पलामू के गर्भ में छुपा है 840 लाख टन कोयले का भंडार
पलामू जिले के पाटन के पड़वा व नवाबाजार थाना क्षेत्र में कोयला का अकूत भंडार है. उत्खनन नहीं होने से इस इलाके के विकास में गतिरोध है.
पड़वा. पलामू जिले के पाटन के पड़वा व नवाबाजार थाना क्षेत्र में कोयला का अकूत भंडार है. उत्खनन नहीं होने से इस इलाके के विकास में गतिरोध है. सीसीएल का राजहारा कोलियरी राजनीति षड्यंत्र के कारण बंद हो चुका है. हालांकि पलामू सांसद वीडी राम ने राजहारा कोलियरी शुरू कराने को लेकर काफी प्रयास किया, लेकिन वन विभाग के अड़चन लगने के बाद पुनः ग्रहण लग गया. इस क्षेत्र के राजहारा, पड़वा, लोहड़ा, गड़ेरियाडीह, कठौतिया, कजरी, बटसारा, सिक्का, गाड़ीखास, सखूई, पाटन के मेराल, भोंगा, झरीनिमियां, बरसैता, सिक्की कला, गोलहना गांव की धरती के अंदर प्रचुर मात्रा में 847 लाख टन कोयले का भंडार छिपा है. रिपोर्ट के मुताबिक राजहरा सेंट्रल में 50 लाख टन, राजहरा नॉर्थ में 225 लाख टन, कठौतिया कोल माइंस में 292 लाख टन, लोहड़ी कोल ब्लॉक में 105 लाख टन व मेराल कोल ब्लॉक में 175 लाख टन कोयले का भंडार है. विभागीय रिपोर्ट के अनुसार सीसीएल राजहारा को छोड़ कर उपरोक्त चारों कोल ब्लॉक की 2005 से 2021 तक दो-दो बार नीलामी हो चुकी है. कठौतिया माइंस छोड़ कर लोहड़ी, मेराल व राजहरा में अभी तक कोयले का उत्पादन शुरू नहीं हो सका. कोयला का उत्पादन शुरू नहीं होने से सरकार के राजस्व में भारी नुकसान हो रहा है, वहीं इस क्षेत्र के लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है.
सीसीएल राजहरा बदहाली के कगार पर
राजहरा कोलियरी देश की सबसे पुरानी कोलियरी में एक है. इसके कोयले का क्वालिटी के कारण देश-विदेश में पलामू को नाम से जानते थे. 1842 में बंगाल कोल कंपनी द्वारा राजहरा कोलियरी चालू की गयी थी. 1973 में भारत सरकार द्वारा कोलियरी का राष्ट्रीयकरण किया गया. जिसके बाद कोलियरी का मालिकाना हक सेंट्रल कोल फील्ड के पास चला गया. 1973 से 2008 तक इस कोलियरी में कोयले का उत्पादन होता रहा. पहले अंडर ग्राउंड माइनिंग बाद में ओपन कास्ट माइनिंग शुरू हुई. 2008 में खदान में पानी प्रवेश कर जाने के बाद मशीन डूब गये थे और खदान को बंद कर दिया गया. डीजीएमएस ने खान सुरक्षा अधिनियम के तहत खनन कार्य बंद कर दिया, तभी से 2025 तक कोयले का उत्पादन शुरू नहीं हुआ. तकनीकी अड़चनें शुरू हो गयी रैयतों और प्रबंधन के बीच जमीनी विवाद सहित कई कारक बन गये. अंततः 14 फरवरी 2019 को वन एवं पर्यावरण विभाग से प्रदूषण अनापत्ति पत्र प्राप्त हुआ. इसके बाद 25 फरवरी 2019 को तत्कालीन सीएमडी गोपाल सिंह और पलामू सांसद वीडी राम के द्वारा माइंस का उद्घाटन किया गया. लेकिन आज तक पुनः उत्पादन शुरू नहीं हुआ.
