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जानिए क्‍यों बेहतर रैंक के बाद भी राज्य छोड़ रहे हैं मेडिकल छात्र

राजीव पांडेय रांची : नीट एग्जाम में राज्य के दर्जनों विद्यार्थियों काे इस साल बेहतर रैंक मिला है, लेकिन बेहतर रैंक होने के बावजूद भी वह अपने राज्य में नामांकन नहीं ले रहे हैं.अधिकांश विद्यार्थी महाराष्ट्र के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करने जा रहे हैं. राजधानी के दो चिकित्सकों के बेटा भी राज्य छोड़ कर […]

राजीव पांडेय
रांची : नीट एग्जाम में राज्य के दर्जनों विद्यार्थियों काे इस साल बेहतर रैंक मिला है, लेकिन बेहतर रैंक होने के बावजूद भी वह अपने राज्य में नामांकन नहीं ले रहे हैं.अधिकांश विद्यार्थी महाराष्ट्र के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करने जा रहे हैं. राजधानी के दो चिकित्सकों के बेटा भी राज्य छोड़ कर चले गये हैं. शिशु चिकित्सक एवं डिस्ट्रिक आइएमए के सचिव डॉ अमित मोहन के पुत्र समक्ष मोहन को ऑल इंडिया में 438 रैंक आया था. सामान्य केटेगरी में 336 रैंक था.
इस रैंक पर समक्ष को राज्य के किसी भी मेडिकल कॉलेज में नामांकन मिल जाता, लेकिन वह मुंबई में नामांकन ले रहा है. वहीं राजधानी के ही फिजिसियन डॉ एमके बदानी केे पुत्र यशस्वी कुमार को नीट के सामान्य केटेगरी में 998 रैंक आया था. यशस्वी को भी राज्य के किसी मेडिकल कॉलेज में नामांकन मिल जाता, लेकिन वह भी कोलकाता में नामांकन ले रहा है. हालांकि दूसरी काउंसलिंग में उसे महाराष्ट्र के मेडिकल कॉलेज में नामांकन मिलने की उम्मीद है. अच्छे रैंक लाने वाले विद्यार्थियों का यह उदाहरण मात्र है.
राज्य छोड़कर जानेवाले विद्यार्थियों को एमबीबीएस के साथ-साथ पीजी की चिंता भी है. राज्य के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद पीजी में नामांकन लेना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यहां इसकी पीजी की सीट कम है. वहीं महाराष्ट्र आदि कॉलेज में पीजी में नामांकन आसानी से मिल जाता है. पीजी में नामांकन लेने के लिए कई राज्यों में स्थानीयता या एमबीबीएस पढ़ाई करनेवाले कॉलेज काे आधार बनाया जाता है. राज्य के बाहर नामांकन ले लेने से पीजी करने में आसानी होती है.
महाराष्ट्र भेजने की मुख्य वजह है कि राज्य के शैक्षणिक स्तर में गिरावट है. झारखंड में क्वालिटी ऑफ एजुकेशन नहीं है. शिक्षक कम हैं. किसी तरह काम चलाया जाता है. पीजी करने में दिक्कत होती है. यही कारण है कि बेटे का मुंबई में नामांकन करा रहा हूं.
डॉ अमित मोहन, शिशु रोग विशेषज्ञ
यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि हमारे यहां मेडिकल एजुकेशन में गिरावट आयी है. अच्छे शिक्षक नहीं हैं. शिक्षक भी कम है. झारखंड अलग राज्य हुए 17 साल हो गये, लेकिन एक भी मेडिकल कॉलेज नहीं बढ़ पाया. पीजी में नामांकन के समय भी दिक्कत होती है.
डॉ एके बदानी, फिजिसियन
झारखंड से महंगी है महाराष्ट्र की पढ़ाई
झारखंड के मेडिकल कॉलेज में फीस कम है, बावजूद इसके विद्यार्थी अधिक फीस देकर अन्य राज्य में जाना चाहते हैं. राज्य के मेडिकल कॉलेज में सालाना फीस हॉस्टल चार्ज के साथ 5000 से 6000 रुपये है. वहीं महाराष्ट्र के सरकारी कॉलेज में सालाना फीस 70,000 से 80,000 रुपये है.

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