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कोयले की ढुलाई बाधित, मालिक परेशान

उरीमारी : बरका-सयाल क्षेत्र में कोयले की ढुलाई बीते 17 दिसंबर से काफी धीमा हो जाने के कारण ट्रांसपोर्टरों के मातहत चलने वाले डंपर मालिकों के समक्ष आर्थिक तंगी की स्थिति पैदा हो गयी है. बताया गया कि पीएमओ के निर्देश के बाद कोयला मंत्रालय द्वारा थर्मल पावर स्टेशनों को सौ एमएम साइज का कोयला […]

उरीमारी : बरका-सयाल क्षेत्र में कोयले की ढुलाई बीते 17 दिसंबर से काफी धीमा हो जाने के कारण ट्रांसपोर्टरों के मातहत चलने वाले डंपर मालिकों के समक्ष आर्थिक तंगी की स्थिति पैदा हो गयी है.
बताया गया कि पीएमओ के निर्देश के बाद कोयला मंत्रालय द्वारा थर्मल पावर स्टेशनों को सौ एमएम साइज का कोयला सप्लाई के स्पष्ट आदेश के बाद यह स्थिति पैदा हुई है. बताना उचित होगा कि उरीमारी के सौंदा स्थित बी साइडिंग में सौ एमएम साइज का कोयला करने के लिए कोल क्रशिंग मशीन नहीं है. बताया गया कि मोबाइल क्रशिंग मशीन बैठाये जाने के लिए सौंदा बी साइडिंग में प्रक्रिया चल रही है. इसे बैठाने में एक माह से अधिक का समय लग सकता है. इसी कारण कोयले की ढुलाई पर इसका सीधा असर पड़ा है. प्रबंधन ने इस मशीन को बैठाने के लिए 12 जनवरी तक की डेडलाइन रखी थी.
लेकिन ठेकेदार ने अभी तक मात्र पिलर ही तैयार किया है. पूर्व में बिना क्रशिंग किये कोयला का डिस्पैच रेलवे वैगन से थर्मल पावर स्टेशनों को बड़े साइज का कोयला व पत्थर दोनों सप्लाई हो जाता था. थर्मल पावर स्टेशनों द्वारा इसकी शिकायत कोयला मंत्रालय समेत पीएमओ को की गयी थी. इसके बाद कोल क्रशिंग मशीन बैठाने की प्रक्रिया शुरू हुई है. मामला इतना गंभीर है कि इस मामले को लेकर सीसीएल के निदेशक तकनीक संचालन समेत डायरेक्टर फाइनांस भी साइडिंग का दौरा कर स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दे चुके हैं.
10 हजार टन होता था डिस्पैच : सौंदा बी साइडिंग को उरीमारी, बिरसा, न्यू बिरसा, बलकुदरा आउटसोर्सिंग से प्रतिदिन 10 हजार टन कोयला का डिस्पैच किया जाता था. यहां पहुंचनेवाले कोयले को रेलवे रैक के माध्यम से देश के विभिन्न पावर स्टेशनों तक सप्लाई की जाती थी.
दो से तीन रैक कोयले की सप्लाई रोज होती थी. यहां पर अरगड्डा क्षेत्र से भी कोयला आता था. बीते 17 दिसंबर से साइडिंग में कोयले की आवक कम हो गयी है. जनवरी में मात्र छह रैक कोयला डिस्पैच किया जा सका है.
150 से अधिक डंपर चलते हैं : कोयला ढुलाई के कार्य में 150 से अधिक डंपर विभिन्न ट्रांस्पोर्टरों के अंतर्गत संचालित हैं. इन्हें कोयला नहीं मिलने के कारण डंपरों को खड़ा रखना मजबूरी हो गया है. कई लोगों ने किस्त पर डंपर निकाले थे. उनके समक्ष अब किस्त जमा करने के लिए पैसा नहीं है.
डंपरों में रोजगार प्राप्त ड्राइवर व खलासी के समक्ष भी रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. ट्रांसपोर्टरों को भी अपने मातहत कार्य करने वाले स्टाफ को वेतन देने में परेशानी हो रही है. डंपर ऑनर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजू यादव ने कहा कि यदि स्थिति रही तो हम लोगों को डंपर बेचना पड़ेगा. उन्होंने प्रबंधन से कोल क्रशिंग मशीन बैठाने के काम में तेजी लाने की मांग की है.

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