कठौतिया कोल माइंस
कठौतिया कोल माइंस का आवंटन मधु कोड़ा की सरकार में हुआ था. वर्ष 2008 से फरवरी 2015 तक लगातार कोयले का उत्पादन होता रहा. उस समय जेजे लैंड को कोई अड़चन नहीं था. 2015 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद पूर्व की सारी खदान आवंटन को रद्द कर पुनः बोली लगा कर नीलामी की गयी. जिसमे सबसे ज्यादा बोली लगाकर हिंडाल्को ने कठौतिया कोयला खान को अपने नाम कर लिया. 2017 में उत्पादन शुरू हुआ जो कमोबेश 2022 तक चलता रहा. अंततः 2023 से उत्पादन बंद हो गया. विभागीय रिपोर्ट में आवंटित कोयला क्षेत्र के लगभग 400 एकड़ भूमि पर जंगल झाड़ी निकल गया. यह जंगल झाड़ी माइंस क्षेत्र में फैला है. जिस कारण लगातार माइनिंग नही हो सकती. सूत्रों की माने तो बिडिंग के समय कंपनी को केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये कागजात में जंगल झाड़ी का जिक्र नहीं था. कंपनी ने न्यायालय का रुख किया. मामला कोर्ट में चल रहा है.
लोहाड़ी कोल ब्लॉक
2015 के पूर्व लोहड़ी कोल ब्लॉक उषा मार्टिन को आवंटित था. 2015 में अरण्या माइंस प्राइवेट लिमिटेड ने ज्यादा बोली लगाकर नीलामी अपने नाम कर ली. जमीनी हकीकत यह है की कुल 16 वर्षों में जमीन पर केवल ऑफिस, कर्मचारी और कर्मचारियों की उपस्थिति के अलावा कुछ दिखता नहीं. हालांकि उम्मीद है की 2025 में उत्पादन शुरू हो.
राजहरा नॉर्थ
2008 में कोयला ब्लॉक मुकुंद एंड विनी मिनिरल प्राइवेट लिमिटेड को मिला था, जिसे रद्द कर दिया गया. 2021 में हुई नीलामी में फेयर माइन कार्बन प्राइवेट लिमिटेड को प्राप्त हो गयी. छह साल बीत जाने के बाद भी अभी तक उत्पादन शुरू नहीं हुआ. हालांकि सूत्रों की मानें, तो 2025 में उत्पादन शुरू होने की उम्मीद प्रबल संभावना है. दूसरी ओर नवंबर डीएसआर पलामू द्वारा जो रिपोर्ट जारी की गयी है उसके नॉट वर्किंग ड्यू तो सीटीओ मतलब पर्यावरण सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं होने की बात कही गयी है.
मेराल कॉल ब्लॉक
पूर्व में यह कोल ब्लॉक अभिजीत ग्रुप को आवंटित हुआ था. इसे रद्द कर दिया गया और 2015 में नीलामी से त्रिमुला इंडस्ट्रीज लिमिटेड को प्राप्त हो गया. जमीनी हकीकत यह है की कागज के आलावा कोयला खनन की कोई गतिविधि जमीन पर नहीं दिखती.
कोयला खदानों को चालू करने को ले सरकार व प्रशासन उदासीन
क्षेत्र में कोयले के उत्पादन से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती. स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता. राज्य और केंद्र सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी होती. पलामू में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिलता. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा, क्योंकि सरकार के विभिन्न विभागों, अंचल, स्थानीय जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन सहित विभिन्न विभागों का इन कोयला खदानों और खदान के आवंटित कंपनियों के प्रति उदासीन रवैया कोयले का उत्पादन की रफ्तार में रोड़ा हैं. इसके अलावा हर विभागीय कार्यालय में भ्रष्टाचार और रोड़े अटकाने के कारण यह स्थिति बनी है. खदान आवंटन के बाद मामूली पर्यावरण अनापत्ति प्राप्त करने में कंपनियों के वर्षों गुजर जाते हैं. कंपनियों को आवंटन के बाद जमीन की प्रकृति कैसे बदल जाती है. इन खदानों में जितना कोयला रिजर्व है, नियमानुसार उत्पाद, हो तो 33 वर्षों तक लगातार कोयला का उत्पादन चलेगा. जब चुनाव आता है, तो पार्टियां नौकरी और रोजगार देने की बात करती है, लेकिन अमल में नहीं लाया जाता. आवंटित खदानों को शुरू करने के लिए सरकार और प्रशासन व राजनीति से जुड़े लोगों की सकारात्मक पहल होने से क्षेत्र का विकास होगा व लोगों को रोजगार मिलेगा.
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