झारखंड के ”जल पुरुष” पद्मश्री सिमोन उरांव से सीखिये कैसे बचेगा, जल जंगल और जमीन

रांची : झारखंडी पहचान लिये हुए बेहद साधारणवेशभूषा में चुपचाप पर्यावरण के लिए काम करने वाले सिमोन उरांव एक ऐसा नाम जिन्‍होंने पर्यावरण को बचाने में खुद को समर्पित कर दिया. एक ऐसी शख्सियत जो न ऊंचे ओहदे पर बैठे हैं और न ही उनकी पास कोई बड़ी डिग्री है.बस उनका हौसला मजबूत है और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2017 4:23 PM

रांची : झारखंडी पहचान लिये हुए बेहद साधारणवेशभूषा में चुपचाप पर्यावरण के लिए काम करने वाले सिमोन उरांव एक ऐसा नाम जिन्‍होंने पर्यावरण को बचाने में खुद को समर्पित कर दिया. एक ऐसी शख्सियत जो न ऊंचे ओहदे पर बैठे हैं और न ही उनकी पास कोई बड़ी डिग्री है.बस उनका हौसला मजबूत है और खुद पर पूरा विश्‍वास. प्रभात खबर डॉट कॉम ने पर्यावरण दिवस पर सिमोन से विशेष बातचीत की है.

झारखंड की राजधानी रांची से 30 किलोमीटर दूर बेड़ों के रहनेवाले सिमोन उरांव जल संरक्षण, वन रक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए कई काम करते हैं. एक साधारण से व्‍यक्तित्‍व वाले सिमोन उरांव, साधारण लोगों के बीच बैठते हैं और घंटों पर्यावरण को बचाने को लेकर विचार विमर्श करते हैं. जंगल बचाने और जंगल बढ़ाने का काम तो सिमोन ने किया ही लेकिन उन्होंने जो दूसरा काम पानी के लिए किया, वह तो सराहनीय कदम है.

पर्यावरण संरक्षक सिमोन उरांव को साल 2015 में उनके पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया. सिमोन ने जल संचयन के लिए अकेले छह गांवों में तालाब खुदवाए और पेड़ लगाकर एक अनोखी मिसाल पेश की. अब इन गांवों में साल में तीन फसलें उपजाई जा सकती है. सिमोन बड़ी ही सादगी से बताते हैं उन्‍हें शुरुआत में लोगों को अपनी बात समझाने में काफी मशक्‍कत करनी पड़ी. लेकिन धीरे-धीरे फिर लोगों का साथ मिलने लगा. इसके बाद टीम बनाई. सभी गांवों से दस-दस लोगों की टीम बनाई गई थी और जो इसमें जो लोग शामिल हुए उनके पारिश्रमिक के लिए 20-20 पइला (अनाज मापने वाला एक पात्र) चावल देने का निर्णय लिया गया. चावल भी गांव से ही चंदे में लिया जाने लगा. इस तरह जंगल बचाने का अभियान शुरू हुआ.

गांवों में अब भी लोग खाना तो चूल्‍हों में ही बनाते हैं और इसके लिए उन्‍हें लकड़ी चाहिए. सिमोन उरांव ने इसका भी एक तोड़ निकाला. इसका नतीजा यह हुआ कि जो स्‍थानीय लोग लकड़ी काटने जाते थे उनकी जरुरत के हिसाब से शुल्‍क निर्धारित किया गया. घर में जलावन के लिए लकड़ी लाने पर 50 पैसे का शुल्‍क निर्धारित हुआ जो बाद में बढ़कर दो रुपये हुआ. साथ ही सिमोन ने पेड़ काटने वालों को हमेशा प्र‍ेरित किया कि वो अगर एक पेड़ काटते हैं तो उसकी जगह पर पांच से दस पेड़ लगाये.

सिमोन उरांव को ‘जल पुरुष’ के तौर पर भी जाना जाता है. सिमोन ने सबसे पहले अपनी जमीन पर ही अपने श्रम से कुंए खोदे. इसके बाद उन्‍होंने अपने आसपास के लोगों को तालाब खोदने के लिए प्रेरित किया. सिमोन 1955 से 1970 के बीच बांध बनाने का अभियान जोरदार ढंग से चलाया. उन्होंने जब यह काम शुरू किया तो 500 लोग उनसे जुड़ गये और साथ मिलकर जल संरक्षण का काम करने लगे उन्होंने भी यह महसूस किया कि बांध बनाने से बहुत मदद मिल रही है.

सिमोन बताते हैं कि जब उन्‍होंने बांध और नहर बनाने का काम शुरू किया तो काफी दिक्कतें आई थी. उन्‍होंने पूरे इलाके में घूम-घूमकर यह मुआयना किया कि आखिर कैसे बांध खोदा जाए कि पानी का बेहतरीन इस्तेमाल हो. इसके बाद उन्‍होंने अनुमान लगाया कि अगर बांध को 45 फीट पर बांधेंगे और नाले की गहराई 10 फीट होगी तो फिर बरसात के पानी को वह झेल लेगा.

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