रांची : सीआरपीएफ व गिरिडीह पुलिस ने नौ जून को पारसनाथ पहाड़ी पर हुई मुठभेड़ में जिस मोती लाल बास्के को मार गिराया था, वह मजदूर और दुकानदार था. पारसनाथ स्थित चंद्रप्रभु मंदिर के पास उसकी दुकान है, जहां से वह पारसनाथ आया-जाया करता था. वह डोली मजदूरी का काम भी करता था. मधुबन की मजदूर संगठन समिति ने इस मामले में पुलिस पर आरोप लगाया है कि निर्दोष को मार कर पुलिस उसे नक्सली बता रही है.
समिति के सचिव बच्चा सिंह ने कहा है कि मोती लाल बास्के के आने-जाने के क्रम में पुलिस व नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसका वह शिकार बना. मोती लाल बास्के का कोई नक्सली रिकॉर्ड नहीं है. इसलिए सरकार उसके परिजनों को मुआवजा दे. पीरटांड़ के प्रमुख सिकंदर हेंब्रम ने भी जिला प्रशासन से घटना की जांच कर मोती लाल बास्के के परिजनों को मुआवजा देने की मांग की है. उल्लेखनीय है कि मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक शव बरामद किया था. मृतक के शरीर पर नक्सली वरदी नहीं थी. वह लुंगी पहने हुए था. घटना के दूसरे दिन डीजीपी समेत अन्य अधिकारी पारसनाथ पहुंचे थे. अधिकारियों ने मुठभेड़ में शामिल जवानों के बीच एक लाख रुपये पुरस्कार का वितरण किया था.
नक्सली के रूप में चिह्नित था मोतीलाल : डीआइजी
उत्तरी छोटानगपुर प्रमंडल के डीआइजी भीमसेन टुटी ने घटना के बारे में बताया है कि कई लोग दोहरा जीवन जीते हैं. मोती लाल बास्के नक्सली संगठन का समर्थक था और दस्ते के साथ भी घूमता था. जिस जगह पर मुठभेड़ हुई है, उस जगह पर अाम लोगों की उपस्थिति संभव नहीं है. उसके पास से एसएलआर और पिट्ठू भी मिले हैं. इन कारणों से मोतीलाल के नक्सली दस्ते में होने पर कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है.