पलामू की मिट्टी से उभरे श्यामल की श्यामलिमा देश के साहित्यिक पटल पर बिखेरा रंग, जीते कई पुरस्कार

श्याम बिहारी श्यामल का पहला उपन्यास धपेल 1993 में पलामू में हुए भीषण आकाल की पृष्ठभूमि पर रचित है. 1998 में इसके प्रकाशन के बाद देश भर में काफी चर्चित रहा. श्यामल का नाम साहित्यकार के रूप में देश भर में लिया जाने लगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 24, 2022 12:27 PM

Palamu News: पलामू के श्याम बिहारी श्यामल आज के समय में देश के कुछ चर्चित रचनाकारों में से एक है. श्यामल द्वारा लिखित जयशंकर प्रसाद के जीवन पर आधारित उपन्यास ‘कंथा’ 2021 में  प्रकाशित होने से लेकर अब तक लगातार चर्चे में है. सबसे पहले श्यामल का नाम चर्चे में तब आया जब 1998 में पलामू के अकाल  की पृष्ठभूमि पर रचित उनका पहला उपन्यास धपेल प्रकाशित हुआ. पलामू के डाल्टनगंज अब मेदनीनगर में 20 जनवरी 1965 में जन्मे श्यामल साहित्य के उपन्यास, लघुकथा, कविता, व्यंग्य, संस्मरण, कहानी लेखन में समान दक्षता रखते है. साहित्य सृजन के अलावा श्यामल  मेन स्ट्रीम अख़बारों के लिए भी  लगातार काम कर रहे हैं. प्रभात खबर के धनबाद व देवघर संस्करण में भी श्यामल ने समाचार समन्वयक के रूप में अपनी सेवा दी है. फिलहाल वे बनारस में रहकर पत्रकारिता और साहित्य रचना कर रहे है. उनकी पत्नी सविता सिंह भी कथाकार हैं. हाल में ही श्यामल ने प्रभात खबर के साथ अपनी अंतरंग बातें साझा की है.

साहित्य रचना का बीजारोपण पिता ने किया, पत्नी ने दिया उत्साह 

श्यामल बताते हैं कि उनके अंदर साहित्य रचना का बीजारोपण बचपन में उस समय हो गया था, जब उनके पिता द्वारिका नाथ सिंह (अब स्वर्गीय) उन्हें रामायण व महाभारत की कथा सुनाते थे. फिर अस्सी के दशक में जब गंभीर पत्रकारिता की शुरुआत हुई तो साथ में साहित्य रचना की. शुरुआत भी कविता और लघुकथाओं के साथ हो गयी. उस समय की प्रमुख साहित्य पत्रिका सारिका सहित कई मैगजीनों में लगातार लघुकथा व कविता का छपना उत्साह बढ़ाने वाला था. यही उत्साह  बाद के दिनों में कहानी और फिर उपन्यास रचने को प्रेरित किया. बाद में जब कभी यह गतिविधि शिथिल पड़ी तो पत्नी सविता सिंह से मिला उत्साह काम आया और फिर से साहित्य सृजन में जुट गए. 

पलामू पर ही केंद्रित है धपेल और अग्नि पुरुष

श्याम बिहारी श्यामल का पहला उपन्यास धपेल 1993 में पलामू में हुए भीषण आकाल की पृष्ठभूमि पर रचित है. 1998 में इसके प्रकाशन के बाद देश भर में काफी चर्चित रहा. श्यामल का नाम साहित्यकार के रूप में देश भर  में लिया जाने लगा. श्यामल का दूसरा उपन्यास अग्निपुरुष वर्ष 2001 में प्रकाशित हुआ जो पलामू के चर्चित ईमानदार हस्ती सतुआ पांडेय के जीवन पर आधारित है. श्यामल बताते हैं कि बचपन से ही सतुआ पांडेय एक ईमानदार इंसान के रूप में उनके जीवन पर असर डाला था. बाद में उनकी ही जीवन को रचनात्मक बदलाव के साथ उपन्यास में लिखा गया. यह उपन्यास भी काफी चर्चित रहा था. 

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कंथा को रचने में लगा 20 साल का समय 

2021 में देश भर में चर्चित रहा उपन्यास कंथा जो कि जयशंकर प्रसाद की जिंदगी पर आधारित है को रचने में श्यामल को 20 साल का समय लगा. देश के तमाम साहित्यकार व समालोचकों ने इसे खूब सराहा. कंथा के प्रकाशन के बाद श्यामल के हिस्से कई प्रसिद्ध साहित्य सम्मान व पुरस्कार भी आये. ऑनलाइन भी कंथा की खूब बिक्री हो रही है. 

गहरे मेकअप वाली लड़की को है प्रकाशन का इंतजार

फिलहाल श्यामल गहरे मेकअप वाली लड़की नामक उपन्यास को अंतिम रूप देने में लगे हुए है. इसकी शुरुआत उन्होंने 2000 से ही किया है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का फलक इसका विषय वस्तु है.  श्यामल एक और उपन्यास जिंदगी जंक्शन पर भी काम कर रहे हैं जो बनारस के मछुआरों के जीवन संघर्ष पर आधारित है. इसके साथ पलामू के सांस्कृतिक, राजनितिक, ऐतिहासिक, वर्तमान और अतीत स्वरुप को सामने रखकर एक मेगा उपन्यास लिखने का प्लाट भी सामने रखकर श्यामल काम कर रहे हैं. 

फिल्म के लिए अलग से कुछ प्लानिंग नहीं है 

एक सवाल के जबाब में श्यामल ने कहा कि फिल्म के लिए अलग से कोई स्क्रिप्ट लिखने की कोई योजना फिलहाल नहीं है. यदि कोई उनके उपन्यास और कहानियों पर फिल्म बनाना  चाहे तो उनका स्वागत है. उन्होंने कहा कि फिल्म के लिए स्क्रिप्ट लिखना एक अलग ही कला है  और किसी उपन्यास को बाद में फिल्म के स्किप्ट में परिवर्तित करना दूसरी बात है. 

अब तक प्रकाशित रचनाएं

  • चार दशक के दौरान सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं की संख्या चार अंकों में चर्चित रचनाएं

  • लघुकथाएं : छोटी मछली-बड़ी मछली, राजनीती, राजनीतिज्ञ, हराम का खाना, कब्ज़ा, पुरस्कार आदि

  • कहानियां : गीली मिठास. कागज पर चिपका समय, चना चबेना गंगजल, आना पलामू, सिद्धांत आदि

  • संस्मरण : जानकी वल्लभ शास्त्री की याद, काशी में हम हममे काशीनाथ, नामवर-सा कोई नहीं, अनवर शमीम और धनबाद की स्मृतियाँ. 

  • व्यंग्य : जितना मूर्ख उतना सुर्ख,  भाषा में भूसा सरगम में शोर. 

रिपोर्ट : सैकत चटर्जी, पलामू 

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