बेतला, संतोष कुमार : नक्सलियों के सफाया होने के बाद पलामू टाइगर रिजर्व में पर्यटकों की चहलकदमी बढ़ गयी है. वैसे इलाके जो पर्यटकों की पहुंच से वर्षों दूर रहें थे, आज पर्यटकों से भरे हुए हैं. जिन इलाकों में कभी मुठभेड़ के दौरान बंदूकें की आवाज सुनाई पड़ती थीं, आज वहां पर्यटकों के वनभोज के दौरान ठहाकों की गूंज सुनाई पड़ती है. पर्यटक बेखौफ होकर अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ इन इलाकों में भ्रमण कर रहे हैं. जब इन इलाकों में नक्सलियों का कब्जा रहा था, तब वैसे पर्यटन स्थल पर्यटकों की पहुंच से अछूते थे. घने और बीहड़ जंगल होने के कारण नक्सली इस इलाके को सेफ जोन मानते थे. बूढ़ा पहाड़ से सटा होने के कारण नक्सलियों का वर्चस्व वर्षों तक कायम रहा. बंदूकों की नोक पर जंगल के पेड़ काटे जाते थे. वैसे तो पर्यटकों को कभी भी नक्सलियों ने निशाना नहीं बनाया था, लेकिन वनकर्मियों को निशाना बनाए जाने के कारण वर्षों से पलामू टाइगर रिजर्व का इलाका पर्यटकों की पहुंच से दूर हो गया था.
वन विभाग के कर्मी तो क्या शाम ढलते ही पुलिसकर्मी भी इलाके से गुजरते समय कतराते थे. मुठभेड़ और बारूदी सुरंग विस्फोट की खबरों को मीडिया में प्रसारित होने के कारण पर्यटकों में खौफ का वातावरण बन चुका था. देश-विदेश के अलावा लोकल पर्यटक भी यहां आने से कतराते थे, लेकिन आज हालात बदल चुकी है. सरयू, गारू, बारेसाढ़, मारोमार, करमडीह, नावाडीह, लाभर, रूद, हेनार, कुजरूम, लाटू, मंडल आदि ऐसे ही कुछ इलाके थे. जो कभी पूर्णतः नक्सलियों के कब्जे में थे. इन इलाकों का नाम सुनते ही पर्यटक भय से कांपने लगते थे. लेकिन आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं. पलामू टाइगर रिजर्व के खूबसूरत नजारों में लातेहार से गारू तक का सफर भी कम रोमांचक नहीं है. जब भी कोई लातेहार से गारू की ओर रुख करते हैं, तो घने जंगलों के बीच से होकर गुजरते समय सड़क के दोनों ओर जो जंगल की खूबसूरती दिखाई देती है उसे लोग नहीं भूल पाते हैं. वहीं बेतला से नेतरहाट तक जाने में भी पर्यटकों का भरपूर मनोरंजन हो जाता है. पहली बार जब कोई अजनबी इस रास्ते से होकर गुजरता है, तो उसके रोमांच का ठिकाना नहीं रहता है. घने जंगलों के बीच ऊंची-ऊंची पहाड़ियां, कहीं गहरी खाइयां तो, कहीं सड़क से गुजरने के दौरान बीच-बीच में पड़ने वाले नदी नाले की खूबसूरती लोगों के मन को मोह लेती है. सरयू का इलाका काफी रोमांचित करने वाला है. यहां की खूबसूरत वादियों में लोग खो जाते हैं. जब भी लोग यहां पहुंचते हैं, उन्हें यहां से जाने का मन नहीं करता है.
पीटीआर की खासियत
झारखंड का एकमात्र टाइगर प्रोजेक्ट वाला एरिया पलामू टाइगर रिजर्व में दर्जनों नहीं बल्कि सैकड़ों ऐसी कई खूबसूरत जगह है, जो पर्यटन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. इनमें तो कई पर्यटन स्थलों की अपनी पहचान बन चुकी है, लेकिन कई ऐसे पर्यटन स्थल भी हैं, जो आज भी अपने पहचान के मोहताज हैं, लेकिन जब कोई व्यक्ति उस जगह पर पहुंच जाता है, तो वह आश्चर्य की सीमा को पार कर जाता है. पलामू टाइगर रिजर्व न केवल घने वनों से आच्छादित है. बल्कि सैकड़ों प्रकार के वन्यजीवों से भी भरा हुआ है. इस इलाके को काफी समृद्ध माना जाता है. इलाके में बाघों की संख्या बहुत अधिक थी और यही कारण था कि इसके संरक्षण के लिए 1974 में पलामू टाइगर रिजर्व बनाया गया. आंकड़ों की बात करें तो करीब 900 प्रकार के वनस्पति हैं, तो 150 प्रकार के जड़ी बूटियां भी हैं. वहीं हाथी, लकड़बग्घा ,बाघ, गौर ,चीतल, लोमड़ी जैसे जंगली जीवों के अलावे चौसिंगा, बारहसिंघा सहित कई दुर्लभ जीव भी हैं. वहीं अजगर, नाग, करैत, धामन जैसे सांप और विषैले कीट भी हैं. सैकड़ों प्रकार के रंग-बिरंगे सुंदर पक्षियों जिनमें मैना, पपीहा के अलावे दहिया, टुइंया, कठफोड़वा, डाउक, अबाबील, गैबर, दहियल, किलकिला, शायर, शिकारा आदि से भरमार है. कहीं घने जंगलों के बीच मौजूद जलाशय तो कहीं ऊंची-ऊंची पहाड़ियां, कहीं पहाड़ियों से गिरते हुए झरने तो कहीं कलकल बहती नदियां. इन सब दृश्यों को देखकर हर कोई मोहित हो जाता है. जिस जगह पर भी चाहे सैलानी अपना पिकनिक मना लेते हैं और पुराने वर्ष की विदाई और नये वर्ष को सेलिब्रेट कर लेते हैं.
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