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झारखंड सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन बिल: गवर्नर के पास पहुंची थी 192 आपत्तियां सरकार से प्रस्ताव पर विचार को कहा

सरकार ने भेजा था सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन से संबंधित िबल रांची : सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का मामला फिलहाल लटक गया है. राज्यपाल द्रौपदी मुरमू ने एक्ट में संशोधन से संबंधित बिल पर विभिन्न राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों की ओर से उठाये गये सवालों को लेकर सरकार से फिर से इस पर विचार […]

सरकार ने भेजा था सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन से संबंधित िबल
रांची : सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का मामला फिलहाल लटक गया है. राज्यपाल द्रौपदी मुरमू ने एक्ट में संशोधन से संबंधित बिल पर विभिन्न राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों की ओर से उठाये गये सवालों को लेकर सरकार से फिर से इस पर विचार करने को कहा है.एक्ट में संशोधन के विरोध में 192 ज्ञापन राजभवन को भेजा गया था. राजभवन सचिवालय ने सभी ज्ञापन के साथ प्रस्ताव को सरकार के पास भेज दिया है और इस पर कार्रवाई करने को कहा है. सरकार से सारी आपत्तियों का अवलोकन कर पुनर्विचार करने को भी कहा गया है.
सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन से संबंधित बिल को राजभवन भेजे जाने के बाद विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया था. उनका कहना था कि संशोधन से आदिवासियों के अस्तित्व को खतरा है. उनकी पहचान मिट जायेगी. कई संगठनों ने संवैधानिक पहलुअों पर सवाल उठाते हुए इस पर आपत्ति जतायी थी.
राजभवन ने सरकार से सारी आपत्तियों का अवलोकन करने को कहा
इन मुद्दों पर दलों ने जतायी थी आपत्ति
सीएनटी एक्ट की धारा 21 अौर एसपीटी एक्ट की धारा 13 में परिवर्तन कर कृषि योग्य भूमि की प्रकृति न बदली जाये
आदिवासी संगठनों का मानना है कि इससे करीब 23% कृषि भूमि का स्वरूप बदल जायेगा, जो ठीक नहीं है
कृषि भूमि में बदलाव होने से यह छप्परबंदी जमीन की तरह हो जायेगी. कृषि पर इसका बुरा असर होगा जमीन के इर्द-गिर्द ही सारी सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक व्यवस्थाएं हैं, ऐसा होने से सब कुछ प्रभावित हो जायेगा
आदिवासी समाज की जमीन छीनी जायेगी
अब आगे क्या
राज्यपाल की ओर से पुनर्विचार के लिए विधेयक सरकार को भेजने के बाद इसमें संशोधन संभव है. सरकार चाहे, तो इसे इसी रूप में दोबारा राज्यपाल को भेज सकती है. हालांकि दोनों ही परिस्थितियों में सरकार को इस संबंध में विधानसभा को अवगत कराना होगा. राज्यपाल की आपत्ति के आलोक में कोई संशोधन होता है, तो ऐसी स्थिति में सदन के पटल पर बिल को रखना होगा. सरकार की ओर से दूसरी बार राज्यपाल को विधेयक भेजने पर उसे मंजूर करना बाध्यता होगी.
हंगामा व तोड़-फोड़ के बीच पास हुआ था बिल
पिछले वर्ष 23 नवंबर को सरकार एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव विधानसभा में लेकर आयी, तो इसका जोरदार विरोध हुआ. विधानसभा में तोड़फोड़ व हाथापाई हुई. बिल की कॉपियां भी फाड़ी गयी. स्पीकर पर विपक्षी विधायकों ने कागज व पिन तक फेंके थे. कुरसी व टेबुल फेंके गये थे.
विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष में भी उठे थे विरोध के स्वर
एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव पर सत्ता पक्ष में भी विरोध के स्वर उठे थे. भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुुन मुंडा, सांसद कड़िया मुंडा सहित कई नेताअों ने विरोध किया था. सरकार की सहयोगी आजसू प्रस्ताव के खिलाफ सड़क से सदन तक आवाज उठाती रही है. विपक्ष में झामुमो, झाविमो व कांग्रेस सहित वाम दलों के अलावा कई आदिवासी संगठनों ने पुरजोर विरोध किया था.
