सुनील महतो हत्याकांड की अब तक नहीं सुलझी गुत्थी
सांसद सुनील महतो हत्याकांड को 10 साल बीत चुके हैं. अब तक उनकी हत्या की गुत्थी को जांच एजेंसियां नहीं सुलझा सकीं. चार मार्च, 2007 को बागुड़िया में आयोजित फुटबॉल मैच के दौरान भारी भीड़ के बीच सरेआम गोलियों से भून कर उन्हें मार डाला गया था.
जमशेदपुर : विधायक रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड की जांच शुरू करने के साढ़े तीन महीने के भीतर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) ने हत्या के पीछे के मकसद और हत्या करवानेवाले शख्स का भी पता लगा लिया. लेकिन, सांसद सुनील महतो हत्याकांड को 10 साल बीत चुके हैं. अब तक उनकी हत्या की गुत्थी को जांच एजेंसियां नहीं सुलझा सकीं.
चार मार्च, 2007 को बागुड़िया में आयोजित फुटबॉल मैच के दौरान भारी भीड़ के बीच सरेआम गोलियों से भून कर उन्हें मार डाला गया था. इस मामले में मुख्य आरोपी और इलाके के प्रमुख नक्सली के रूप में पहचाने जाने वाले रंजीत पाल उर्फ राहुल और उसकी पत्नी झरना पश्चिम बंगाल में सरेंडर कर चुके हैं और दोनों अब सरेंडर पॉलिसी का लाभ ले रहे हैं. सीबीआइ ने अब तक उसे रिमांड पर नहीं लिया है.अब तक यह राज नहीं खुल पाया है कि किन परिस्थितियों में हत्याकांड को अंजाम दिया गया था. इस हत्याकांड की जांच सीबीआइ के जिम्मे है. यही कारण है कि दिवंगत सांसद की पत्नी व पूर्व सांसद सुमन महतो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री का दरवाजा खटखटाया है. सुमन महतो को उम्मीद है पीएम इस मामले में दखल देंगे.
राहुल समेत अन्य पर चार्जशीट दायर कर चुकी है सीबीआइ : पूर्व सांसद सुमन महतो और सूत्रों के मुताबिक सीबीआइ द्वारा इस मामले में प्रारंभिक तौर पर चार्जशीट दायर की जा चुकी है. नक्सली रंजीत पाल उर्फ राहुल पर सीबीआइ ने 10 लाख रुपये इनाम की घोषणा की थी. लेकिन उसने पत्नी झरना के साथ सरेंडर कर दिया. लेकिन उसके सरेंडर करने के बाद भी सीबीआइ उसे रिमांड पर लेने के प्रति सक्रियता नहीं दिखा पायी, वहीं अन्य नक्सलियों के खिलाफ सीबीअाइ ने प्रारंभिक चार्जशीट दायर कर दी है.
बंगाल सरकार की पॉलिसी के कारण सीबीआइ रिमांड पर नहीं ले सकी : दरअसल बंगाल की सरेंडर पॉलिसी रंजीत पाल उर्फ राहुल और झरना के लिए बचाव का दरवाजा खोल चुकी है. रंजीत को बंगाल पुलिस ने न्यायिक हिरासत में भेजा ही नहीं है. ऐसे में उसे दूसरे राज्य की पुलिस या सीबीआइ रिमांड पर नहीं ले सकती है. किसी भी केस के आरोपी को पुलिस अदालत के जरिये ही रिमांड पर ले सकती है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सरेंडर पॉलिसी के तहत न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा जाता है. इन वजहों से आत्मसमर्पण कर चुके सांसद हत्याकांड के आरोपियों को झारखंड पुलिस द्वारा रिमांड पर लेने या यहां के केसों में उसकी पेशी करवाने में अड़चन आ रही है. ऐसे में गृह मंत्रालय ही कोई रास्ता निकाल सकता है.
बागुड़िया में नक्सलियों ने सरेआम गोलियाें से छलनी कर दिया था
कोई तो बताये मेरे पति को किसके इशारे पर और क्यों मारा : सुमन महतो
सांसद सुनील महतो की विधवा व सुमन महतो को यह तर्क बिल्कुल नहीं पच रहा है कि नागरिक सुरक्षा समिति (नासुस) को संरक्षण देने की वजह से नक्सलियों ने उनकी हत्या की. सुमन अब राहुल से मिलकर सिर्फ यह जानना चाहती है कि किसके इशारे पर यह सारा खेल हुआ. सुमन ने ‘प्रभात खबर’ को बताया कि उन्होंने झारखंड सरकार से भी पूछा है कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को इतनी सुविधाएं दी जा रही है और नक्सली हिंसा के शिकार परिवार को आज कोई नहीं पूछता? आखिर ऐसा क्यों? सुमन ने अपनी सुरक्षा में कटौती किये जाने पर भी सवाल उठाया है. सुमन महतो ने कहा कि सुनील महतो हत्याकांड के राज को बाहर लाने में न तो सरकार को कोई दिलचस्पी है और न ही खुद उस पार्टी को, जिसके वे सक्रिय कार्यकर्ता थे. उन्होंने कहा कि सरेंडर पॉलिसी को बदला जाना चाहिए ताकि जो लोग मारे गये हैं उनके परिजनों को भी राहत मिल सके. उन्होंने कहा कि सांसद मारे गये हैं, लेकिन आज तक कोई मुआवजा या नौकरी तक का ऐलान सरकार नहीं कर पायी है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी भी इस मामले को उजागर नहीं कर पा रही है.
ऐसे हुई थी सांसद सुनील महतो की हत्या
चार मार्च 2007 की शाम घाटशिला के बाघुड़िया गांव में होली के दिन फुटबॉल मैच चल रहा था. उस मैच में मुख्य अतिथि बना कर लाये गये जमशेदपुर के तत्कालीन सांसद सुनील महतो की अचानक नक्सलियों ने गोलियां चलाकर हत्या कर दी. जब जनवरी, 2017 में राहुल के बंगाल में सरेंडर करने की खबर आयी, तब सुमन को उम्मीद बंधी थी कि हत्या का राज सामने आयेगा. लेकिन अब वो उम्मीदें धूमिल होने लगी हैं. वैसे राहुल ने पूछताछ में सांसद की हत्या के पीछे नासुस (नागरिक सुरक्षा समिति) को बढ़ावा देने की वजह बताया है, तो सुमन महतो को यकीन हो गया कि इस मामले की लीपापोती करके वजह सामने नहीं लाने दिया जायेगा. सुमन महतो ने सरकार से पूछा कि जब हत्या करने वाले कई और नक्सली अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं, तो ऐसे में उनकी सुरक्षा में कटौती क्यों की जा रही है?