दुरूह परिस्थितियों में हिमाचल में काम कर रहे हैं झारखंड के मजदूर

रांची: काम की खोज में झारखंड से मजदूरों का पलायन एक बड़ी समस्या है. मजदूर और कामगार अच्छा कमाने-खाने का सपना लेकर राज्य से बाहर जाते तो हैं, लेकिन हर कहीं कमाने तथा जीने-खाने का अच्छा माहौल नहीं मिलता. काम की तलाश में हिमाचल प्रदेश पहुंचे मजदूरों की हालत यही बताती है. हिमाचल के किन्नौर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 29, 2017 7:31 AM
रांची: काम की खोज में झारखंड से मजदूरों का पलायन एक बड़ी समस्या है. मजदूर और कामगार अच्छा कमाने-खाने का सपना लेकर राज्य से बाहर जाते तो हैं, लेकिन हर कहीं कमाने तथा जीने-खाने का अच्छा माहौल नहीं मिलता. काम की तलाश में हिमाचल प्रदेश पहुंचे मजदूरों की हालत यही बताती है.
हिमाचल के किन्नौर जिले के रिकोंग पो में झारखंड व बिहार सहित नेपाल से आये मजदूर पहाड़ी इलाके की सड़कों का निर्माण कार्य कर रहे हैं, जहां पत्थर गिरने व भू-स्खलन का खतरा मंडराता रहता है. झारखंड के मोहन लकड़ा तथा बिहार के साधव एक्का के अनुसार उन्हें सुबह 8.30 बजे से शाम छह बजे तक काम करना पड़ता है. कार्य स्थल पर न तो पीने का पानी होता है अौर न सुस्ताने के लिए कोई शेड. प्राथमिक उपचार के लिए कोई फर्स्ट-एड किट भी नहीं. बाहर गये मजदूरों का स्थानीय अावासीय प्रमाण पत्र न होने से बैंक में खाते भी नहीं खुलते. साधव ने कहा कि बड़ी मुश्किल से बचा कर रखे उसके 1200 रुपये किसी ने चुरा लिये. महिला मजदूरों की समस्या पुरुषों से अधिक है. उन्हें एक पुरुष मजदूर की तुलना में कम मजदूरी मिलती है. प्रसव के लिए भी छुट्टी नहीं मिलती.
गर्भावस्था के दौरान महिलाअों का अपने पति के साथ रहना उन्हें अौर गरीब बना देता है. झारखंड की नीरजा हो ने कहा कि कार्य स्थल पर छेड़खानी आम है. पति के घायल होने या उसकी मौत होने पर उसकी पत्नी को कोई मुआवजा नहीं मिलता. द इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमैन एक्ट-1979 के प्रावधान भी तभी लागू होते हैं, जब मजदूर किसी निबंधित एजेंसी की सहायता से बाहर जाते हैं तथा राज्य से बाहर जाते वक्त या फिर जिस राज्य में वे गये हैं, वहां उनका निबंधन हुआ हो.

बाहर गये मजदूरों को सरकारी जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) का भी लाभ न मिलने से इन मजदूरों को खाद्यान्न व केरोसिन तेल भी खुले बाजार से अधिक कीमत पर खरीदना पड़ता है. नीरजा व उसके पति राम हो ने कहा कि इस परिस्थिति से अच्छा है, अपने गांव-घर में ही
काम करना.
(विलेज स्कवेयर से साभार)

Next Article

Exit mobile version