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रांची में 1948 में पहली बार हुआ रावण दहन

रांची: रांची में रावण दहन की शुरुआत 1948 में की गई. 69 वर्ष पूर्व आयोजकों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि एक छोटा सा आयोजन आज रांची के लोगों के बीच एक विशाल आयोजन का रूप ले लेगा. पश्चिमी पाकिस्तान नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर के कबायली इलाके बन्नू शहर से रिफ्यूजी बन कर रांची आये […]

रांची: रांची में रावण दहन की शुरुआत 1948 में की गई. 69 वर्ष पूर्व आयोजकों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि एक छोटा सा आयोजन आज रांची के लोगों के बीच एक विशाल आयोजन का रूप ले लेगा. पश्चिमी पाकिस्तान नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर के कबायली इलाके बन्नू शहर से रिफ्यूजी बन कर रांची आये मात्र 10-12 परिवारों ने रावण दहन के रूप में अपना सबसे बड़ा पर्व दशहरा मनाया. एक कसक थी स्व. लाला खिलंदा राम भाटिया को, जो बन्नू से आये रिफ्यूजियों के मुखिया थे.

तब के डिग्री काॅलेज (बाद में रांची काॅलेज,मेन रोड डाक घर के सामने) के प्रांगण में 12 फीट के रावण का निर्माण स्व लाला मनोहर लाल नागपाल,स्व कृष्ण लाल नागपाल,स्व अमिर चंद सतीजा,स्व टहल राम मिनोचा,शादीराम भाटिया एवं स्व किशन लाल शर्मा के हाथों द्वारा किया गया. रांची में दशहरा, दूर्गा ंपूजा की तरह मनाया जाता था. पहली बार आस-पास के लोगों ने रावण दहन देखा.

पंजाबी गाजे-बाजे तथा कबायली ढोल नगाड़े के साथ चार सौ लोगों के बीच शाम को रावण दहन किया गया. उस वक्त रांची सहित पंजाब के तमाम शहरों में रावण का मुखौटा होता था. पर, 1953 के बाद रावण के पुतले का मुखौटा मानव मुख का बनने लगा. वर्ष 1949 तक रावण के पुतले का निर्माण मेन रोड स्थित डिग्री काॅलेज के बरामदे में हुआ. बन्नू से आये लाेगों ने निर्णय लिया कि रावण बनाने में जगह छोटी पड़ती है. साथ ही पुतले की लंबाई कम है.
लिहाजा, लंबाई बढ़ाकर 12 से 20 फीट कर दी गई. और 1955 तक पुतले का निर्माण रेलवे स्टेशन स्थित खजूरिया तलाब के पास रेस्ट कमरा (रिफ्यूजी कैंप) में किया गया. पुतले की लंबाई भी बढ़कर अब 25 से 35 फीट पहुंच गयी थी. निर्माण का सारा खर्च स्व मनोहर लाल, स्व टेहल राम मिनोचा तथा स्व अमीर चंद सतीजा के द्वारा किया जाता था. इस बीच लाला के आर भाटिया का निधन हो गया. इसके बाद स्व. अशोक नागपाल को रावण के ढांचे पर लेई लगाकर पुराना अखबार साटने का काम सौंपा गया. लगभग 10-12 वर्षों तक स्व नागपाल पुतले का निर्माण करते रहे. 1950 से लेकर 1955 तक रावण दहन बारी पार्क (शिफटन पेवेलियन टाउन हॉल) में किया गया. यहां 25 से 40 हजार लाेग तक जुटते थे. रंगारंग नाच-गान तथा रावण के मुखौटे की पूजा कर रावण दहन होता था. इधर, साल दर साल रावण दहन का खर्च बढ़ता गया. तब बन्नू समाज ने इस आयोजन की कमान पंजाबी हिंदू बिरादरी को सौंप दी. धीरे-धीरे रावण दहन काे लेकर रांची के लोगों में उत्साह बढ़ता गया.
पंजाबी हिंदू बिरादरी के लाला देशराज, लाला कश्मीरी लाल, लाला केएल खन्ना, लाला धीमान जी, लाला राधाकृष्ण विरमानी, भगवान दास आनंद, रामस्वरूप शर्मा, मेहता मदन लाल ने जब पंजाबी हिंदू बिरादरी की कमान संभाली और रावण का निर्माण डोरंडा राम मंदिर में करवाने लगे. दो साल तक रावण दहन राजभवन के सामने वाले मैदान (नक्षत्र वन) में किया गया. समय के साथ भीड़ बढ़ने के कारण आयोजकों ने रावण दहन का कार्यक्रम मोरहाबादी में करना उपयुक्त समझा जो 1960 से आज तक यही हो रहा है. पंजाबी हिंदू बिरादरी द्वारा मेघनाथ तथा कुंभकर्ण के पुतले का भी निर्माण करवाया जा रहा है, जो आज तक जारी है.

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