रांची: आदिवासी जन परिषद द्वारा सेलिब्रेशन बैंक्वेट हॉल, करमटोली में करम मिलन समरोह का आयोजन हुआ, जिसमें पश्चिम बंगाल के जनजातीय मामलों के मंत्री जेम्स कुजूर ने कहा कि आदिवासियों की संस्कृति ही मूल धर्म है़ संस्कृति के बिना धर्म की परिकल्पना नहीं की जा सकती़ आदिवासियों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सांस्कृतिक […]
रांची: आदिवासी जन परिषद द्वारा सेलिब्रेशन बैंक्वेट हॉल, करमटोली में करम मिलन समरोह का आयोजन हुआ, जिसमें पश्चिम बंगाल के जनजातीय मामलों के मंत्री जेम्स कुजूर ने कहा कि आदिवासियों की संस्कृति ही मूल धर्म है़ संस्कृति के बिना धर्म की परिकल्पना नहीं की जा सकती़ आदिवासियों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सांस्कृतिक आंदोलन तेज करने की जरूरत है़.
पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी ने कहा कि आदिवासी समाज संकट की स्थिति में है़ उनकी आबादी का घटना चिंता का विषय है, जबकि सामाजिक कार्यों के साथ राजनीतिक आंदोलन में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण है़ पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा कि वह आदिवासी संस्कृति को बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए हमेशा संघर्ष करेंगे़ आदिवासी संस्कृति में प्रकृति की रक्षा समेत कई महत्वपूर्ण चीजों पर बल दिया गया है.
शिक्षाविद डॉ करमा उरांव ने कहा कि पूरी दुनिया में आदिवासियों जैसी संस्कृति कहीं नहीं है़ पूर्व एमएलसी छत्रपति शाही मुंडा ने कहा कि आदिवासी दर्शन से ही पर्यावरण को बचाया जा सकता है़ महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉ महुआ माजी ने कहा कि कर्म के बिना धर्म और धर्म के बिना कर्म अर्थहीन है़ इस अवसर पर करम से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रेम शाही मुंडा व संचालन पावेल कुमार, सूरज टोप्पो और गोपाल बेदिया ने किया़ इस कार्यक्रम में केंद्रीय सरना समिति, एसटी- एससी काउंसिल, आदिवासी लोहरा समाज, आदिवासी छात्र संघ, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद, मांझी परगनैत महाल, पड़हा समिति, मानकी मुंडा के प्रतिनिधि शामिल हुए़.
सरकार से मांग
करम त्योहार की लोक कथाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने, आदिवासी संस्कृति की रक्षा व एवं त्योहारों के लिए ट्राइबल सब प्लान के तहत विशेष पैकेज की व्यवस्था, आदिवासी धर्म कोड लागू करने, जल-जंगल- जमीन- पर्यावरण की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाने, करम अखड़ा, सरना स्थल, ससनदिरि की घेराबंदी, राज्य में शराबबंदी, आदिवासियों के इतिहास की जानकारी के लिए राजधानी में संग्रहालय व पुस्तकालय का निर्माण करने, आदिवासी भाषाओं व कला संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गयी.