रोष: आदिवासी सरना महासभा ने सीएम व टीएसी सदस्यों का पुतला फूंका, आदिवासियों को लड़ा उनकी जमीन लेना चाहती है सरकार

रांची : आदिवासी सरना महासभा की केंद्रीय समिति ने अलबर्ट एक्का चौक पर भू-अर्जन कानून 2013 में संशोधन के खिलाफ मुख्यमंत्री रघुवर दास व टीएसी सदस्यों का पुतला फूंका़ समिति के मुख्य संयोजक पूर्व विधायक देवकुमार धान ने कहा कि सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन का विरोध आदिवासी समाज के हरेक अंग, सरना व […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 29, 2017 7:27 AM
रांची : आदिवासी सरना महासभा की केंद्रीय समिति ने अलबर्ट एक्का चौक पर भू-अर्जन कानून 2013 में संशोधन के खिलाफ मुख्यमंत्री रघुवर दास व टीएसी सदस्यों का पुतला फूंका़ समिति के मुख्य संयोजक पूर्व विधायक देवकुमार धान ने कहा कि सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन का विरोध आदिवासी समाज के हरेक अंग, सरना व ईसाई आदिवासियों ने मिल कर किया. इसलिए सरकार ने भू अर्जन कानून में संशोधन को सफल करने के लिए व समाज को बांटने के लिए धर्मांतरण कानून लाया, ताकि आदिवासी आपस में लड़ते रहें और सरकार उनकी जमीन लूटती रहे़.
श्री धान ने बताया कि भू अर्जन कानून 2013 के अनुसार जमीन लेने से पूर्व जमीन मालिकों की सहमति जरूरी है. यानी कि सरकार ग्रामीणों की इच्छा के विरुद्ध भू अर्जन नहीं कर सकती है़ लेकिन सरकार ने 12 अगस्त को इस कानून में संशोधन कर भू-स्वामियों से सहमति लेने का प्रावधान हटा दिया है़ अब सरकार भूस्वामी की अनुमति के बिना और ग्रामीणों की इच्छा के विरुद्ध जमीन ले सकती है़.

मौके पर पूर्व विधायक बहादुर उरांव, वीरेंद्र भगत, बुधवा उरांव, जैवनी उरांव, कैलाश टोप्पो, छेदी मुंडा, लील मोहन मुंडा, राजेंद्र उरांव, धनेश्वर टोप्पो, सोमनाथ उरांव, चमरी उरांव, महिमा उरांव, लीलावती मुंडा, मुन्नी मुंडा, बलदेव, कृष्णा, सुरेश उरांव, अरविंद उरांव, महानंद उरांव, मंगरा उरांव, बजरंग उरांव, अजय उरांव, तुलसी उरांव आदि थे.

ग्राम सभा व पंचायत की भूमिका नकारी गयी : सरकार ने इसमें एक और संशोधन किया है. कोई भी भू-अर्जन से पूर्व सामाजिक समाघात निर्धारण अध्ययन करा कर पता लगाना था कि इस भू-अर्जन से किन-किन लोगों पर और क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा़ यह सामाजिक समाघात निर्धारण ग्राम सभा व पंचायत के परामर्श से करना था, पर सरकार ने 12 अगस्त के संशोधन द्वारा यह प्रावधान समाप्त कर दिया है़ अब सरकार को भू-अर्जन से पूर्व ग्राम सभा व पंचायत से परामर्श लेने की जरूरत नही़ं. सरकार ने भू-अर्जन कानून 2013 में संशोधन कर ग्रामसभा व पंचायत व्यवस्था को पेसा कानून व संविधान द्वारा दिये गये अधिकारों को खत्म कर दिया है़ यह सरकार आदिवासियों की जमीन लूटने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है़

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