- अपनी पुरानी प्रतिष्ठा बचाने में जुटा हुआ है मनोरोगियों का इलाज करनेवाला संस्थान रिनपास
- बहाली बंद, कुछ चिकित्सकों के भरोसे पूरा संस्थान, डॉक्टरों और पारा मेडिकल स्टाफ की कमी
- प्रभारी निदेशकों से चल रहा काम, संस्थान में ही चार-चार पूर्व निदेशक, चल रही कई तरह की जांच
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विडंबना: 10 साल से स्थायी निदेशक खोज रहा है रिनपास
रांची: रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) अपनी पुरानी प्रतिष्ठा बचाने में लगा हुआ है. आये दिन मरीजों की संख्या बढ़ रही है. करीब एक लाख मरीजों का इलाज हर साल यहां हो रहा है. चिकित्सकों और पारा मेडिकल स्टाफ की कमी हो रही है. बहाली बंद है. कुछ चिकित्सकों के भरोसे […]
रांची: रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) अपनी पुरानी प्रतिष्ठा बचाने में लगा हुआ है. आये दिन मरीजों की संख्या बढ़ रही है. करीब एक लाख मरीजों का इलाज हर साल यहां हो रहा है. चिकित्सकों और पारा मेडिकल स्टाफ की कमी हो रही है. बहाली बंद है. कुछ चिकित्सकों के भरोसे पूरा संस्थान है. मेंटल हेल्थ एक्ट के तय प्रावधानों को पूरा करने की कोशिश हो रही है. पिछले 10 साल से संस्थान के पास स्थायी निदेशक नहीं है.
31 जुलाई 2007 को स्थायी निदेशक ब्रिगेडियर पीके चक्रवर्ती के सेवानिवृत्त होने के बाद से संस्थान प्रभारी निदेशकों के भरोसे चल रहा है. संस्थान में ही चार-चार पूर्व निदेशक हैं. पूर्व के निदेशकों के पर कई तरह की जांच चल रही है. चिकित्सा के साथ-साथ शिक्षा का हाल बेहाल है. छात्रों का एडमिशन प्रभावित है. एडमिशन प्रक्रिया में विवाद के बाद नये सिरे के परीक्षा ली गयी है. इसके बावजूद आज भी मनोरोगियों के परिजनों को पहली पसंद राज्य का यह मनो चिकित्सा संस्थान है. यहां मरीजों को बेहतर इलाज के साथ-साथ दवाएं भी मुफ्त दी जा रही हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम समय-समय पर इसका निरीक्षण करती है. सुप्रीम कोर्ट की टीम मॉनिटरिंग कर रही है. राज्य सरकार द्वारा गठित प्रबंध समिति की देखरेख में संचालन हो रहा है.
1795 में बना था संस्थान
मनोरोगियों के लिए इस अस्पताल का निर्माण मुंगेर (संयुक्त बिहार) में गंगा नदी के तट पर 1795 में हुआ था. नवंबर 1821 में इसका पटना कॉलेजिएट स्कूल में स्थापित कर दिया गया. इसके बाद अप्रैल 1925 में इसकी स्थापना कांके में हुई. कांके में इसका नाम ल्यूनेटिक एसाइलम से इंडियन मेंटल हॉस्पिटल किया गया. इस वक्त करीब 110 पुरुष और 53 महिला मरीज यहां भर्ती थे. उस वक्त बांग्लादेश और ओड़िशा के मरीज भी यहां भर्ती थे. 31 दिसंबर 1925 को भर्ती मरीजों की संख्या 1226 हो गयी थी. आजादी के बाद राज्य सरकार ने इसका नाम 30 अगस्त 1958 को रांची मानसिक आरोग्यशाला (आरएमए) कर दिया. यहां बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा की मरीजों को भर्ती किया जाता था. 1996 में मरीजों को सुविधा नहीं मिलने की शिकायत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. 11 नवंबर 1997 से इसका संचालन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की देखरेख में होने लगा. 1998 में इसका नाम आरएमए से बदल कर रिपनास कर दिया गया.
स्थापना दिवस आज
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