मेदिनीनगर.
पलामू के प्रमंडलीय आयुक्त सह एनपीयू के कुलपति बाल किशुन मुंडा ने कहा कि सरहुल पर्व प्रकृति से जुड़ने व गहरा प्रेम करने का संदेश देता है. सरहुल प्रकृति का पर्व है. यह सिर्फ आदिवासियों का ही नहीं, बल्कि विश्व के समस्त मानव समुदाय को प्रकृति से प्रेम करने का संदेश देता है. आयुक्त श्री मुंडा गुरुवार को जीएलए कॉलेज के जेएन दीक्षित छात्रावास परिसर स्थित अखरा में आयोजित सरहुल पूजा महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि सरहुल पर्व के आयोजन के बहाने समाज के लोगों को प्रकृति की रक्षा के प्रति जागरूक करना है. बदलते परिवेश में प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन की जरूरत है. इस त्योहार पर हम सबों को अधिक से अधिक पेड़ बचाने एवं पौधा लगाने का संकल्प लेना चाहिए. प्रकृति के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. विशिष्ट अतिथि समाजसेवी ज्ञानचंद पांडेय ने कहा कि आदिवासी पूर्वजों ने प्रकृति को ही अपना जीवन, धर्म व कर्म माना और उससे जुड़े रहने का संदेश दिया. उनके इस संदेश को आत्मसात करें. आदिवासी संस्कृति सबसे बेहतर है. महोत्सव के पूर्व संयोजक डॉ कैलाश उरांव ने कहा कि प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं है. बुद्धिजीवियों व युवाओं की यह जिम्मेवारी है कि आदिवासी सभ्यता, संस्कृति और भाषा के विकास में सक्रिय भागीदारी निभाये. उन्होंने प्रकृति पर्व सरहुल एवं करमा के महत्व को आमजनों तक पहुंचाने के लिए किये गये प्रयास की जानकारी दी. कार्यक्रम का संचालन डॉ बर्नाड टोप्पो एवं डॉ संगीता कुजूर ने संयुक्त रूप से किया. आयोजन समिति ने अतिथियों को शॉल ओढ़ाकर एवं पौधा भेंट कर सम्मानित किया. डॉ संजय बाड़ा ने स्वागत भाषण एवं छात्राओं ने गीत से स्वागत किया. इसके बाद ज्योति छात्रावास की छात्राएं व बिरसानगर के युवाओं ने गीत-नृत्य प्रस्तुत किये. मौके रजिस्ट्रार डॉ मृत्युंजय कुमार, वित्त पदाधिकारी डॉ आरके झा, डॉ केसी झा, डॉ अंबालिका प्रसाद, डॉ आइजे खलखो, डॉ दीपक पंडित, प्रो विकास टोपनो, प्रो जय प्रकाश उरांव, बलराम उरांव, बिगन उरांव, उदय राम सहित कई लोग मौजूद थे.