क्या था संशोधन का प्रस्ताव
सीएनटी की धारा 49 (1) में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, कोई भी जोत या जमीन मालिक सरकारी प्रयोजन को लेकर सामाजिक, विकासोन्मुखी व जन कल्याणकारी आधारभूत संरचनाओं की परियोजनाओं के लिए जमीन हस्तांतरित कर सकेंगे. हस्तांतरित जमीन का मूल्य वर्तमान भू-अर्जन अधिनियम के अंतर्गत तय मूल्य से कम नहीं होगा. जमीन मालिक सड़क, केनाल, रेलवे, केबुल, ट्रांसमिशन, वाटर पाइप, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, पंचायत भवन, अस्पताल व आंगनबाड़ी के लिए जमीन दे सकेंगे.
धारा-71 (ए) की उप धारा-2 को समाप्त करने का फैसला किया गया है. अध्यादेश प्रारूप में भी इसे समाप्त करने का प्रावधान किया गया था. इस उप धारा के समाप्त होने से आदिवासियों की जमीन मुआवजा के आधार पर किसी को हस्तांतरित नहीं की जा सकेगी.
अधिनियम की धारा 49 (2) में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, जिस प्रायोजन के लिए जमीन का हस्तांतरण हुआ है, उससे भिन्न उपयोग नहीं हो सकेगा. जिस प्रयोजनार्थ भूमि हस्तांतरित की गयी है, यदि उसके लिए पांच साल तक उपयोग नहीं होगा, तो वह मूल रैयत या उसके विधिक उतराधिकारी को वापस हो जायेगी. इसके लिए पूर्व में हस्तांतरण संबंधी दी गयी राशि भी वापस नहीं होगी.
एसपीटी एक्ट में संशोधन
एसपीटी की धारा-13 में संशोधन किया गया है. इसके स्थान पर धारा 13 (क) स्थापित किया गया है.इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार समय-समय पर ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों में भूमि के गैर कृषि उपयोग को विनियमित करने के लिए नियम बनायेगी. राज्य सरकार गैर कृषि लगान लगायेगी. इसकी मानक दर भूमि के बाजार मूल्य के एक प्रतिशत से अधिक नहीं होगी. मानक दर अधिसूचना की तिथि से पांच साल के लिए मान्य होगी.
नगरपालिका सीमा के भीतर व बाहर स्थित अपनी भूमि के कृषि उपयोग से संबद्ध गैर कृषि क्रियाकलापों के लिए काश्तकार द्वारा कोई लगान भुगतान नहीं होगा. वैसी भूमि पर गैर कृषि लगान लगाया जायेगा, जिसका उपयोग नगर पालिका या नगर निगम क्षेत्रों के भीतर या बाहर गैर कृषि प्रयोजन के लिए किया जाता है. परंतु, कृषि से गैर कृषि उद्देश्यों के लिए परिवर्तित भूमि पर रैयतों का स्वामित्व (मालिकाना हक) पूर्व की भांति बना रहेगा.
बचते रहे अधिकारी
इस मुद्दे पर अफसरों ने चुप्पी साध रखी है. राज्य सरकार के वरीय अधिकारी इस बारे में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार करते रहे. पूछने पर अफसरों ने छुट्टी होने की बात कही. मंगलवार से पहले इस बारे में कुछ भी बताने से इनकार किया.
सरकार दूसरा हथकंडा न अपनाए
राज्यपाल ने यदि बिल लौटा है दिया है, तो झारखंडी जन अकांक्षाओं के अनुरूप काम हुआ है. राज्य में आक्रोश था. सरकार ने जनविरोधी फैसला किया था. सरकार अब इसे लागू कराने के लिए कोई दूसरा हथकंडा न अपनाये. झामुमो इसको कतई बरदाश्त नहीं करेगा. – हेमंत सोरेन, प्रतिपक्ष के नेता
दोबारा प्रयास नहीं करे सरकार
राज्यपाल ने झारखंड की जनभावनाओं का सम्मान किया है. अब राज्य सरकार को भी जनभावनाओं का सम्मान करना चाहिए. सरकार को दोबारा संशोधन का प्रयास नहीं करना चाहिए़- बाबूलाल मरांडी, झाविमो प्रमुख
आधिकारिक सूचना नहीं
एक्ट में संशाेधन का बिल वापस होने का मामला सरकार से जुड़ा है. पार्टी स्तर पर इसकी कोई आधिकारिक सूचना नहीं है.
-प्रतुल शाहदेव, प्रवक्ता, भाजपा

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