अलग पहचान बनाये मुंडा समाज

रांची : आदिम संस्कृति दुनिया की सबसे विशिष्ट संस्कृति है, पर आज हमारे समक्ष राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक स्तर पर कई चुनौतियां हैं. प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते हुए हमें इन चुनौतियों से निबटना है. भाषा व साहित्य में भी सृजन की जरूरत है. मुंडा समाज के लोगों को चाहिए कि वे राष्ट्रीय और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:31 PM

रांची : आदिम संस्कृति दुनिया की सबसे विशिष्ट संस्कृति है, पर आज हमारे समक्ष राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक स्तर पर कई चुनौतियां हैं. प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते हुए हमें इन चुनौतियों से निबटना है. भाषा व साहित्य में भी सृजन की जरूरत है.

मुंडा समाज के लोगों को चाहिए कि वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाये. उक्त बातें शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने कही. वह मोरहाबादी स्थित दीक्षांत सभागार में आयोजित राष्ट्रीय मुंडा सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि राजनीतिक चेतना आने व सशक्त होने से ही समाज बेहतर स्थिति में आ पायेगा.

इससे पूर्व सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए प्रो अमिता मुंडा ने कहा कि यह सम्मेलन मुंडा समुदाय के सभी लोगों को एक मंच पर लाने का प्रयास है. समाज से जुड़े जितने भी मुद्दे हैं, उन पर विमर्श करने और उन्हें जानने-समझने का प्रयास है.

पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह ने कहा कि झारखंड में पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का पालन नहीं हो रहा. यहां औद्योगिक घरानों व पूंजीवाद को बिठाने का प्रयास हो रहा है, ऐसे में पूरा आदिवासी समाज खतरे में है. सत्यनारायण मुंडा ने कहा कि इस सम्मेलन के जरिये हम कई अधूरे कामों को पूरा करने का प्रयास करेंगे.

इनमें मुंडारी भाषा अकादमी व ट्राइबल यूनिवर्सिटी की स्थापना करना, सांस्कृतिक विकास के लिए पहल करना मुख्य है. सम्मेलन में केसी टुडू सहित अन्य लोगों ने भी संबोधित किया. सम्मेलन का उदघाटन बिरसा मुंडा एवं डॉ रामदयाल मुंडा की तसवीरों पर माल्र्यापण से हुआ.

कई राज्यों से पहुंचे लोग

सम्मेलन में झारखंड, ओड़िशा, बंगाल व अन्य स्थानों से मुंडा समाज के लोग उपस्थित हुए. उदघाटन सत्र में मुंडाओं की दशा एवं दिशा पर तथा प्रथम सत्र में भाषा साहित्य कला एवं संस्कृति पर चर्चा हुई.

शाम सात बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए. इसमें बंदगांव, राहे, मुरहू, खूंटी, गबडेया, अड़की, कोटा, बुंडू व ओडिशा से आये सांस्कृतिक दलों ने प्रस्तुतियां दी. सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत दारोम दुरुंग (स्वागत गीत से हुई).

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