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कौड़ी के मोल कंपनी-सरकार अधिग्रहित करती है जमीन, रैयतों के पक्ष में सीएनटी-एसपीटी में संशोधन हो : मरांडी

रांची : झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने रैयतों के पक्ष में सीएनटी-एसपीटी में संशोधन की मांग की है़ श्री मरांडी ने शनिवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सरकार या कंपनियां कौड़ी के भाव जमीन अधिग्रहित करती है़ कोई किसान अपनी मर्जी से जमीन नहीं देना चाहता है, सरकार का दबाव होता है़ […]

रांची : झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने रैयतों के पक्ष में सीएनटी-एसपीटी में संशोधन की मांग की है़ श्री मरांडी ने शनिवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सरकार या कंपनियां कौड़ी के भाव जमीन अधिग्रहित करती है़ कोई किसान अपनी मर्जी से जमीन नहीं देना चाहता है, सरकार का दबाव होता है़ 10-20 वर्ष कंपनी चलती है, उसके बाद बंद हो जाती है, तो फिर करोड़ों के दाम में बेची जाती है़ उसका व्यावसायिक उपयोग होता है़ वही जमीन करोड़ों में बिकती है़.

इसमें रैयतों की भी हिस्सेदारी होनी चाहिए़ सीएनटी-एसपीटी एक्ट में इस दिशा में संशोधन होना चाहिए़ सरकार लोगों से जमीन लेने के लिए नहीं, बल्कि रैयतों के हित में संशोधन करे़ श्री मरांडी ने इस बाबत मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र भी लिखा है़ श्री मरांडी ने हाइकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट ने सरकार से कहा था कि मूल रैयतों के हित को ध्यान में रखते हुए एसपीटी एक्ट में संशोधन करे़ं वर्ष 2013 में हाइकोर्ट का फैसला आया था, लेकिन आदेश के तीन वर्ष बाद भी सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की़.

एसपीटी एक्ट की ऐसी विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए, जिससे रैयतों का अहित हो रहा हो़ उन्होंने कहा कि आवास बोर्ड की जमीन गरीबों को आवास देने के लिए अधिग्रहित हुई थी, लेकिन उसकाे व्यावसायिक कार्यों के लिए बोर्ड ने बेचा़ इसी तरह खेल गांव की जमीन पशुपालन के लिए अधिग्रहित की गयी थी, लेकिन वहां कॉप्लेक्स, जेल आदि बने़ यहां तक ठीक है कि सरकार ने उपयोग किया, लेकिन इस जमीन पर नागार्जुना कंपनी ने फ्लैट बना कर बेच दिया़ एचइसी, बोकारो की जमीन में भी ऐसा हो रहा है़ श्री मरांडी ने कहा कि यह सब रुकना चाहिए़ रैयतों को उनका हक मिलना चाहिए़ मौके पर झाविमो नेता केके पोद्दार, सरोज सिंह व संतोष कुमार भी मौजूद थे़.

क्या है मामला
झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने बताया कि देवघर में डाबर इंडिया लिमिटेड के लिए वर्ष 1943-44 में 15़ 39 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गयी थी़ 12-13 वर्ष पहले यह कंपनी बंद हो गयी़ डाबर कंपनी के मालिक ने वर्ष 2004 के आसपास इस जमीन को निर्भय शाहाबादी व अन्य को करोड़ों रुपये में बेचने का फैसला किया़.

निबंधन पर तत्कालीन उपायुक्त ने रोक लगा दी़ इसके बाद शाहाबादी ने हाइकोर्ट में अपील की़ हाइकोर्ट ने पाया कि जमीन की प्रकृति अब बसौढ़ी हो गयी है, इसलिए डाबर इंडिया को अधिकार है कि वह जमीन बेचे़ इसके बाद जमीन का निबंधन हो गया़ श्री मरांडी ने कहा कि ऐसा सीएनटी के इलाके वाली जमीन में भी हो रहा है़ देवघर में डाबर इंडिया की जमीन निर्भय शाहाबदी व अन्य लोगों ने रिसॉर्ट बनाने के लिए खरीदी है़ रैयतों से यह जमीन 3182 रुपये प्रति एकड़ अधिग्रहित की गयी थी. एसपीटी की धारा-53 में प्रावधान है कि जिस प्रयोजन के लिए जमीन अधिग्रहित हुई, यदि पांच वर्षों तक उपयोग नहीं हुआ, तो रैयतों को लौटा दिया जायेगा़.

डाबर इंडिया ने 20 वर्षों से अधिक समय तक कंपनी चलायी, फिर बंद कर दी. इसके बाद जमीन की प्रकृति बदल गयी़ कानून जमीन डाबर इंडिया की हो गयी़ हाइकोर्ट ने आदेश पारित किया कि निबंधन तो कानून हो सकता है, लेकिन खरीदार रैयतों को भी 15-15 लाख दे़ इसके साथ ही सरकार से कहा कि ऐसी परिस्थितियों में मूल रैयतों के हित सुरक्षित हों.

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