विवि में शोध की दशा व दिशा पर कोई विचार नहीं हो रहा : प्रो सुधाकर सिंह
रांची : रांची विवि स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में गुरुवार को अलोप होते आलोचक विषय पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बनारस हिंदू विवि के प्रो सुधाकर सिंह ने कहा कि आज विश्वविद्यालयों में शोध की दशा या दिशा क्या होनी चाहिए, इस पर विचार नहीं हो रहा. शोधार्थी गाइड की बात मानते […]
रांची : रांची विवि स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में गुरुवार को अलोप होते आलोचक विषय पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बनारस हिंदू विवि के प्रो सुधाकर सिंह ने कहा कि आज विश्वविद्यालयों में शोध की दशा या दिशा क्या होनी चाहिए, इस पर विचार नहीं हो रहा. शोधार्थी गाइड की बात मानते नहीं, बल्कि अपनी बात उनसे मनवा लेते हैं. हिंदी में हिंदी कहानी और महिला विमर्श पर खूब शोध हो रहे हैं, पर गूढ़ विषयों पर नहीं हो रहे क्योंकि वे कठिन हैं.
डॉ सिंह ने कहा कि आचार्य श्यामसुंदर दास के बाद वर्ष 1903 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती का संपादन संभाला. भाषा को संस्कारित और स्थिर करने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किया. उन्होंने तत्कालीन लेखकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि वे ऐसी हिंदी भाषा लिखें, जो व्याकरण सम्मत और तार्किक हो, पर उनका यह आह्वान बालमुकुंद गुप्त को नहीं भाया. लेकिन बालमुकुंद गुप्त आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के टक्कर के नहीं थे.
उन्होंने आत्माराम के नाम से उनकी आलोचना शुरू कर दी और आत्माराम की टेंटें के नाम से लेखमाला चलायी. उस समय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी कानपुर में रहकर सरस्वती पत्रिका का संपादन कर रहे थे. बालमुकुंद गुप्त की आलोचना से आहत होकर उन्होंने सरस्वती का संपादन छोड़ दिया और दौलतपुर चले आये.
बाद में जब पंडित गोविंद नारायण मिश्र ने उनके समर्थन में नौ अंकों में बंगवासी पत्र में लेखमाला चलायी और बालमुकुंद गुप्त के आक्षेपों का खंडन किया, तो उन्होंने फिर से सरस्वती का संपादन
संभाला. प्रो सुधाकर ने कहा कि पंडित गोविंद नारायण मिश्र हिंदी आलोचना के महापुरुष हैं. पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ नागेश्वर सिंह ने कहा कि आज जितने की जरूरत है, विद्यार्थी केवल उतना ही पढ़ते हैं. यह स्थिति ठीक नहीं है.