पलामू, सैकत चटर्जी. 2035 तक पलामू का कई हिस्सा रेगिस्तान में तब्दील हो जायेगा. यही नहीं तेजी से बदल रहे पर्यावरण का असर इंसान के दिलो-दिमाग पर भी पड़ेगा जिससे वे एक दूसरे से खुनी संघर्ष में उलझ जायेंगे. ये कहना है देश के जाने माने वन्य प्राणी विशेषज्ञ सह पर्यावरणविद डॉ दयाशंकर श्रीवास्तव का. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रभात खबर से की गई विशेष बातचीत में उन्होंने पलामू की भविष्य की भयावह तस्वीर सामने रखी , उन्होंने कहा की तेजी से समय निकलता जा रहा है, अगर अभी भी सचेत होकर पहल नहीं की गयी तो इसका दुष्परिणाम सभी को भुगतना होगा. उन्होंने बिंदुवार पलामू की भविष्य की कई पहलुओं को सामने रखा.
2035 तक कैसे रेगिस्तान बनेगा पलामू
डॉ श्रीवास्तव ने कहा की बात 1951 की करें तो उस समय पलामू के कुल क्षेत्रफल के 43 प्रतिशत हिस्सा वन भूमि था जो वनों से आच्छादित हुआ करता था. सेटेलाइट डाटा के अनुसार उसमे से अब सिर्फ नौ प्रतिशत जंगल बची हुई है. इसमें गौर करने योग्य बात यह है की सरकारी आंकड़ों में वन भूमि तो यथावत दिख रहे है पर उसमे से जंगल गायब हो गए है. पलामू के घने वन अब विरल वन में और विरल वन झाड़ीनुमा वन में तब्दील हो गया है. इससे पहाड़िया नंगी हो गयी है. नंगे चट्टान छाया न मिल पाने का कारन तेजी से गरम हो जा रहा है. सूरज ढलने के बाद तेजी से ठण्ड भी हो रहे है. इसलिए गर्मी के समय दिन व रात के तापमान में 18 से 20 डिग्री सेल्सियस फर्क होने लगा है. इससे छोटे छोटे बवंडर व तूफान आ रहे है. यह खतरे की घंटी है. ऐसा होना यह संकेत दे रही है कि पलामू की धरती रेगिस्तान बनने की ओर अग्रसर है.
पेड़ों की कटाई से घट रहा भूमिगत जलस्तर
पेड़ों की बेतहासा कटाई से पलामू के वैसे दोहर भूमि जो दो पहाड़ों के बिच है में जल संधारण की क्षमता नगण्य होती जा रही है. पानी का ठहराव नहीं होने से भूमिगत जलस्तर तेजी से नीचे जा रही है. पलामू की वैसी नदियां जिसमे पहले सालो भर कुछ न कुछ पानी रहता था, या वैसी नदियां जिसमे जलस्रोत अंतसलीला थी वो भी अब जल शून्य होकर सिर्फ बरसाती नदी बनकर रह गयी है. इसका सीधा असर भूमिगत जलस्तर और मिट्टी के ऊपर पर रहा है. भूमिगत जलस्तर निचे होने से मिटटी के प्रकार में भी बदलाव हो रहे है, इसमें बालू का तत्व बढ़ता जा रहा है. इंसानी लालच का शिकार यह धरती इस तरह से तेजी से रेगिस्तान बनने की ओर अग्रसर हो रहा है.
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जब हमलावर हो जायेंगे इंसान
डॉ श्रीवास्तव कहते है पर्यावरण में हो रहे इस प्रतिकूल परिवर्तन का असर इंसान के प्रकृति और व्यवहार में भी हो रहा है. तेजी से बढ़ते तापमान का असर सीधे इंसान के मस्तिष्क पर हो रहा है. इंसान को संचालित और नियंत्रित करने वाले कोशिकाएं इंसान के बस में नहीं रह रही है. लोग जल्दी ही अपना आपा खो दे रहे है. इंसान बदलते पर्यावरण के कारण पहले से अधिक हमलावर हो गए है. ऐसे भी पलामू की बात करें तो यहाँ आपस में होने वाले झगड़ों की संख्या अन्य जगहों से अधिक थी. वो इन दिनों और भी बढ़ गयी है. लोगो को यह अटपटा लग सकता है लेकिन हकीकत यही है की बदलते पर्यावरण से बेतहाशा बढ़ रही गर्मी के कारन इंसान अपने दिमाग पर से नियंत्रण खोता जा रहा है, जो उसे एक दूसरे के प्रति हमलावर बना दे रहा है.
क्या है निदान
डॉ श्रीवास्तव की माने तो अगर हमें पलामू को बचाना है तो जल्द से जल्द कुछ सुधार करने होंगे. सबसे पहले पंचायतों को जागरूक कर उनके इलाके का जंगल बचाने का दायित्व उन्हें देना होगा. लोग जो यह समझते है की जंगल मतलब वन विभाग, इस मानसिकता को हटाकर यह बताना होगा की जंगल किसी विभाग का नहीं हमारा कम्युनिटी का है. जब तक जंगल बचाने को लेकर कम्युनिटी आगे नहीं आएगा तब तक कोई सरकारी पहल इसे बचा नहीं पायेगा. सभी सरकारी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लान लगाकर खुद उदाहरण बन दूसरों को इसके लिए प्रेरित करना होगा. नदियों में और नदी किनारे में कचरा फेंकने की प्रक्रिया को बंद करना होगा. हर किसी को पौधे लगाने और उसे बचाने की दिशा में प्रेरित करना होगा. इसे एक प्रॉपर प्लानिंग के तहत जल्द से जल्द शुरू करना होगा.