22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नमन धरती आबा: बिरसा मुंडा कारावास न सुरक्षित, न संरक्षित

!!संजय!! रांची : उलिहातू व डोंबारी बुरु के अलावा बिरसा मुंडा केंद्रीय कारावास (पुरानी जेल) रांची, बिरसा की यादों से जुड़े हैं. इन्हें देख कर उस वीर बहादुर स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि दी जा सकती है, उसके जीवनकाल को महसूस किया जा सकता है, जिन्हें सूबे में भगवान का दर्जा प्राप्त है. वह कोठरी (सेल), […]

!!संजय!!

रांची : उलिहातू व डोंबारी बुरु के अलावा बिरसा मुंडा केंद्रीय कारावास (पुरानी जेल) रांची, बिरसा की यादों से जुड़े हैं. इन्हें देख कर उस वीर बहादुर स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि दी जा सकती है, उसके जीवनकाल को महसूस किया जा सकता है, जिन्हें सूबे में भगवान का दर्जा प्राप्त है. वह कोठरी (सेल), जिसमें लंबे कारावास के साथ बिरसा ने अपने जीवन के अंतिम दिन गुजारे, अभी साफ-सुथरी तो है, पर यहां इसकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है. कारावास परिसर सहित इस कोठरी में कोई भी कभी भी अाने-जाने को स्वतंत्र है. ऐसे में यदि कोई चाहे तो न सिर्फ उस कोठरी बल्कि इस कारावास के किसी भी भाग को क्षतिग्रस्त कर सकता है या यहां से कुछ भी उठाकर ले जा सकता है.

विभिन्न सरकारी कार्यालयों व अन्यत्र तैनात होमगार्ड तथा रांची पुलिस के कुछ जवानों ने आवास के अभाव में जेल की कोठरियों को ही अपना आवास बनाया है. इनकी वजह से थोड़ा नियंत्रण बना हुआ है. इस घोषणा के बाद भी कि कारावास परिसर की करीब दो एकड़ रिक्त जमीन पर झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का संग्रहालय बनना है, इसे सुरक्षित व संरक्षित करने की पहल अभी नहीं हुई है. परिसर में घास व झाड़ियां भरी है. सरकार ने इस कारावास के ठीक बगल में बिरसा मुंडा स्मृति पार्क के निर्माण की मंजूरी दी है. करीब 165 करोड़ की लागत से बननेवाले इस पार्क का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है. उधर कारावास के कई हिस्से में टूट-फूट हो रही है, जिसे तत्काल संरक्षित करने की जरूरत है.

23 लाख खर्च व लोकार्पण करके भी नहीं बंटी किताब

मानव संसाधन विभाग ने वर्ष 2010 में बिरसा मुंडा पर एक चित्रकथा का प्रकाशन कराया था. तत्कालीन विभागीय सचिव जेबी तुबिद के कार्यकाल में तीन भाग में छपी अमर शहीद बिरसा मुंडा की चित्रकथा का प्रकाशन बच्चों के लिए जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआइ) ने किया था. तीन भाग वाली इस चित्रकथा के 34770 सेट (कुल एक लाख चार हजार 310 कॉपी) छपे थे. इसके प्रकाशन पर करीब 23 लाख रु खर्च हुए थे. प्रकाशक (न्यू बिहार पेपर इंडस्ट्रीज, जमशेदपुर) को 16 लाख रु तथा चित्र कथा के लेखक बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन के सेवानिवृत्त लेखक सुमन प्रसाद मेहता को छह लाख रु दिये गये थे. इस चित्रकथा का लोकार्पण भी हुअा था. लोकार्पण समारोह पर हुए खर्च सहित उस कार्यक्रम में लेखक को भी पांच हजार रु देकर पुरस्कृत किया गया था. इस तरह इस चित्रकथा के प्रकाशन पर करीब 23 लाख रु खर्च हुए थे. पर लोकार्पण के बाद बंटी करीब डेढ़ सौ सेट चित्रकथा को छोड़ दें, तो स्कूली बच्चों के बीच इनका नि:शुल्क वितरण अाज तक नहीं हो सका है तथा चित्रकथा टीआरआइ में डंप है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें