आधा ठंड गुजर गया, लेकिन गरीबों को नहीं मिल पाया कंबल
ले में ठंड का बढ़ना बदस्तूर जारी है. लोग ठंड के कारण घरों में सुबह नौ बजे तक दुबके रहते हैं.
सरकारी कंबलवा कब मिलतइ बाबू, कोनो ना आवा थथी। रात भर इहें रह थी बाबू सप्ताह में कभी-कभार 50 रुपया व अधिक से अधिक 300 रुपया की होती है आमदनी शिवेंद्र कुमार मेदिनीनगर . जिले में ठंड का बढ़ना बदस्तूर जारी है. लोग ठंड के कारण घरों में सुबह नौ बजे तक दुबके रहते हैं. ठंड से सबसे ज्यादा परेशानी उन गरीबों को होती है, जो अपने जीवन यापन के लिए सड़क के किनारे दुकान लगाते हैं, या फिर शहर में घूम घूम कर अपना सामान बेचते हैं. वैसे लोगों का दिन तो किसी तरह कट जाता है. लेकिन सबसे ज्यादा समस्या रात में होती है. शहर में ऐसी कहीं कोई व्यवस्था नहीं है. जहां गरीब रह सकते हैं. इस कारण रात में कहीं भी सड़क के किनारे वे अपना रात बिताते हैं. इस कंपकंपाती ठंड में उनका जीना मुश्किल हो जाता है. रेलवे स्टेशन परिसर व बस स्टैंड में है गरीबों का बसेरा पलामू में प्रतिदिन ठंड बढ़ रहा है. तापमान में प्रतिदिन गिरावट हो रहा है. रोजी-रोटी के लिए दूर से आने वाले लोगों का आशियाना खुले आसमान के नीचे रेलवे स्टेशन व बस अड्डों पर बितता है. वे किसी तरह ठंड से ठिठुरते हुए अपने रात गुजारते हैं. सरकारी कंबलवा कब मिलतइ बाबू, कोना ना आवा थथी. रात भर इहें रह थी बाबू अंबेडकर पार्क बड़ा तलाब के सामने खुले आसमान व रेलवे स्टेशन पर दतवन व पत्तल बेचने वाली महिलाओं का कहना है कि आधा से ज्यादा जाड़ा गुजर गया. अभी तक ना तो कोई सरकारी बाबू गरीबों को कंबल देने आये हैं और न ही किसी सामाजिक संस्था की ओर से कंबल वितरण किया गया है. यहां खुले आसमान में रहकर दतवन व पत्तल बेचने वाली अधिक औरतें शहर से कई किलोमीटर दूर से आ कर अपनी जीविका के लिए यह काम करती है. औरतें का कहना था कि सरकारी कंबलवा कब मिलतइ बाबू, कोना ना आवा थथी. रात भर इहें रह थी बाबू. यहां पर कई ऐसी औरतें हैं. दूसरे जिले के सुदूरवर्ती इलाकों से आकर अपने छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर दतवन व पत्तल बेचने का काम करती है. उनका कहना है कि हम लोग एक बार आते हैं. एक सप्ताह के बाद ही घर जाते हैं. घर जाने पर वहां पत्तल बनाने के लिए पत्ता व दतवन के लिए लकड़ी का जुगाड़ करते हैं. फिर भाड़ा लगा कर यहां आते हैं. खुले आसमान में तब तक रहते हैं. जब तक हम लोग के द्वारा लाया गया दत्तवन व पत्तल खत्म नहीं हो जाता है. इस कार्य में ज्यादातर महिलाएं जुड़ी रहती है. सत्तू खाकर किसी तरह अपना गुजारा बसर करती है. छोटा-मोटा बिछावन भी साथ में रखती है. रात भर व खुले आसमान में उसी के सहारे रहती है. रेलवे स्टेशन व शहर में अंबेडकर पार्क के सामने दूर-दराज से आए करीब 50 से अधिक महिलाएं आकर दतवन व पत्तल बेचती है. केस स्टडी एक जिले के रामगढ़ प्रखंड के चपलसी गांव की रहने वाली 35 वर्षीय विधवा मलोइया देवी का कहना है कि कभी-कभी तो सप्ताह में 50 रुपया तक ही बिक पाता है. फिर भी क्या करें बाबू यहां ठंडा में रात गुजारना पड़ता है. मलोइया की तीन लड़की व एक लड़का है. उसको घर पर छोड़ कर आते हैंं. जब वह यहां से कमा कर ले जाती है. तो उन लोगों के लिए नमक, मसाला, तेल का इंतजाम करके फिर पत्तल बेचने के लिए शहर आ जाते हैंं. केस स्टडी दो लातेहार जिले के छिपादोहर प्रखंड के हरातू गांव की रहने वाली शीला का कहना है कि चावल तो सरकार के यहां से मिल जाता है. लेकिन पेट भरने के लिए चावल के साथ नमक, दाल तेल व मसाला की भी जरूरत पड़ती है. उसके लिए यहां शहर में आकर दत्तवन.व पत्तल बेचना पड़ता है. गांव में कोई काम नहीं है. जिससे इन लोगों को खाने की समस्या होती है. वहां से वह दतवन व प पत्तल लेकर आती है. फिर यहां पर बेचती है. केस स्टडी तीन लातेहार जिले के मनिका के रहने वाले किशुन का का कहना है कि हम लोग अपना पेट के लिए मजबूरी में खुले आसमान के नीचे रहना पड़ता है. उनका कहना है कि अभी तक सरकार के द्वारा कंबल नहीं दिया गया है.रात में रहने में हम लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है. किन लोगों को दिया जाना है कंबल यह कंबल वैसे लोगों को देना है. जो गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रहे हो, वृद्ध, विकलांग, भूमिहीन व बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों को देने के लिए सरकार ने कंबल उपलब्ध कराने का मापदंड रखा है. तापमान में प्रतिदिन हो रही है गिरावट मौसम विभाग के अनुसार बुधवार को पलामू का मिनिमम तापमान 12.6 डिग्री, गुरुवार को 12.3, शुक्रवार को 11. 9 व शनिवार को 10. 2 डिग्री तापमान रिकार्ड किया गया.
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