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ट्राइबल स्टडीज में भी है कैरियर… जानिए कैसे

आदिवासियों यानी ट्राइबल की संस्कृति, संस्कार और जीवन का अध्ययन मानवशास्त्र से जुड़े अध्येताओं के लिए सदियों से काफी रुचिकर रहा है. ब्रिटेन सहित यूरोपीय देशों में जहां उनके जीवन के रहस्यों को लेकर काफी अध्ययन हुए हैं, वहीं भारत के युवाओं में इस ओर दिलचस्पी बढ़ी है और रोजगार के मौके भी सामने आ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2017 2:07 PM
आदिवासियों यानी ट्राइबल की संस्कृति, संस्कार और जीवन का अध्ययन मानवशास्त्र से जुड़े अध्येताओं के लिए सदियों से काफी रुचिकर रहा है. ब्रिटेन सहित यूरोपीय देशों में जहां उनके जीवन के रहस्यों को लेकर काफी अध्ययन हुए हैं, वहीं भारत के युवाओं में इस ओर दिलचस्पी बढ़ी है और रोजगार के मौके भी सामने आ रहे हैं.
विनीत उत्पल
आदिवासी अध्ययन आज के दौर में युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा है. शहरी वातावरण से दूर पहाड़ों और जंगलों के बीच रह रहे इन लोगों की संस्कृति, भाषा, आचार-व्यवहार को जानने में लोगों में दिलचस्पी बढ़ रही है.
आदिवासी इलाके सिर्फ आर्थिक रूप से पिछड़े ही नहीं हैं, बल्कि गरीबी, भुखमरी, बीमारी सहित तमाम मामले उन्हें परेशान करते हैं. भारत के पूर्वोत्तर इलाके से लेकर बिहार, झारखंड, ओड़िशा, छतीसगढ़, आंध्रप्रदेश में आदिवासियों की संख्या अधिक है, वहीं नक्सली प्रभावित क्षेत्र भी हैं. सरकार की तमाम योजनाओं और कदम के बावजूद आज भी वे देश की मुख्यधारा में नहीं जुड़ पाये हैं. ऐसे में उनकी संस्कृति, उनकी पहचान, धर्म, जाति व्यवस्था को जानना जरूरी हो जाता है.
विकास से कोसों दूर इन आदिवासियों की जीवन शैली को उत्कृष्ट बनाने के लिए एक और जहां स्थानीय सरकार कार्य कर रही है, वहीं कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियां कार्य कर रही हैं. ऐसे में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को किसी भी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए रिसर्च की आवश्यकता पड़ती है और अध्ययन करना पड़ता है. इसके लिए वे ट्राइबल स्टडीज से जुड़े लोगों पर निर्भर होते हैं और यही कारण है कि भारत के कई संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में ट्राइबल स्टडीज से संबंधित कोर्स संचालित किये जा रहे हैं और वे युवाओं को लुभा रहे हैं.
कैसा है कोर्स
ट्राइबल स्टडीज को लेकर भारत सहित तमाम देशों में कई संस्थान और विश्वविद्यालय में कई तरह के कोर्स उपलब्ध हैं. इसमें कहीं सर्टिफिकेट, पीजी डिप्लोमा या फिर मास्टर डिग्री है. इसके अलावा, एमफिल और पीएचडी के कोर्स भी संचालित किये जाते हैं. इन कोर्सों का मकसद छात्रों में जहां अकादमिक क्वालिटी को बढ़ावा देना है, वहीं ट्राइबल के बीच उनकी भागीदारी, नेतृत्व, संस्कृति आदान-प्रदान और सेवा से जुड़े मौकों से अवगत कराना है. आदिवासी समुदाय और उनकी भाषाओं को लेकर भी छात्र इन कोर्सों के तहत पढ़ाई करते हैं. पढ़ाई के दौरान छात्र आदिवासियों को लेकर हुए रिसर्च, सरकारी योजनाओं की जानकारी हासिल करते हैं, वहीं उनकी जिंदगी कैसे बेहतर हो, इन बातों से भी वे अवगत होंगे.
छात्रों को फील्ड रिसर्च करने का मौका मिलता है और वे उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास से रूबरू होते हैं. आदिवासियों के पास मौजूद प्राकृतिक संसाधनों, कृषि से जुड़े मामलों, आदि की भी जानकारी हासिल करते हैं. इसके साथ ही, आदिवासी लोगों के सामाजिक और आर्थिक जिंदगी कैसे बेहतर हो, इसे लेकर वे तमाम संस्थाओं से रूबरू होते हैं और ट्रेनिंग प्राप्त करते हैं. उनकी संस्कृति को अच्छे से समझने के लिए उनके साहित्य का भी अध्ययन करते हैं.
कहां होगी पढ़ाई
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड में स्कूल ऑफ कल्चरल स्टडीज के तहत ट्राइबल एंड कस्टोमेरी लॉ के अलावा ट्राइबल फोकलोर, लैंग्वेज एंड लिटरेचर जैसे सेंटर हैं, जहां कई तरह के कोर्स हैं. रांची विश्वविद्यालय के अलावा सिद्धू कानू विश्वविद्यालय, दुमका में भी इस विषय की पढ़ाई होती है.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुंबई में मास्टर ऑफ आर्ट्स इन सोशल वर्क (दलित एंड ट्राइबल स्टडीज एंड एक्शन) नामक कोर्स संचालित किया जा रहा है. वहीं अरुणाचल प्रदेश स्थित राजीव गांधी यूनिवर्सिटी स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राइबल स्टडीज एंड रिसर्च में सर्टिफिकेट कोर्स उपलब्ध हैं. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राइबल स्टडीज एंड रिसर्च में काफी शोध हो रहा है.
कहां मिलेगी नौकरी
ट्राइबल स्टडीज से संबंधित कोर्स करने के बाद छात्रों के पास अपार मौके हैं. वे आदिवासियों और दलित से जुड़े आंदोलन में हिस्सा बनकर समाज में बदलाव कि दिशा में काम कर सकते हैं और अपना कैरियर बना सकते हैं.
इसके लिए वे इन इलाकों में कार्य कर रहे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एनजीओ में अपना योगदान दे सकते हैं. कुछ समय जमीनी काम करने के बाद वे शैक्षणिक गतिविधियों यानी अध्ययन-अध्यापन में आ सकते हैं. वे आदिवासियों के बीच कार्य कर रही एजेंसी में बतौर सलाहकार नियुक्त हो सकते हैं और उन्हें नीतियां बनाने में मदद कर सकते हैं.
महत्वपूर्ण संस्थान
– सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड, रांची
– रांची विश्वविद्यालय, रांची
– सिद्धू कानू विश्वविद्यालय, दुमका
– टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुंबई
– हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला

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