वर्ल्ड टाइगर डे : संतोष, पलामू/रांची : भारत सरकार ने बाघों के संरक्षण के लिए पलामू स्थित 1972 में बेतला को चिह्नित किया था. यहां की आबोहवा बाघों के संरक्षण के लिए उपयुक्त बतायी गयी थी. पलामू के गजेटियर में जिक्र है कि यहां के रेलवे स्टेशन पर आजादी से पहले बाघों का दिखना सामान्य बात थी. धीरे-धीरे बेतला से बाघों की संख्या घटने लगी. अब तो यहां बाघ हैं या नहीं, इसको लेकर भी संशय है. बेतला नेशनल पार्क में अलग-अलग समय में मौजूद रहे बाघ या बाघिन की कई चर्चित कहानियां हैं. 1982 में एक बाघिन बेतला में बराबर दिखती थी.
विभागीय पदाधिकारियों ने इसका नाम रानी रखा था. 1984 में उस बाघिन ने चार शावकों को जन्म दिया था, जिनका नाम बॉबी, बंटी, बबली और शेरा दिया गया. इस खबर के बाद बेतला आनेवाले सैलानियों की संख्या बढ़ गयी. समय के साथ चारों शावक वयस्क हो गये. कुछ समय बाद सभी अपनी-अपनी टेरिटरी में चले गये. हाल ही में जो बाघिन बेतला में मरी थी, उसे रानी का बच्चा होने का अनुमान पुराने लोग लगाते हैं.
पीटीआर में 1984 में एक साथ चार बच्चे जन्मे थे रानी ने : फिलहाल बाघों की मौजूदगी की सूचना नहीं मिल रही है. एक बाघ होने की संभावना है. पीटीआर में बाघ रहें, इसका प्रयास किया जा रहा है. बाघ को फोकस में रख कर काम किया जा रहा है.
वाइके दास, प्रोजेक्ट डायरेक्टर
तीन साल में छह शावकों का हो चुका है जन्म : रांची स्थित भगवान बिरसा मुंडा जू टाइगर के ब्रीडिंग के लिए अनुकूल माना जा रहा है. यही कारण है कि यहां अब तक बाघिनों ने छह बच्चे जन्मे हैं. अनुष्का नामक बाघिन ने 2018 में तीन बच्चे को जन्म दिया था. 2020 में उसने तीन बच्चों को जन्म दिया है. अच्छी ब्रीडिंग के कारण ही भारत सरकार ने इसको मॉडल चिड़ियाघर बनाने की स्वीकृति दी है. जू के पशु चिकत्सक डॉ अजय कुमार बताते हैं कि हाल के वर्षों में जू में बाघिन को जो बच्चे हुए हैं, इसके पीछे यहां का पर्यावास है.
Post by : Pritish Sahay