2015-16 की सीएजी की रिपोर्ट विस में पेश, एमओयू 3.51 लाख करोड़ का, 3.8% ही जमीन पर

रांची : राज्य में 2001 से 2016 के बीच 3.51 लाख करोड़ रुपये के निवेश के लिए किये गये एमओयू में से सिर्फ 3.8% ही जमीन पर उतर सका है. 48% एमओयू विभिन्न कारणों से रद्द कर दिये गये. नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेशकों को समय पर सुविधाएं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 13, 2017 7:12 AM
रांची : राज्य में 2001 से 2016 के बीच 3.51 लाख करोड़ रुपये के निवेश के लिए किये गये एमओयू में से सिर्फ 3.8% ही जमीन पर उतर सका है. 48% एमओयू विभिन्न कारणों से रद्द कर दिये गये. नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेशकों को समय पर सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पायी. खराब विधि व्यवस्था, बिजली, पानी सहित अन्य कारणों से एमओयू होने के बाद भी स्टील के क्षेत्र में 1.60 लाख करोड़ रुपये का निवेश नहीं हो सका. रिपोर्ट में कहा गया है कि औद्योगिक निवेश की नीतियां उद्योगों को आकर्षित नहीं कर सकी. खनिजों के मामले में धनी पड़ोसी राज्यों में निवेश की स्थिति झारखंड से बेहतर है.

रिपोर्ट के अनुसार, इज ऑफ डूइंग बिजनेस में राज्य को तीसरा स्थान दिया गया. हालांकि इसके लिए औद्योगिकीकरण को जमीनी हकीकत से जोड़ कर नहीं देखा गया. औद्योगिकीकरण के मुद्दे पर विचार-विमर्श के दौरान सरकार ने यह माना कि जमीन से संबंधित कानून और फॉरेस्ट क्लीयरेंस औद्योगिकीकरण की दिशा में बड़े बाधक हैं.
2001 व 2012 की नीति को बनाया आधार : सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने के लिए राज्य में 2001 में औद्योगिक नीति बनी. इसके बाद 2012 में दूसरी और 2016 में तीसरी नयी औद्योगिक नीति बनी. राज्य में औद्योगिकीकरण कि स्थिति का आकलन करने के लिए 2001 और 2012 की औद्योगिक नीति को आधार बनाते हुए सभी औद्योगिक विकास प्राधिकारों और छह जिला उद्योग केंद्रों के दस्तावेज का ऑडिट किया गया. पाया गया कि राज्य गठन के बाद 3.51 लाख करोड़ के निवेश के लिए 79 एमओयू किये गये. इनमें अधिकतर स्टील और सीमेंट के क्षेत्र में निवेश से संबंधित थे. 0.63 लाख करोड़ से जुड़े 38 एमओयू रद्द कर दिये गये. 2.26 लाख करोड़ के निवेश से जुड़े 23 एमओयू में से जुलाई 2016 तक एक भी कारखाना नहीं लगा. बाकी बचे 18 एमओयू में 0.62 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव था. इनमें से जुलाई 2016 तक सिर्फ 0.33 लाख करोड़ रुपये का ही निवेश हो सका.
सीएजी ने बताये कारण
सीएजी की रिपोर्ट में निवेश से संबंधित प्रस्तावों के विफल होने के कारण सीएनटी-एसपीटी एक्ट, सिंगल विंडो सिस्टम का सही तरीके से काम नहीं करना, सरकार की इच्छा शक्ति और नक्सली घटनाएं बताये गये हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 24 में से 22 जिले नक्सल प्रभावित हैं. राज्य में नौ ग्रुप सक्रिय हैं. 2011-16 के बीच 865 नक्सली घटनाएं हुईं. अगस्त 2016 तक 584 लोग मारे गये.
पड़ोसी राज्यों के मुकाबले निराशाजनक स्थिति
सीएजी ने रिपोर्ट में ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के मुकाबले झारखंड की स्थिति को निराशाजनक बताया है. कहा गया है कि वर्ष 2001-16 की अवधि में ओड़िशा और छत्तीसगढ़ में एक भी एमओयू रद्द नहीं हुआ. झारखंड में 79 में से 48 प्रतिशत यानी 38 एमओयू रद्द हो गये. सिर्फ 18 में ही उत्पादन शुरू हुआ. ओड़िशा में 82 एमओयू में से 46 ने उत्पादन शुरू कर दिया है. 46 मामलों में उद्योगों को स्थापित करने का काम शीघ्र ही पूरा हो जायेगा. छत्तीसगढ़ में 121 एमओयू किये. 60 में उत्पादन शुरू हो चुका है. शेष 61 में जल्द उत्पादन शुरू होगा.
सरकारी कामकाज पर केस स्टडी
सीएजी ने मेसर्स राज रिफ्रेक्ट्रीज के मामले में सरकारी रवैये का उदाहरण पेश किया है. कहा है कि इस कंपनी के साथ 68.50 करोड़ की लागत से स्पंज आयरन और कैपटिव पावर प्लांट लगाने को लेकर जून 2004 में एमओयू हुआ था. 200 लोगों के लिए रोजगार सृजन का अनुमान था. कंपनी को 50 एकड़ जमीन, 300 क्यूबिक मीटर प्रति घंटा पानी, लौह अयस्क, डोलामाइट, कोकिंग कोल आदि की जरूरत थी. जमीन चिह्नित कर ली गयी थी. लेकिन सरकार ने पानी और खनिजों आदि की व्यवस्था नहीं की. सरकार ने 2010 जुलाई में इस कंपनी का एमओयू रद्द कर दिया. कंपनी ने अप्रैल 2012 में फिर से विचार करने का अनुरोध किया. पर सरकार ने जून 2016 तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.

Next Article

Exit mobile version