धर्म मानव की मर्यादा : जीयर स्वामी

सिंगरा अमानत नदी तट पर चातुर्मास व्रत कथा

By Prabhat Khabar News Desk | July 9, 2024 9:44 PM

मेदिनीनगर. जिले के सिंगरा अमानत नदी तट पर चातुर्मास व्रत कथा में लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने कहा कि धर्म के द्वारा धर्म का वर्णन ही श्रीमद्भागवत है. धर्म के कारण ही भगवान जाने जाते हैं. धर्म के कारण ही सृष्टि का प्राणियों व समाज के साथ संबंध बना हुआ है. धर्म सब का उद्धार करने में सक्षम है. धर्म के कारण ही मर्यादा है. धर्म को मानव मात्र से अलग कर दिया जाये, तो पति-पत्नी का संबंध, भाई-बहन का संबंध, बेटा-बेटी का संबंध, स्वामी-सेवक, गुरु-शिष्य का संबंध क्या होता है, हम कैसे जान और समझ पायेंगे. धर्म के द्वारा ही मानव जाति का एक-दूसरे के प्रति संबंध को जान पाते हैं. धर्म को धारण करने वाला ही धार्मिक है. धार्मिक व्यक्ति को उसके आचरण से पहचान सकते हैं. 10 आचरण, व्यवहार, स्वभाव जिस मनुष्य में पाया जाता है, वही धार्मिक है. धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्। श्लोक के अर्थ की व्याख्या करते हुए स्वामी जी ने बताया कि धार्मिक व्यक्ति सुख-दुःख में सर्वदा सम अवस्था में रहते हैं. धार्मिक व्यक्ति धैर्यवान होते हैं. अर्थात धैर्य, किसी का अपराध क्षमा करना, किसी दूसरे की संपत्ति को नहीं चुराना, मन, वचन और कर्म में शुचिता, अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण, बुद्धि मत्ता, विद्या, सत्यकर्मी क्रोध पर नियंत्रण करना धर्म के 10 लक्षण हैं. ये 10 लक्षण जिस व्यक्ति में भी हों, वह सभी धार्मिक हैं. स्वामी जी ने बताया कि देश हित, राष्ट्र हित, समाज हित के विरुद्ध कार्य किया जाना क्षमा योग्य नहीं है. क्षमा करने योग्य अपराध को क्षमा करना ही धर्म है. सभी अपराध के अलग-अलग दंड प्रावधान की व्यवस्था शास्त्रों व न्याय व्यवस्था में है. उसका पालन करना ही धर्म है.

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