दो अरब रुपये हर वर्ष जाता है बाहर

रांचीः राज्य गठन के बाद से ही निजी संस्थानों की स्थापना के प्रति सरकारें गंभीर नहीं रहीं हैं. राज्य गठन के तत्काल बाद सरकार ने एक संकल्प जारी किया था. विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग के तत्कालीन सचिव जेबी तुबिद की ओर से जारी इस संकल्प में निजी क्षेत्र में नये तकनीकी संस्थानों की स्थापना के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 19, 2014 3:39 AM

रांचीः राज्य गठन के बाद से ही निजी संस्थानों की स्थापना के प्रति सरकारें गंभीर नहीं रहीं हैं. राज्य गठन के तत्काल बाद सरकार ने एक संकल्प जारी किया था. विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग के तत्कालीन सचिव जेबी तुबिद की ओर से जारी इस संकल्प में निजी क्षेत्र में नये तकनीकी संस्थानों की स्थापना के लिए नीति निर्धारण किया गया था.

इसमें शिक्षण संस्थान खोलने के लिए निजी कंपनियों को आमंत्रित करने तथा चयनित संस्थानों को जमीन, सड़क, बिजली व पानी मुहैया करानी की बात थी. पर इस संकल्प पर आज तक गंभीरता से पहल नहीं की गयी. सरकार ने निर्णय लिया था कि निजी क्षेत्र की कंपनियों को इंजीनियरिंग व मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए आमंत्रित किया जायेगा.

यह भी तय हुआ था कि सरकार चयनित संस्था को सिर्फ टोकन/सलामी लेकर उतनी सरकारी जमीन उपलब्ध करायेगी, जितनी एआइसीटीइ के तहत जरूरी हो. सरकारी जमीन उपलब्ध न रहने पर रैयती जमीन का अधिग्रहण कर इसके कुल अधिग्रहीत मूल्य की आधी कीमत पर जमीन देगी. यही नहीं यदि संस्थान रैयती जमीन के अधिग्रहण का भार खुद उठाता है, तो सरकार उस जमीन के सरकारी दर का पांच गुना (500 फीसदी) अनुदान संबंधित संस्थान को देगी. जमीन उपलब्ध कराने के बाद संबंधित संस्थान के लिए एक निश्चित स्थल तक सड़क, बिजली व पानी की सुविधा पहुंचाने की बात भी संकल्प में थी, इसके बाद का खर्च संस्थान को वहन करने का नियम बना था. इधर इन प्रावधानों को लागू करने में विभाग दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है.

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