मेदिनीनगर. सांस्कृतिक पाठशाला की 63वीं में जीवन में शिक्षा के महत्व और शिक्षा प्रणाली विषय पर परिचर्चा हुई. इप्टा के संस्थापक एवं एआइएसएफ के पुराने कार्यकर्ता धनंजय शुक्ला ने विचार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि विदेश में भारत के संविधान व संस्कृति से हमारी पहचान होती है. हमारी संस्कृति हमारे कर्म और व्यवहार पर निर्भर करती है. हमारी संस्कृति अंग्रेजी स्कूल में टूटता और बिखरता नजर आता है. उन्होंने कहा कि अपने विद्यार्थी जीवन में एआइएसएफ के बैनर तले शिक्षा की समानता का नारा बुलंद किया था. इस दौरान राष्ट्रपति का संतान हो या भंगी का, सबको शिक्षा एक समान का नारा बुलंद करने के पीछे समाज के सभी वर्ग के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था की मांग छिपी है. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या देश में सबको एक समान शिक्षा ग्रहण करने की प्रणाली है? इस विषय पर गंभीर होकर सोचने की आवश्यकता है. प्रेम प्रकाश ने कहा कि नाट्य जगत को एक नया आयाम देने वाले बिजोन भट्टाचार्य की स्मृति दिवस पर सांस्कृतिक पाठशाला का यह कड़ी आयोजित है. इसकी अध्यक्षता ज्ञान विज्ञान समिति के प्रांतीय अध्यक्ष शिवशंकर प्रसाद ने की एवं इप्टा के अध्यक्ष सुरेश सिंह ने संयुक्त रूप से किया. युवा कवि घनश्याम कुमार ने परिचर्चा का विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि जीवन में शिक्षा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता. वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर बाजार हावी है. शिक्षक गोविंद प्रसाद ने कहा कि मानव में सीखने की प्रवृत्ति ही शिक्षा को जन्म दिया. शिक्षा के बल पर ही मानव समाज विकसित हुआ है. वर्तमान समय में शिक्षा इतनी महंगी हो गयी है कि गरीब व माध्यम वर्ग के बच्चे इससे वंचित रह जा रहे हैं. कुलदीप राम व रवि शंकर ने कहा कि शिक्षा का संबंध सिर्फ किताब और स्कूल से नहीं है, बल्कि जीवन के हर पल से हम सीखते हैं. नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति छात्रों को शिक्षा से दूर करने की नीति है. इस पर भी विचार करना आवश्यक है. सुरेश सिंह ने कहा कि आज सोचने की जरूरत है कि शिक्षा क्यों और किसके लिए होनी चाहिए. शिवशंकर प्रसाद ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली व्यवस्था बदतर हो गयी है. शिक्षा को रुचिकर और व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है. मौके पर अजीत कुमार, संजू कुमार संजू, अमित कुमार भोला सहित कई लोग मौजूद थे.
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