार ने लॉकडाउन की अवधि भी बढ़ा दी थी. इस कारण लोगों की उम्मीद टूट रही थी. सरकार के प्रयास से अब गांव लौटे हैं. उम्मीद जगी है कि झारखंड के हेमंत सरकार मजदूरों के प्रति जिस तरह संवेदनशीलता दिखायी है. अब श्रमिकों को दूसरे जगह काम की तलाश में नहीं जाना पड़ेगा. गांव में ही रोजगार के अवसर मिलेंगे.