कानूनी मामले में समय पर जवाब नहीं देते सरकारी विभाग
रांची : सरकार के विभिन्न विभाग, कोर्ट में चल रहे मामले से संबंधित सूचनाएं व तथ्य मांगे जाने के लिए लिखी चिट्ठी या संवाद का समय पर जवाब नहीं देते. इस वजह से संबंधित मामले में महाधिवक्ता को सरकार का पक्ष रखने तथा शपथपत्र तैयार करने में विलंब के अलावा परेशानी भी होती है. महाधिवक्ता […]
रांची : सरकार के विभिन्न विभाग, कोर्ट में चल रहे मामले से संबंधित सूचनाएं व तथ्य मांगे जाने के लिए लिखी चिट्ठी या संवाद का समय पर जवाब नहीं देते. इस वजह से संबंधित मामले में महाधिवक्ता को सरकार का पक्ष रखने तथा शपथपत्र तैयार करने में विलंब के अलावा परेशानी भी होती है. महाधिवक्ता अजीत कुमार ने न्यायिक पदाधिकारियों व अपर लोक अभियोजक को इस संबंध में चिट्ठी लिखी है. वहीं इसकी कॉपी सभी सरकारी विभागों सहित सभी जिलों के उपायुक्तों तथा पुलिस अधीक्षक को भेजी गयी है.
पत्र में क्या लिखा है महाधिवक्ता ने
महाधिवक्ता ने लिखा है कि उन्हें सूचना मिल रही है कि न्यायिक पदाधिकारियों तथा अपर लोक अभियोजक के कहने या मांगे जाने पर भी विभिन्न विभाग व इनसे जुड़े कार्यालय कानूनी मामले में समय पर जरूरी सूचनाएं व तथ्य नहीं देते. जबकि इसके लिए सभी विभागों में नोडल अॉफिसर होते हैं.
इससे हाइकोर्ट में चल रहे मामलों में अनावश्यक विलंब होता है तथा बार-बार सुनवाई रद्द होने पर कोर्ट भी खिन्न होता है. न्यायिक पदाधिकारियों व अपर लोक अभियोजक को महाधिवक्ता ने निर्देश दिया है कि जब कभी सूचना मिलने में विलंब हो, तो आप संबंधित विभाग के नोडल पदाधिकारी से संपर्क करें. इसके बाद भी रिस्पांस न मिले, तो स्टेट इंपावर्ड कमेटी में इसकी शिकायत करें. शिकायत दर्ज होने के बाद महाधिवक्ता का कार्यालय खुद ही संबंधित विभाग से संपर्क करेगा तथा मामला कमेटी के समक्ष अाने पर संबंधित विभाग के अधिकारियों पर जिम्मेवारी तय करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की जायेगी.
दूसरे पक्ष को होता है लाभ
ऐसे कई दृष्टांत हैं, जब सरकारी विभाग सरकारी पक्ष को कमजोर करने तथा दूसरे पक्ष को लाभ दिलाने के लिए कानूनी मामलों में सुस्त रवैया अपनाते हैं या गलत तथ्य प्रस्तुत करते हैं. पूर्व में खाद्य आपूर्ति विभाग ने कोल्हापुर की चीनी कंपनी वारणा शुगर का आपूर्ति आदेश यह कह कर रद्द कर दिया था कि कंपनी ने एकरारनामा व निविदा की शर्तों का उल्लंघन किया है. पर हाइकोर्ट की सिंगल बेंच से आदेश बहाल कर दिये जाने पर विभाग ने इसे डबल बेंच में चुनौती तक नहीं दी. उधर, सहकारिता विभाग के विभागीय अधिकारी धर्मदेव मिश्र व अन्य बनाम झारखंड राज्य व अन्य (रिट याचिका संख्या डब्ल्यूपी (एस) 4328/2010) मामले में एक ही अधिवक्ता ने दोनों पक्षों की याचिका व प्रति शपथ पत्र तैयार किया था. इसमें सरकार की ओर से जो प्रति शपथ पत्र उन्होंने दायर किया था, उसमें जान-बूझ कर अनेकों त्रुटियां रखी थी तथा तथ्यों को छिपाया व जरूरी अनुलग्नक (एनेक्सचर) संलग्न नहीं किया था, ताकि सरकार का पक्ष कमजोर हो जाये. इन सारी बातों का जिक्र उक्त मामले की विभागीय टिप्पणी में दर्ज है. ऐसे कई उदाहरण हैं.