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रामगढ़ में इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र कुमार बोले- कला और साहित्य का संरक्षण जरूरी

रामगढ़ में राधा गोविंद विश्वविद्यालय के खोरठा विभाग द्वारा विशेष व्याख्यान सह खोरठा गीत प्रस्तुति का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र कुमार समेत कई लोग शामिल हुए.

रामगढ़ : राधा गोविंद विश्वविद्यालय के खोरठा विभाग द्वारा भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा के सहयोग से गुरुवार को विशेष व्याख्यान सह खोरठा गीत प्रस्तुति का आयोजन किया गया. स्थानीय खोरठा जन गायक जगलाल सिंह की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रश्मि, कुलसचिव डॉ निर्मल कुमार मंडल, परीक्षा नियंत्रक डॉ अशोक कुमार, शिक्षाविद डॉ बीएन ओहदार व इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र कुमार संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. इसके बाद खोरठा विभाग की ओर से सभी अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष ओहदार अनाम के नेतृत्व में किया गया. कुलसचिव डॉ मंडल ने स्वागत भाषण दिया. मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र कुमार ने कहा कि औपनिवेशीकरण के दौर में कला और साहित्य का संरक्षण जरूरी है.

खोरठा गीत प्रस्तुत करने वालों को किया गया सम्मानित

कार्यक्रम के बाद खोरठा गीत प्रस्तुत करने वाले प्रतिभागियों को इप्टा की ओर से प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया. कार्यक्रम का संचालन खोरठा विभाग के विभागाध्यक्ष ओहदार अनाम व धन्यवाद ज्ञापन पोवेल कुमार ने किया. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी विभागाध्यक्ष व प्राध्यापक के अलावा आयोजन समिति के बलराम जी, पन्नालाल राम, सुशील स्वतंत्र, अंजनी, प्रीतम, इप्टा से मेघनाथ, राजू कुमार, शशि पांडे, रवि शंकर समेत काफी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे.

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लोक भाषाओं, कला और साहित्य का संरक्षण जरूरी: शैलेन्द्र

रामगढ़ में खोरठा जन-गायक जगलाल सिंह के गीतों में जनचेतना के स्वर विषय पर आयोजित व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि औपनिवेशीकरण के इस दौर में हमारी लोक भाषाओं, कला और साहित्य का संरक्षण जरूरी है, ताकि हमारी अस्मिता बची रहे. उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है. मनुष्यता, दया करुणा और प्रेम की सौंदर्य चेतना व रसबोध मनुष्य को मनुष्य बनता है. यही जनचेतना है जिसे नष्ट करने कि कोशिश की जा रही है. इसलिए इसे बचाने की जरूरत है. इसके लिए स्थानीय लोक भाषाओं के साथ जुड़ना जरूरी है. बिना अपनी माटी से जुड़े हम बेहतर समाज का निर्माण नहीं कर सकते हैं.

डॉ बी एन ओहदार ने खोरठा भाषा में ही दिया व्याख्यान

विश्वविद्यालय में खोरठा विभाग के जनक और खोरठा साहित्य परिषद के अध्यक्ष डॉ बी एन ओहदार ने खोरठा भाषा में ही अपना व्याख्यान दिया. उन्होंने डॉ रामदयाल मुंडा को याद करते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि जे नाची से बाची. इसके आगे की लाइन डॉ ओहदार ने खुद जोड़ते हुए कहा कि जे गावी से जीवी. उन्होंने कहा कि जीवन का मूल मंत्र नाचना और गाना है. मौजूदा दौर में जिस तरह से सब कुछ बाजार के हवाले कर दिया गया है, ठीक वैसे ही हमारी कला साहित्य और संस्कृति की भी हो रही. इसका संरक्षण जरूरी है और यह तभी होगा जब हम मानवीय मूल्यों के साथ जुड़कर अपना अध्ययन करें और कला व साहित्य का सृजन करें. खोरठा में इसकी अपार संभावनाएं हैं. उन्होंने खोरठा गीतों में फुहड़पन की कड़ी आलोचना करते हुए जन चेतना को विकसित करने वाले जनपक्षीय खोरठा गीतों को लिखने व गाने के लिए युवाओं को प्रेरित किया.

जन-पक्षीय खोरठा गीतों से सराबोर रहा महफिल

खोरठा विभाग में आयोजित कार्यक्रम के दौरान विभिन्न खोरठा गीतों से महफिल सराबोर रहा. इप्टा से आये कलाकारों की मंडली ने कई जनगीत प्रस्तुत किये. वहीं, खोरठा भाषा के स्थापित कलाकार प्रदीप कुमार दीपक, बसु बिहारी, सुरेश विश्वकर्मा व डॉ एमएन गोस्वामी ने अपने अंदाज में शानदार खोरठा गीत प्रस्तुत कर सबको झारखंडी कला व साहित्य से परिचय कराया.

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